रदेश की पहली शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी-2011) पर एक के बाद एक दाग
यूपी बोर्ड पर ही लगे हैं। चार साल में रह-रहकर सुबूत के साथ आरोप सामने
आते रहे, मगर उन पर कार्रवाई करने के बजाए फर्जीवाड़े पर पर्दा डालने का ही
हर बार जतन किया जाता रहा।
यूपी बोर्ड ने जांच करने या उसमें सहयोग देने तक से इनकार ही नहीं किया बल्कि जिस मामले की जांच खुद शुरू की उसे महीनों बाद भी पूरा नहीं किया गया। इससे परीक्षा में शामिल होने वाले युवाओं के साथ अन्याय होना जारी है और गड़बड़ी में शामिल लोग सही सलामत हैं। 1सूबे में पहली बार 13 नवंबर 2011 को हुई टीईटी कुछ माह बाद ही विवादों में आ गई। फरवरी 2012 में जब कानपुर देहात की पुलिस ने परीक्षा में फेल अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण कराने वालों को नकदी के साथ पकड़ा और फिर
माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन तक पकड़े गए। उस समय माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड ही निशाने पर था, लेकिन यह कहकर बोर्ड ने पल्ला झाड़ लिया कि परीक्षा का आयोजन एक एजेंसी से जरिए कराया गया था। इस मामले में अब तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है, जांच अब भी जारी है। खास बात यह है कि जिस परीक्षा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, उसी की मेरिट के आधार पर हजारों नियुक्तियां हुईं और आगे भी करने की तैयारी है।
फेल से पास कराने की पुलिसिया जांच में यह भी सामने आया कि परीक्षा में बड़ी संख्या में युवाओं ने वाइटनर का प्रयोग किया था जबकि वाइटनर के प्रयोग की स्पष्ट मनाही थी। शिक्षा विभाग या फिर पुलिस के अफसर इस गड़बड़ी को दूर करने में समर्थ नहीं थे, सो युवाओं ने हाईकोर्ट में यह प्रकरण रखा और इसकी जांच के आदेश हुए हैं। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने इसकी जांच से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है, सब कुछ कानपुर देहात पुलिस के पास है। टीईटी 2011 के जारी परिणाम में भी हेराफेरी करके करीब 400 से अधिक फेल युवाओं को पास किया गया। इसकी चर्चा तेज हुई तो दो छोटे कर्मचारियों को निलंबित करके जांच शुरू करा दी गई। यह जांच शुरू तो हुई लेकिन नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। आरोपी कर्मचारियों को भी बहाल कर दिया गया है। इन घटनाक्रमों से साफ है कि यूपी बोर्ड लगातार फर्जीवाड़े पर पर्दा डाल रहा है। यदि फेल अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए तो उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को ही हाशिए पर धकेल कर उलटफेर किया गया होगा। इस संबंध में अफसरों ने मौन साध रखा है।
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यूपी बोर्ड ने जांच करने या उसमें सहयोग देने तक से इनकार ही नहीं किया बल्कि जिस मामले की जांच खुद शुरू की उसे महीनों बाद भी पूरा नहीं किया गया। इससे परीक्षा में शामिल होने वाले युवाओं के साथ अन्याय होना जारी है और गड़बड़ी में शामिल लोग सही सलामत हैं। 1सूबे में पहली बार 13 नवंबर 2011 को हुई टीईटी कुछ माह बाद ही विवादों में आ गई। फरवरी 2012 में जब कानपुर देहात की पुलिस ने परीक्षा में फेल अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण कराने वालों को नकदी के साथ पकड़ा और फिर
माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन तक पकड़े गए। उस समय माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड ही निशाने पर था, लेकिन यह कहकर बोर्ड ने पल्ला झाड़ लिया कि परीक्षा का आयोजन एक एजेंसी से जरिए कराया गया था। इस मामले में अब तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है, जांच अब भी जारी है। खास बात यह है कि जिस परीक्षा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, उसी की मेरिट के आधार पर हजारों नियुक्तियां हुईं और आगे भी करने की तैयारी है।
फेल से पास कराने की पुलिसिया जांच में यह भी सामने आया कि परीक्षा में बड़ी संख्या में युवाओं ने वाइटनर का प्रयोग किया था जबकि वाइटनर के प्रयोग की स्पष्ट मनाही थी। शिक्षा विभाग या फिर पुलिस के अफसर इस गड़बड़ी को दूर करने में समर्थ नहीं थे, सो युवाओं ने हाईकोर्ट में यह प्रकरण रखा और इसकी जांच के आदेश हुए हैं। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने इसकी जांच से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है, सब कुछ कानपुर देहात पुलिस के पास है। टीईटी 2011 के जारी परिणाम में भी हेराफेरी करके करीब 400 से अधिक फेल युवाओं को पास किया गया। इसकी चर्चा तेज हुई तो दो छोटे कर्मचारियों को निलंबित करके जांच शुरू करा दी गई। यह जांच शुरू तो हुई लेकिन नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। आरोपी कर्मचारियों को भी बहाल कर दिया गया है। इन घटनाक्रमों से साफ है कि यूपी बोर्ड लगातार फर्जीवाड़े पर पर्दा डाल रहा है। यदि फेल अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए तो उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को ही हाशिए पर धकेल कर उलटफेर किया गया होगा। इस संबंध में अफसरों ने मौन साध रखा है।
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