न्यायालय के आदेश पर शिक्षामित्रों की हालिया हिंसक, अराजक, असंसदीय और
अभद्र प्रतिक्रिया के तौर-तरीकों और उसपर शासन-प्रशासन की अकर्मण्यता की
तीखी भर्त्सना के साथ बहस शुरू। सपाई के सी जैन की बोलती यह कहकर बंद की कि शासन ने आज के उपद्रव पर आँखे मूंदी।
कांग्रेस के हिलाल नक़वी ने शिक्षामित्रों की प्रतिक्रिया की निंदा तो की, पर कहा कि NCTE वगैरह द्वारा पूरी बात कोर्ट के सामने ठीक से न रखने के कारण शिक्षामित्रों के साथ यह हुआ। नकवी जी के अनुसार NCTE ने कही कुछ कहा और कहीं कुछ।
जवाब में अमिताभ जी ने उनका चेहरा धुंवा-धुंवा कर दिया यह कहकर कि लंबी बहस में सबके वकीलों ने हर बात रखी और न्यायालय में हर बात पर विचार हुआ, तब यह फैसला हुआ।
गाज़ी इमाम आला ने कई राज्यों में बिना टेट के शिक्षामित्रों के समायोजन का उल्लेख कर समायोजन को सही बताया और प्रदेश में शिक्षामित्रों की हिंसक प्रतिक्रिया को नकारा।
प्रदेश में शिक्षामित्रों द्वारा जजों का पुतला फूंके जाने और उपद्रव की घटनाओं का जिक्र कर जहां अमिताभ जी ने उनकी बोलती बंद की।
हिमांशु ने कहा कि इस सिविल वार जैसी स्थिति की जिम्मेदार सरकार है, जिसने 12 हफ़्तों में 72825 पद भरे जाने के कोर्ट के नवम्बर 2014 के आदेश के बावजूद आजतक 60000 पद भी नहीं भरे। साथ ही जिन राज्यों में इस प्रकार बिना टेट समायोजन हुए, वहाँ मामले कोर्ट में चैलेन्ज न होने से वे बचे, पर उससे उत्तर प्रदेश के गैरकानूनी समायोजन को सही नहीं ठहराया जा सकता।
शिक्षामित्रों के महामन्त्री पुनीत चौधरी ने NCTE द्वारा पहले प्रशिक्षण/समायोजन की अनुमति देने और बाद में कोर्ट में मुकर जाने की बात कही।
हिमांशु ने बड़ी जोरदारी से साफ़ किया कि NCTE ने दस्तावेजी सबूत देकर साबित किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण/समायोजन की अनुमति लेते समय यह तथ्य छिपाया कि वे शिक्षक नहीं, 11 महीने के संविदा पर रखे गए सामुदायिक सेवक हैं।
के सी जैन की धुलाई इस बात पर भी हुई कि यह सरकार कोई भी भर्ती नहीं कर पा रही और रोजगार कायदे से देने की सरकार की नीयत नहीं।
अंत में समाधान की बात होने पर जबरदस्त काँव-काँव मची। सभी पैनलिस्टों की आवाज बंद कर अमिताभ जी ने न्यायालय के निर्णय की आलोचना करने वालों को कायदे से धोते हुए सरकार को इच्छाशक्ति दिखाते हुए नियमसम्मत तरीके से बेरोजगारों को रोजगार देने के ईमानदार प्रयासों में जुटने की नसीहत दी, जो उनके अनुसार फिलहाल नहीं दिख रही। उनके अनुसार अगर सर्वोच्च न्यायालय से भी ये फैसला बहाल रहा तो सरकार की ही जिम्मेदारी होगी कि जब प्रदेश में पद हैं, फण्ड है तो रोजगार देने के बजाय बेरोजगारों को लड़ाने की घटिया राजनीति से बाज़ आये।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
कांग्रेस के हिलाल नक़वी ने शिक्षामित्रों की प्रतिक्रिया की निंदा तो की, पर कहा कि NCTE वगैरह द्वारा पूरी बात कोर्ट के सामने ठीक से न रखने के कारण शिक्षामित्रों के साथ यह हुआ। नकवी जी के अनुसार NCTE ने कही कुछ कहा और कहीं कुछ।
जवाब में अमिताभ जी ने उनका चेहरा धुंवा-धुंवा कर दिया यह कहकर कि लंबी बहस में सबके वकीलों ने हर बात रखी और न्यायालय में हर बात पर विचार हुआ, तब यह फैसला हुआ।
गाज़ी इमाम आला ने कई राज्यों में बिना टेट के शिक्षामित्रों के समायोजन का उल्लेख कर समायोजन को सही बताया और प्रदेश में शिक्षामित्रों की हिंसक प्रतिक्रिया को नकारा।
प्रदेश में शिक्षामित्रों द्वारा जजों का पुतला फूंके जाने और उपद्रव की घटनाओं का जिक्र कर जहां अमिताभ जी ने उनकी बोलती बंद की।
हिमांशु ने कहा कि इस सिविल वार जैसी स्थिति की जिम्मेदार सरकार है, जिसने 12 हफ़्तों में 72825 पद भरे जाने के कोर्ट के नवम्बर 2014 के आदेश के बावजूद आजतक 60000 पद भी नहीं भरे। साथ ही जिन राज्यों में इस प्रकार बिना टेट समायोजन हुए, वहाँ मामले कोर्ट में चैलेन्ज न होने से वे बचे, पर उससे उत्तर प्रदेश के गैरकानूनी समायोजन को सही नहीं ठहराया जा सकता।
शिक्षामित्रों के महामन्त्री पुनीत चौधरी ने NCTE द्वारा पहले प्रशिक्षण/समायोजन की अनुमति देने और बाद में कोर्ट में मुकर जाने की बात कही।
हिमांशु ने बड़ी जोरदारी से साफ़ किया कि NCTE ने दस्तावेजी सबूत देकर साबित किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण/समायोजन की अनुमति लेते समय यह तथ्य छिपाया कि वे शिक्षक नहीं, 11 महीने के संविदा पर रखे गए सामुदायिक सेवक हैं।
के सी जैन की धुलाई इस बात पर भी हुई कि यह सरकार कोई भी भर्ती नहीं कर पा रही और रोजगार कायदे से देने की सरकार की नीयत नहीं।
अंत में समाधान की बात होने पर जबरदस्त काँव-काँव मची। सभी पैनलिस्टों की आवाज बंद कर अमिताभ जी ने न्यायालय के निर्णय की आलोचना करने वालों को कायदे से धोते हुए सरकार को इच्छाशक्ति दिखाते हुए नियमसम्मत तरीके से बेरोजगारों को रोजगार देने के ईमानदार प्रयासों में जुटने की नसीहत दी, जो उनके अनुसार फिलहाल नहीं दिख रही। उनके अनुसार अगर सर्वोच्च न्यायालय से भी ये फैसला बहाल रहा तो सरकार की ही जिम्मेदारी होगी कि जब प्रदेश में पद हैं, फण्ड है तो रोजगार देने के बजाय बेरोजगारों को लड़ाने की घटिया राजनीति से बाज़ आये।
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