इलाहाबाद1किसान गेहूं व धान जैसी रूटीन फसलें अब नहीं उपजाते, वह तेजी से ‘कैश क्रॉप’ यानी नकदी फसलों की ओर बढ़ चले हैं। ठीक उसी तरह से डिग्री व डिप्लोमा देने वाली पढ़ाई का अब दौर नहीं रहा, बल्कि शिक्षा ऐसी हो जो ज्ञान के साथ रोजगार भी दे सके।
शिक्षा के साथ रोजगार दिलाने के लिए ही यूपी बोर्ड ने पुराने पाठ्यक्रम को बदलने की पहल की है। सरकार की मंशा है कि छात्र-छात्रओं को हाईस्कूल व इंटर स्तर पर ही ऐसी शिक्षा मिले जो उन्हें रोजगार भी दिलाए। 1माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट स्तर का पाठ्यक्रम अगले शैक्षिक सत्र से बदलने जा रहा है। प्रदेश की भाजपा सरकार ने यूपी बोर्ड का पाठ्यक्रम सीबीएसई यानी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की तर्ज पर बनाने का निर्देश दिया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि सूबे के अधिकांश माध्यमिक कालेजों का पाठ्यक्रम एक जैसा हो जाएगा। ज्ञात हो कि यूपी में अधिकांश माध्यमिक स्कूल यूपी बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड के ही हैं। पाठ्यक्रम के बदलाव का दूसरा प्रमुख कारण पढ़ाई को रोजगार से जोड़ा जाना रहा है। असल में देश व प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्न एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से ही आते हैं। आइएएस व पीसीएस जैसी अहम परीक्षाओं में चयनित मेधावी खुलेआम स्वीकार करते हैं कि उन्होंने एनसीईआरटी की किताबों से तैयारी की है। ऐसे में यह निर्णय हुआ कि यूपी बोर्ड के छात्र-छात्रओं को पढ़ाई करने के बाद अलग से एनसीईआरटी की किताबें न पढ़नी पड़े, बल्कि हाईस्कूल व इंटर की पढ़ाई के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी होती रहे। इसीलिए सरकार के निर्देश पर यूपी बोर्ड ने पाठ्यचर्या व पाठ्यक्रम समितियों की जुलाई व अगस्त में लगातार बैठकें कराकर नया पाठ्यक्रम तैयार किया है। इसमें 70 फीसदी हिस्सा सीबीएसई का लिया गया है, जबकि 30 फीसद पढ़ाई यूपी बोर्ड के पुराने पाठ्यक्रम से होनी है। इस संबंध में बोर्ड व एनसीईआरटी के अफसरों की दिल्ली में बैठक भी हो चुकी है, जिसमें यह तय हुआ है कि दिसंबर तक किताबें बाजार में मुहैया हो जाएं। इसमें रायल्टी आदि की प्रक्रिया तय हो रही है। बोर्ड सचिव नीना श्रीवास्तव का कहना है कि सारी तैयारी लगभग पूरी है, नए सत्र से नया पाठ्यक्रम लागू होगा, जो ज्यादा उपयोगी होगा।
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शिक्षा के साथ रोजगार दिलाने के लिए ही यूपी बोर्ड ने पुराने पाठ्यक्रम को बदलने की पहल की है। सरकार की मंशा है कि छात्र-छात्रओं को हाईस्कूल व इंटर स्तर पर ही ऐसी शिक्षा मिले जो उन्हें रोजगार भी दिलाए। 1माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट स्तर का पाठ्यक्रम अगले शैक्षिक सत्र से बदलने जा रहा है। प्रदेश की भाजपा सरकार ने यूपी बोर्ड का पाठ्यक्रम सीबीएसई यानी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की तर्ज पर बनाने का निर्देश दिया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि सूबे के अधिकांश माध्यमिक कालेजों का पाठ्यक्रम एक जैसा हो जाएगा। ज्ञात हो कि यूपी में अधिकांश माध्यमिक स्कूल यूपी बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड के ही हैं। पाठ्यक्रम के बदलाव का दूसरा प्रमुख कारण पढ़ाई को रोजगार से जोड़ा जाना रहा है। असल में देश व प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्न एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से ही आते हैं। आइएएस व पीसीएस जैसी अहम परीक्षाओं में चयनित मेधावी खुलेआम स्वीकार करते हैं कि उन्होंने एनसीईआरटी की किताबों से तैयारी की है। ऐसे में यह निर्णय हुआ कि यूपी बोर्ड के छात्र-छात्रओं को पढ़ाई करने के बाद अलग से एनसीईआरटी की किताबें न पढ़नी पड़े, बल्कि हाईस्कूल व इंटर की पढ़ाई के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी होती रहे। इसीलिए सरकार के निर्देश पर यूपी बोर्ड ने पाठ्यचर्या व पाठ्यक्रम समितियों की जुलाई व अगस्त में लगातार बैठकें कराकर नया पाठ्यक्रम तैयार किया है। इसमें 70 फीसदी हिस्सा सीबीएसई का लिया गया है, जबकि 30 फीसद पढ़ाई यूपी बोर्ड के पुराने पाठ्यक्रम से होनी है। इस संबंध में बोर्ड व एनसीईआरटी के अफसरों की दिल्ली में बैठक भी हो चुकी है, जिसमें यह तय हुआ है कि दिसंबर तक किताबें बाजार में मुहैया हो जाएं। इसमें रायल्टी आदि की प्रक्रिया तय हो रही है। बोर्ड सचिव नीना श्रीवास्तव का कहना है कि सारी तैयारी लगभग पूरी है, नए सत्र से नया पाठ्यक्रम लागू होगा, जो ज्यादा उपयोगी होगा।
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