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तो जरा नियम-कानून का ज्ञान रखने वाले माननीय न्यायाधीश चंद्रचूड़ बतायें कि.... : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

वैसे तो कोर्ट का हर फैसला सम्माननीय है। लेकिन वह सही है यह सर्वथा उचित नहीं। कई बार रूलिंग के बावजूद कोर्ट फैसले सुना देती है या स्टे लगा देती है। न्याय करते वक्त किसी न्यायिक का अपने ही विचारों को सही मानना न केवल गलत है बल्कि वह पद के सापेक्ष उसकी योग्यता पर भी सवालिया निशान खड़े करता है।
हाल ही में कोर्ट ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के फैसले को यह कहकर खारिज कर दिया कि वह इसके योग्य नहीं है। मगर कोर्ट यह भूल गया कि जो शिक्षा मित्र 1999 से शिक्षण कार्य करते चले आए हैं वह अयोग्य नहीं हो सकते। यदि अयोग्य थे और केवल बीएड, बीटीसी वाले ही इस पद के लिए उपयुक्त हैं तो शिक्षामित्र के चयन के वक्त यह व्यवस्था कहां थी।
तो जरा नियम-कानून का ज्ञान रखने वाले माननीय न्यायाधीश चंद्रचूड़ बतायें कि
1. यदि सालों से तैनात शिक्षामित्र संविदा से स्थाई नहीं हो सकता फिर एफसीआई के मामले में न्यायालय ने संविदा से स्थाई करने के आदेश क्यों दे दिये। वहीं उप्र सरकार ने संविदा सफाई कर्मियों का नियमितीकरण किया था। इसी प्रकार कई अन्य उदाहरण भी हैं जिसमें कोर्ट या सरकार ने अहम फैसले सुनाए?
अब सवाल उठता है कि या तो आप ज्यादा काबिल हैं और जिन्होंने इसके विपरीत फैसले सुनाए वह बेवकूफ थे। यदि वह काबिल तो निश्चित तौर पर आप इस पद के अयोग्य हैं।
2. न्यायाधीश चंद्रचूड़ महोदय फैसला सुनाते वक्त यह भी संज्ञान में ले लेते कि शिक्षामित्रों को बीटीसी के समान योग्यता दिलाने के लिए एनसीटीई से मंजूरी लेकर प्रदेश सरकार ने न केवल प्रशिक्षण करवाया था बल्कि प्रशिक्षण उपरांत ही इनकी तैनाती की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
महोदय के यह भी संज्ञान में लाया जाना चाहिए कि यदि शिक्षामित्रों को रेगुलर बीटीसी प्रशिक्षण दिलाया जाता तो स्कूलों में तालाबंदी करनी पड़ती। लिहाजा सरकार ने दूरस्थ शिक्षा नीति अपनाई। जिसका अनुमोदन एनसीटीई, एससीईआरटी, डायट और एचआरडी ने किया। इसके लिए बाकायदा फंड भी दिया।
इतनी प्रक्रिया के बावजूद जब सरकार ने शिक्षामित्रों का बीटीसी के बराबर का दर्जा दिया फिर आप किस नीति के तहत कह गए कि शिक्षामित्र अयोग्य हैं और बीटीसी व बीएड धारक योग्य। आपके निर्णय से साफ जाहिर होता है कि आपको या तो कायदे-कानून का ज्ञान कम है या फिर आप किसी के फायदे को ध्यान में रखते हुए शिक्षामित्रों के विपरीत फैसला सुनाये हैं।
3. अपने निर्णय में श्रीमान जी आपने यह भी कहा कि 1999 से पद भार ग्रहण करने व 16-16 साल संविदा पर काम करने के बावजूद उन्हें योग्य नहीं माना जा सकता, महज अनुभव को आधार नहीं बनाया जा सकता।
