लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सहायक अध्यापकों के संबंध
में बेसिक शिक्षा विभाग में अपनाई गई तबादला नीति को प्रथम दृष्टया
गैरकानूनी माना है। कोर्ट ने यह टिप्पणी तबादला नीति के ‘लास्ट इन फस्र्ट
आउट’ थ्योरी पर की है। कोर्ट ने इसपर विचार की आवश्यकता बताते हुए राज्य
सरकार को जवाब के लिए एक सप्ताह का समय दिया है।
यह आदेश जस्टिस इरशाद अली की बेंच ने रीना सिंह व अन्य की ओर से दाखिल
याचिका पर पारित किया। याचियों के वरिष्ठ अधिवक्ता एचजेएस परिहार का तर्क
था कि राज्य सरकार ने 20 जुलाई 2018 के शासनादेश में सहायक अध्यापकों के
लिए तबादला नीति अपनाई। जिसके शर्त संख्या 2(2)(1) व 2(3)(4) के तहत
अध्यापकों और छात्रों का अनुपात 1:40 होना व 1:20 से कम न होना तय किया
गया। इन्हीं प्रावधानों के तहत ‘लास्ट इन फस्र्ट आउट’ थ्योरी अपनाई गई
जिसमें यदि अध्यापकों की संख्या किसी संस्थान में अनुपात से अधिक हो जाती
है तो जो अध्यापक संस्थान में लंबे समय से तैनात हैं, वह वहीं तैनात रहेगा
और बाद में प्रमोशन से जाने वाले का दूसरे संस्थान में स्थानांतरण कर दिया
जाएगा। उक्त शासनादेश पांच अगस्त तक के लिए ही था लेकिन निदेशक, बेसिक
शिक्षा विभाग ने 16 अगस्त को सकरुलर जारी करते हुए, इसे 19 अगस्त तक के
लिये कर दिया। उन्होंने सकरुलर को अवैध बताते हुए कहा कि शासनादेश की समय
सीमा बढ़ाने का अधिकार सिर्फ राज्य सरकार को है।