जासं, इलाहाबाद : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिसर्च जर्नल की सूची के प्रकाशन पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय अध्यापक संघ ने आपत्ति जताई है। अध्यापकों का कहना है कि सूची बनाते समय ¨हदी भाषी राज्यों से सूची निर्णायक समिति में सदस्यों को शामिल नहीं किया है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा हाल ही में जारी रिसर्च जर्नल्स की सूची से शोध छात्र एवं प्राध्यापकों में गहरा असंतोष है। यही कारण है कि सूची के मानकों पर सवाल उठ रहे हैं। इसके मूल में अनेक महत्वपूर्ण बिंदु हैं। इसमें आइएसएसएन (इंटरनेशनल स्टैंडर्ड सीरियल नंबर) के अंतर्गत पूरे देश से प्रकाशित रिसर्च जर्नल्स का नाम इस सूची में समाहित नहीं है। जबकि ऐसे अनेक रिसर्च जर्नल आइएसएसएन की मान्यताओं के अनुरुप प्रकाशित हो रहे हैं, जो बहुत अच्छे भी हैं। शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. रामसेवक दुबे का कहना है कि सूची पर नजर डालने से ऐसा लगता है कि ¨हदी भाषी राज्यों से सूची निर्णायक समिति में सदस्यों को आमंत्रित नहीं किया गया। इस कारण उन अधिकांश रिसर्च जर्नल्स को चुना गया है जो अंग्रेजी में छपते हैं। बहुत सारे अध्यापकों और शोध छात्र का यह मन्तव्य है कि जिस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा ¨हदी हो वहां ¨हदी भाषा में लिखने-पढ़ने वाले विद्वानों के प्रति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की धारणा अच्छी नहीं है। यह कि शोध विषय महत्वपूर्ण होता है और महत्वपूर्ण शोधपत्रों का प्रकाशन किसी भी भाषा में किया जा सकता है। ¨हदी, संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी, तमिल, तेलगू आदि संविधान में अनुमन्य 14 भाषाओं में से सभी भाषाओं में अच्छे शोध कार्य हो रहे हैं और हो सकते हैं। यह कि देश के ¨हदी-भाषी प्रांतों के साथ प्रतीत होने वाली इस विषमता को दूर किया जाना और ¨हदी, संस्कृत आदि भाषाओं में प्रकाशित शोधपत्रों का मूल्यांकन भाषा के आधार पर किया जाना सर्वथा आधारहीन है।
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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा हाल ही में जारी रिसर्च जर्नल्स की सूची से शोध छात्र एवं प्राध्यापकों में गहरा असंतोष है। यही कारण है कि सूची के मानकों पर सवाल उठ रहे हैं। इसके मूल में अनेक महत्वपूर्ण बिंदु हैं। इसमें आइएसएसएन (इंटरनेशनल स्टैंडर्ड सीरियल नंबर) के अंतर्गत पूरे देश से प्रकाशित रिसर्च जर्नल्स का नाम इस सूची में समाहित नहीं है। जबकि ऐसे अनेक रिसर्च जर्नल आइएसएसएन की मान्यताओं के अनुरुप प्रकाशित हो रहे हैं, जो बहुत अच्छे भी हैं। शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. रामसेवक दुबे का कहना है कि सूची पर नजर डालने से ऐसा लगता है कि ¨हदी भाषी राज्यों से सूची निर्णायक समिति में सदस्यों को आमंत्रित नहीं किया गया। इस कारण उन अधिकांश रिसर्च जर्नल्स को चुना गया है जो अंग्रेजी में छपते हैं। बहुत सारे अध्यापकों और शोध छात्र का यह मन्तव्य है कि जिस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा ¨हदी हो वहां ¨हदी भाषा में लिखने-पढ़ने वाले विद्वानों के प्रति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की धारणा अच्छी नहीं है। यह कि शोध विषय महत्वपूर्ण होता है और महत्वपूर्ण शोधपत्रों का प्रकाशन किसी भी भाषा में किया जा सकता है। ¨हदी, संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी, तमिल, तेलगू आदि संविधान में अनुमन्य 14 भाषाओं में से सभी भाषाओं में अच्छे शोध कार्य हो रहे हैं और हो सकते हैं। यह कि देश के ¨हदी-भाषी प्रांतों के साथ प्रतीत होने वाली इस विषमता को दूर किया जाना और ¨हदी, संस्कृत आदि भाषाओं में प्रकाशित शोधपत्रों का मूल्यांकन भाषा के आधार पर किया जाना सर्वथा आधारहीन है।
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