श्रीमान चंद्रचूड़ जी आपको भी अवगत कराना चाहूंगा कि आपका चयन भी अधिवक्ता पद पर 10 साल के अनुभव के आधार पर हुआ है। यदि अनुभव प्रोन्नति का आधार नहीं तो निश्चित तौर पर आपका चयन भी अवैध है और जनहित में आपको हटाते हुए आपके द्वारा किये गये सभी फैसलों को खाजिर करने की आवश्यकता है। साथ ही आपको पद से हटाते हुए मूल पद पर ही भेजना न्याय संगत और तर्कसंगत (आपके अनुसार) होगा।
4. श्रीमान चंद्रचूड़ जी यदि शिक्षामित्रों का समायोजन वैध नहीं तो निश्चित तौर पर इस अवैध कार्य को करने वाले तत्कालीन एनसीटीई, एचआरडी, एमएचआरडी, डायट, एनसीईआरटी, एससीईआरटी, केंद्र सरकार व राज्य सरकार आदि इन सभी विभागों के तत्कालीन अधिकारियों, डायरेक्टर, सचिवों, अनुसचिव, प्रमुख सचिव, मंत्री, स्वतंत्र प्रभार मंत्री पूर्णतया अपराधी हैं। फिर आपने फैसला सुनाते वक्त इन्हें सजा क्यांे नहीं सुनाई गई। क्योंकि शिक्षामित्र कोई नियम निर्माता तो नहीं था जो अपनी ट्रेनिंग व परीक्षा के कार्यक्रम खुद तय करता और खुद ही सम्पन्न कराता।
5. जिस प्रकार से मैगी बनाने वाले मजदूर दोषी नहीं थे, उनको बनाने वाली कम्पनी (संस्था) दोषी थी उसी प्रकार शिक्षामित्र दोषी कैसे हो गए जो उन्हें अयोग्य करार दे दिया। ऐसे में निर्णय देते वक्त शिक्षामित्रों का हित भी ध्यान रखना चाहिए था।
6. चंद्रचूड़ महोदय यहां इधर भी आपका ध्यानाकृष्ट कराना चाहूंगा कि प्रदेश सरकार ने 2012 विस चुनाव से पूर्व शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने का ऐलान किया था। ऐसे में फैसला सुनाने से पहले आपको विधायिका से भी विचार-विमर्श करना चाहिए था। गौरतलब रहे कि न्याय पालिका भी विधायिका के बनाये नियमों के आधार पर फैसले करती है। लेकिन यहां न्याय पालिका ने विधायिका के खिलाफ फैसला सुनाकर विधायिका को निम्न स्तर का साबित किया है। जो जनहित के लिए घातक होगा।
7. चंद्रचूड़ महोदय यदि आपका फैसला सही है तो निश्चित तौर पर शिक्षा को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी उठाने वाले एनसीटीई, एचआरडी, एमएचआरडी, डायट, एनसीईआरटी, एससीईआरटी, केंद्र सरकार व राज्य सरकार आदि इन सभी विभागों के तत्कालीन अधिकारियों, डायरेक्टर, सचिवों, अनुसचिव, प्रमुख सचिव, मंत्री, स्वतंत्र प्रभार मंत्री अपराधी की श्रेणी में आते हैं। अतः आपको नया फैसला जारी करते हुए इन समितियों व मंत्रियों के पदों को पूरी तरह निषेध कर देना चाहिए।
8. श्रीमान जी आपका कानून ज्ञान कितना बेहतर है आपका फैसला यह भी साबित करता है। जब साफ है कि प्राथमिक विद्यालय में तैनात शिक्षकों की योग्यता बीटीसी और माध्यमिक शिक्षा के लिए बीएड निर्धारित है इसके बावजूद आपके द्वारा प्राइमरी स्तर पर तैनात बीएड शिक्षकों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। जबकि यह नियुक्तियां आरटीई के खिलाफ है।
9. यह तो वही बात है कि जो कोर्ट को अच्छा लगे वह अच्छा और जो खराब लगे वह खराब। हम जब एक ही रास्ते से गुजरे हैं तो मंजिल अलग कैसे।
10. जब आप विधायिकों से ऊँचे हो गए हैं तो आपको सभी विभागों में होने वाले अनुभव के आधार पर प्रमोशन चाहे कार्यपालिका हो, चाहे न्याय पालिका हो, चाहे विधायिका हो व संसद हो सभी को बंद कर देना चाहिए।
