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प्रदेश में अब एकेडेमिक मेरिट से टीचरों की नो इंट्री, लिखित परीक्षा से मिलेगी नौकरी

अमरीष मनीष शुक्ला, इलाहाबाद । उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में एक और बड़े बदलाव को हरी झंडी दे दी है। अब टीचर बनने के लिये शैक्षणिक अंकों की मेरिट का मापदंड खत्म कर दिया गया है।
टीचर बनने के लिये अन्य भर्तियों की तरह परीक्षा देनी होगी। परीक्षा की जो मेरिट बनेगी। उसके अनुरूप नौकरी मिलेगी।
लेकिन यह बदलाव जहां संघर्षरत टीजीटी-पीजीटी प्रतियोगी मोर्चा की मांग के अनुरूप वरदान है। वहीं शिक्षा माफियाओं को ये पच नहीं रहा है।
दरअसल सूबे में अभी तक एकेडेमिक मेरिट से मिलने वाली सहायक अध्यापक की कुर्सी, सवालों के घेरे में रहती थी। क्योंकि नकल माफिया व शिक्षा माफिया की मदद से फर्जी प्रमाण पत्र व नकल कर अधिक अंक हासिल करने वाले लोग, योग्य अभ्यर्थी पर भारी पड़ रहे थे।
परन्तु अभी राजकीय इंटर कॉलेजों में सहायक अध्यापक (एलटी ग्रेड) के पद पर एकेडेमिक मेरिट के बजाए लिखित परीक्षा के आधार पर भर्ती की जायेगी। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह योगी सरकार की पारदर्शी भर्ती मंशा के साथ शिक्षा निदेशालय द्वारा गत दिनों एकेडेमिक मेरिट पर सहायक अध्यापकों की भर्ती न करने को शासन द्वारा लिखा गया पत्र भी है। अपर शिक्षा निदेशक माध्यमिक रमेश कुमार ने बताया कि राज्य सरकार के साथ पहली प्रेजेंटेशन बैठक में ही यह स्थिति साफ हो गयी थी। जिसके बाद ही टीचर भर्ती के लिये लिखित परीक्षा कराने संबंधी प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। जिसे स्वीकृत भी कर लिया गया है। सरकार की ओर से 2016 में आई 9342 टीचर भर्ती पर भी इसी वजह से रोक है। अब नये नियम का शासनादेश जारी होते ही भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।
*बदलाव के पीछे की बड़ी वजह*

इस बदलाव के पीछे की सबसे बड़ी वजह पिछली भर्ती है। जब एलटी ग्रेड में 6500 सीटों में से मात्र 2500 ने ही नौकरी ज्वॉइन की। यह इसलिये हुआ था, क्योंकि बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने फर्जी प्रमाण पत्र लगा दिये। जिससे एकेडेमिक मेरिट में वह आसानी से आ गये और उनका चयन भी हो गया। लेकिन जब विभागीय प्रमाण पत्र सत्यापन शुरू हुआ तो हजारों फर्जी प्रमाण की कहानी सामने आयी। आलम यह रहा कि 4000 अभ्यर्थी चयन होने के बावजूद नियुक्ति पत्र लेने नहीं पहुंचे। जबकि कई टीचर योगी सरकार आने के बाद प्रमाण पत्र की जांच में फंसे और नौकरी गंवानी पड़ी। इस नियम में जमकर हुई धांधली पर सरकार की खूब किरकिरी हुई। जिससे सबक लेते हुये योगी सरकार ने शुरूआती दिनों में ही बदलाव के संकेत दिये और भर्ती प्रकिया पर रोक लगा दी।
*साबित होगा बड़ा बदलाव*

अब नयी भर्ती प्रक्रिया को नया आयोग ही शुरू करेगा। जिसे अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग के रूप में स्वीकृत किया गया है। अपर शिक्षा निदेशक माध्यमिक रमेश कुमार ने बताया कि 25 दिसंबर 2016 को राजकीय इंटर कॉलेजों में 9342 एलटी ग्रेड शिक्षकों की एकेडेमिक मेरिट के आधार पर भर्ती के लिए आवेदन मांगे गये थे। पांच लाख से अधिक आवेदन आये हैं। लेकिन शिक्षा निदेशालय ने मेरिट के बजाए लिखित परीक्षा के आधार पर भर्ती करने का प्रस्ताव नई सरकार के समक्ष दिया था। जिसे हरी झंडी दी गई है।
*कैसे होता था चयन*

उत्तर प्रदेश में राजकीय इंटर कॉलेजों में एलटी ग्रेड शिक्षकों की एकेडेमिक मेरिट के आधार पर जो भर्ती हो रही थी। उस पर सवाल उठना लाजिमी और बदलाव आवश्यक था।

दरअसल शैक्षिक योग्यता के अंकों के आधार पर सहायक अध्यापकों की एकेडेमिक मेरिट तैयार होती थी। यानी अभ्यर्थी के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट, स्नातक एवं प्रशिक्षण के नंबरों को जोड़कर उसी के आधार पर मेरिट बनाई जाती है। फिर उच्च मेरिट वाले अभ्यर्थियों का चयन होता है।

यह बात जग जाहिर है कि यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में नकल का बोलबाला होता है। यानी बड़े पैमाने पर नकलची अच्छे नंबर हासिल कर लेते थे। इसके अलावा फर्जी प्रमाण पत्र भी बन जाते थे। जब मेरिट बनती तो इनके चमचमाते नंबर सबसे उपर आ जाते। जिससे योग्य तो बाहर हो जाते थे। लेकिन बड़ी संख्या में जुगाड़ वाले नौकरी पा रहे थे।

इसे लेकर टीजीटी-पीजीटी प्रतियोगी मोर्चा ने जमकर विरोध किया और लंबे समय से आंदोलनरत थे कि मेरिट के बजाए लिखित परीक्षा से भर्ती हो। नये सीएम योगी तक भी पारदर्शिता के लिये यह मांग पहुंचायी गयी। जिसे अब मान लिया गया है।
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