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शिक्षामित्र केस : कोर्ट के समक्ष आए तथ्य और आदेश के मुख्य अंश

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत शिक्षा मित्रों को शिक्षक नहीं माना जा सकता। सरकार ने 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई की ओर से क्लॉज चार ए व चार सी के तहत टीईटी की छूट नहीं दी जा सकती।
सरकार ने चार मार्च 2014 को सेवा नियमावली में जो शिक्षा मित्रों को नियमित करने के लिए छूट प्रदान की, वह पूरी तरह से अवैधानिक थी। आरटीई के अनुच्छेद-21 के तहत छह से 14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के साथ ही उन्हें शिक्षित बनाने के लिए योग्य शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है। शिक्षक बनने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की छूट देने का अधिकार, राज्य तो क्या केंद्र सरकार को भी नहीं है। सिर्फ संसद ही इसमें छूट प्रदान कर सकती है। अध्यापक पात्रता परीक्षा की छूट एनसीटीई के 17 फरवरी 2014 के पत्र के अनुसार दी गई है, जो गलत है। एनसीटीई को केवल शैक्षिक अर्हता लागू करने का अधिकार है।
*निष्कर्ष:- मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार और साथी अपनी पोस्ट्स में ये तथ्य बार बार उजागर करते रहे हैं कि शिक्षामित्रों को टेट परीक्षा से कोई छूट नहीं दी जा सकती है। नैनीताल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में एक बार फिर इस तथ्य को स्पष्ट किया है।
*चूंकि लड़ाई टेट से छूट की नहीं बल्कि टेट के लागू न होने की है।
उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड के शिक्षामित्र भी अब ये तथ्य अपने दिमाग में बैठा लें कि टेट से छूट न मांगे। और टेट लागू ही नहीं है ये कहें।मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह इस मुद्दे पर देश की सब से बड़ी अदालत में ये तथ्य साबित करने के लड़ रहा है। और शिक्षामित्रों के टेट समर्थकों को हिदायत देता है कि वे इस मामले में अपनी टांग न अड़ाए।
देश के सर्वोच्च न्यायालय से हम अपना हक ले कर रहेंगे।
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