11. अंग्रेजों के जमाने के इस न्याय प्रक्रिया में भी बदलाव होना चाहिए।
12. एक तरफ आपकी संविधान है जो सभी को मौलिक अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, संवैधानिक उपचारों का अधिकार, राज्य क नीति निदेशक कर्तव्य, सिद्धांत व कर्तव्य दिये गये हैं।
कृपया अनुच्छेद 14 व 16 व 21 व 23 व 38 31/19, 18 व 21, 23 व 24, 29 व 30 व 31 व 38 व 39, 41-43, 44, 47, 50 का संज्ञान लेने का कष्ट करें।
13. महोदय कहा जाता है कि आतंकवादी पेट से पैदा नहीं होता उसको ऐसा बनने पर मजबूर किया जाता है। आज जो हालात पनप रहे हैं वह आपके द्वारा दिया गया अमर्यादित निर्णय है। बेगुनाह शिक्षामित्रांे को आतंक की तरह व आतंकवादी बनने वाले इस न्याय पालिका व व्यवस्थापिका व कार्यपालिका को धिक्कार है और मैं इसकी निंदा करता हूं।
और यदि आपको लगता है कि बीएड भी आपके नजरिए से ठीक है तो क्यों नहीं प्राइमरी अध्यापकों के लिए एमएड, पीएचडी, एम.टेक, डाक्टर, एमबीबीएस, बीएएमएस आदि उच्च योग्यता वालों को भी वरिष्ठता देने का फैसला क्यों नहीं सुनाया।
14. न्यायाधीश चंद्रचूड़ जी आपको अवगत कराना चाहेंगे कि क्या शिक्षामित्रों के लिए महंगाई नहीं होती। पिछले 15 साल से अल्प 3500 रुपए पर कार्य कर रहे हैं। एक साल में उन्हें महज 11 माह ही 3500 मानदेय का भुगतान किया जाता है। इस प्रकार से एक शिक्षामित्र का प्रतिदिन का मानदेय 105 रुपए और 48 पैसा है। इससे अच्छे तो मनरेगा मजदूर हैं।
15. बेरोजगारों को नौकरी दे न पाना, और जिसको मिली हो उसको छीन लेना यह है भारत सरकार का कानून। लाशों पर शासन करना यह है कानून। भूखों, नंगों, बेरोजगारों, बेघरों पर शासन करना यह है भारत सरकार का कानून, सबसे निम्न कोर्ट है भारत का कानून।

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Ramesh Verma और 27 अन्य लोगों को यह पसंद है.
पिछली टिप्पणियाँ देखें…
Matloob Husain
Thanks sir ji you or right
पसंद · उत्तर दें · रिपोर्ट करें · 1 घंटा पहले
Devki Nandan Arya Arya
Very good
पसंद · उत्तर दें · रिपोर्ट करें · 1 घंटा पहले
Shyam Bihari
Vah....... Right .
पसंद · उत्तर दें · रिपोर्ट करें · 1 घंटा पहले
Sukhpal Singh
बहुत अच्छे श्रीमान
पसंद · उत्तर दें · रिपोर्ट करें · 1 घंटा पहले
Atul Katare
एकदम सटीक ।माननीय न्यायमूर्ति महोदय ने असल में न्याय तो किया ही नहीं अपितु आप लोग अगर न्यायालय की पिछली कुछ टिप्पणियों पर नजर डालेंगे तो पायेगे कि हाईकोर्ट के कुछ न्यायाधीश सरकार पर इस प्रकार की टिप्पणी कर रहे थे जिन्हें यदि व्यक्तिगत कहा जाये तो गलत न होगा ।क्या न्यायाधीशों को इस प्रकार की टिप्पणी करनी चाहिए? क्या न्यायपालिका को बिधायिका के कायॆ क्षेत्र में दखल देने का अधिकार है। लोकतंत्र में जनता का निणॆय अंतिम होता हैऔर भारत में जनता अपने द्वारा चुने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करती है।इस प्रकार के लोकतंत्र को परोक्ष लोकतंत्र कहते हैं क्या माननीय न्यायमूर्ति महोदय इसे पढने का कष्ट करें
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