सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे संकेत दिए हैं कि शिक्षामित्रों की नौकरी खत्म कर नए सिरे से भर्ती की जाए - शिक्षामित्रों के भविष्य पर आने वाला है बड़ा फैसला!, सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई
शीर्ष कोर्ट ने ऐसे संकेत दिए हैं कि शिक्षामित्रों की नौकरी खत्म कर नए सिरे से भर्ती की जाए। कोर्ट ने कहा है कि नई भर्ती होने तक मौजूदा शैक्षणिक सत्र तक शिक्षामित्रों को कार्य करने दिया जाएगा और जैसे ही नई भर्ती प्रक्रिया संपन्न होगी उन्हें उससे बदल दिया जाएगा।
वहीं शीर्ष कोर्ट ने ऐसे संकेत दिए हैं कि शिक्षामित्रों की नौकरी खत्म कर नए सिरे से भर्ती की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नई भर्ती होने तक मौजूदा शैक्षणिक सत्र तक शिक्षामित्रों को कार्य करने दिया जाएगा और जैसे ही नई भर्ती प्रक्रिया संपन्न होगी उन्हें उससे बदल दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश में शिक्षण कार्य कर रहे 1 लाख 75 हजार शिक्षामित्रों की नौकरी खतरे में पडऩी तय है। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 शिक्षामित्रों की नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में इस आदेश को स्टे कर दिया था।
नियुक्तियां असंवैधानिक
इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां असंवैधानिक हैं क्योंकि आपने बाजार में मौजूद प्रतिभा को मौका नहीं दिया और उन्हें अनुबंध पर भर्ती करने के बाद उनसे कहा कि आप अनिवार्य शिक्षा हासिल कर लो। कोर्ट ने कहा कि 6 माह के भीतर नई भर्ती कीजिए। तब तक शिक्षामित्रों को शिक्षण कार्य करने दीजिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की इस भर्ती में बैठने का पूरा अधिकार होगा, उनके लिए उम्र सीमा का कोई बंधन नहीं होगा, क्योंकि वह पहले से पढ़ा रहे हैं। वहीं यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाए जाने का बचाव किया। सरकार ने कहा कि दूर-दराज के इलाकों में रह रहे बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां असंवैधानिक हैं।
1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों का हो चुका है समायोजन
बता दें कि यूपी सरकार ने करीब 1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षकों के तौर पर समायोजन किया है, जबकि करीब 35 हजार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति अभी होनी है, लेकिन फिलहाल वह रुकी हुई है। इनकी नियुक्ति बिना टीईटी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया।
नियुक्तियां कर दी थीं रद्द
2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया। दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बना दिए गए। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 में शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के खिलाफ फैसला दिया था और सभी नियुक्तियां रद्द कर दी थीं। फिलहाल इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर यूपी सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की भी नजरें टिकीं हुई हैं। वहीं शिक्षामित्रों में शीर्ष कोर्ट के फैसले को लेकर इंतजार है
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शीर्ष कोर्ट ने ऐसे संकेत दिए हैं कि शिक्षामित्रों की नौकरी खत्म कर नए सिरे से भर्ती की जाए। कोर्ट ने कहा है कि नई भर्ती होने तक मौजूदा शैक्षणिक सत्र तक शिक्षामित्रों को कार्य करने दिया जाएगा और जैसे ही नई भर्ती प्रक्रिया संपन्न होगी उन्हें उससे बदल दिया जाएगा।
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वहीं शीर्ष कोर्ट ने ऐसे संकेत दिए हैं कि शिक्षामित्रों की नौकरी खत्म कर नए सिरे से भर्ती की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नई भर्ती होने तक मौजूदा शैक्षणिक सत्र तक शिक्षामित्रों को कार्य करने दिया जाएगा और जैसे ही नई भर्ती प्रक्रिया संपन्न होगी उन्हें उससे बदल दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश में शिक्षण कार्य कर रहे 1 लाख 75 हजार शिक्षामित्रों की नौकरी खतरे में पडऩी तय है। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 शिक्षामित्रों की नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में इस आदेश को स्टे कर दिया था।
नियुक्तियां असंवैधानिक
इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां असंवैधानिक हैं क्योंकि आपने बाजार में मौजूद प्रतिभा को मौका नहीं दिया और उन्हें अनुबंध पर भर्ती करने के बाद उनसे कहा कि आप अनिवार्य शिक्षा हासिल कर लो। कोर्ट ने कहा कि 6 माह के भीतर नई भर्ती कीजिए। तब तक शिक्षामित्रों को शिक्षण कार्य करने दीजिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की इस भर्ती में बैठने का पूरा अधिकार होगा, उनके लिए उम्र सीमा का कोई बंधन नहीं होगा, क्योंकि वह पहले से पढ़ा रहे हैं। वहीं यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाए जाने का बचाव किया। सरकार ने कहा कि दूर-दराज के इलाकों में रह रहे बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां असंवैधानिक हैं।
1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों का हो चुका है समायोजन
बता दें कि यूपी सरकार ने करीब 1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षकों के तौर पर समायोजन किया है, जबकि करीब 35 हजार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति अभी होनी है, लेकिन फिलहाल वह रुकी हुई है। इनकी नियुक्ति बिना टीईटी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया।
नियुक्तियां कर दी थीं रद्द
2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया। दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बना दिए गए। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 में शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के खिलाफ फैसला दिया था और सभी नियुक्तियां रद्द कर दी थीं। फिलहाल इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।
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