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निम्न शर्तो के अनुसार ही शिक्षामित्रों को समान कार्य समान वेतन लागू हो सकता है

निम्न शर्तो के अनुसार ही समान कार्य समान वेतन लागू हो सकता है
शर्त_1. जिन पदों के सापेक्ष समान वेतन की माँग किया गया हैं, उस व्यक्ति की नियुक्ति उन्हीं पदों के सापेक्ष, समान नियोक्ता द्वारा ही की गई हों। भले ही टेम्परेरी, एडहॉक या संविदा शर्तों के साथ हो।
विवेचना:- नियमित शिक्षक, 1981 के शिक्षक सेवा नियमावली में परिभाषित "शिक्षक" पदों के सापेक्ष अर्ह अभ्यर्थियों की नियुक्ति, नियोक्ताधिकारी (बीएसए) द्वारा किया जाता हैं। जबकि "शिक्षामित्र पद" 1981 के सेवानियमावली में उपलब्ध नहीं था और ये मात्र ग्राम शिक्षा समिति के अध्यक्ष प्रधान द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में "सामुदायिक सेवा" उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक नियत मानदेय पर सेवा उपलब्ध कराने के शर्तों पर कार्यरत थे। इसके अतिरिक्त शिक्षामित्र योजना के तहत शिक्षामित्रों की सामुदायिक सेवा के लिए विद्यालय में न्यूनतम एक नियमित शिक्षक आवश्यक हैं व किसी विद्यालय में 2 शिक्षामित्र के अतिरिक्त शिक्षामित्र नहीं हो सकते।

उपरोक्त से स्पष्ट होता हैं कि नियमित शिक्षक व शिक्षामित्र समान नियोक्ता द्वारा नियुक्त व समान पद पर कार्यरत नहीं रहे हैं। अतः शर्त 1 के अनुसार शिक्षामित्र "समान कार्य समान वेतन" के दायरे में नहीं आते।

#शर्त_2- शैक्षिक व अन्य आवश्यक योग्यता समान होना चाहिए।
विवेचना:- फिलहाल तो शिक्षक नियुक्ति हेतु शिक्षण-प्रशिक्षण अहर्ता के साथ ही साथ टेट अनिवार्य हैं, इस मानक में शिक्षामित्र नहीं आते। फिर भी यदि हम 2001 से 2010 के मध्य नियुक्त शिक्षकों के अर्हता से तुलना करेंगे तो जहाँ तत्समय नियमित शिक्षक स्नातक के साथ ही साथ शिक्षण-प्रशिक्षण योग्यताधारी रहे हैं वहीं तत्समय शिक्षामित्र मात्र इंटरमीडिएट उत्तीर्ण सामुदायिक सेवाकर्मी रहे हैं। अतः शर्त 2 के अनुसार भी शिक्षामित्रों पर "समान कार्य समान वेतन" का सिद्धान्त प्रभावी नहीं होता।

#शर्त_3- कर्त्तव्य, दायित्व और कार्य की प्रकृति समान होने चाहिए।
विवेचना: उपरोक्त दोनों विवेचना से स्पष्ट हैं कि शिक्षामित्र और नियमित शिक्षक के कर्तव्य और दायित्व समान नहीं थे। जैसे बगैर नियमित शिक्षक के विद्यालय में शिक्षामित्र नियुक्त नहीं हो सकता हैं। अधिकतम दो शिक्षामित्र ही नियुक्त हो सकते थे। इससे स्पष्ट हैं कि शिक्षामित्र, नियमित शिक्षकों के महज सहायक के रूप में थे और न ही शैक्षिक योग्यता व कार्य की प्रकृति समान थी। इसलिए यहां भी उक्त सिद्धांत प्रभावी नहीं होता।

हालांकि संविधान का अनुच्छेद 21, 38 व 39 स्टेट को अपनी वित्तीय क्षमता के आधार यह शक्ति देता हैं कि वह अपने नागरिकों के समुचित व समग्र विकास के लिए "समान कार्य समान वेतन" की अवधारणा अपनाए। परन्तु अनुच्छेद 14 "असमान को समान" मानने पर युक्तियुक्त प्रतिबंध भी अध्यारोपित करता हैं।

विश्लेषण और विवेचना और भी विस्तृत हो सकती हैं परंतु मैं उपर्युक्त मुख्य बिन्दुवों के साथ इस पोस्ट को यहीं खत्म करता हूँ। स्टेट द्वारा भीड़तंत्र के दबाव में उठाये गए आगामी असंवैधानिक कदम की न्याययिक विवेचना भलीभाँति इस सिद्धांत की सार्थकता को तय करेगा। धन्यवाद्
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