5 साल के दौरान उप्र लोक सेवा आयोग से हुई भर्तियों में सीबीआइ जांच में उजागर हो रही मनमानी

सीबीआइ जांच में उजागर हो रही मनमानी

राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : पांच साल के दौरान उप्र लोकसेवा आयोग से हुई भर्तियों में पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव की मनमानी सीबीआइ के सामने तेजी से उजागर हो रही है। मेधावी अभ्यर्थियों के भविष्य से किस तरह खिलवाड़ किया गया यह बताने के लिए पीसीएस 2015 ही नहीं, समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी 2014 परीक्षा ही काफी है। अभ्यर्थियों की जो शिकायतें सीबीआइ के एसपी राजीव रंजन को मिली हैं उनमें पता चला कि जिनके कटऑफ से नंबर काफी अधिक थे उन्हें भी मनमाने तरीके से फेल कर दिया गया।
गाजीपुर की एक महिला अभ्यर्थी ने सोमवार को ही सीबीआइ के समक्ष अपनी व्यथा बताई थी, जिसे लेकर जांच टीम आयोग भी पहुंची थी। उसकी हैंडराइटिंग का फार्म पर मिलान किया गया। पता चला कि अभ्यर्थी की हैंडराइटिंग से जो वरीयता क्रम भरा गया है उसे तीन बार अलग-अलग हैंडराइटिंग से काटा गया। सूत्र बताते हैं कि आयोग ने इस कटिंग की पुष्टि भी की है। आयोग के सचिव के सामने अभ्यर्थी का बयान भी दर्ज हुआ। वहीं पर फार्म का वरीयता क्रम भी दिखाया गया। अभ्यर्थी का कहना है कि वह कोर्ट गई तो आयोग ने कोई दस्तावेज दिए बिना ही बता दिया कि अभ्यर्थी ने वरीयता क्रम भरा ही नहीं है। इस कारण कोर्ट ने आयोग को अपने स्तर से निस्तारण करने का निर्देश दिया। अभ्यर्थी ने सीबीआइ को कोर्ट का आदेश और पूरी फाइल काउंटर रिज्वाइंडर तक उपलब्ध कराया है। सीबीआइ अब उसकी तलाश में जुट गई है जिसकी हैंडराइटिंग से अभ्यर्थी की ओर से भरे गए वरीयता क्रम पर कटिंग की गई।
वहीं, ऐसा ही दूसरा मामला सीबीआइ के एसपी राजीव रंजन के समक्ष मंगलवार को भी कैंप कार्यालय में आया। आरओ-एआरओ 2014 के एक अभ्यर्थी प्रवीण दुबे ने बताया कि समीक्षा अधिकारी परीक्षा में उसके नंबर कटऑफ मेरिट के बराबर हैं और सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा में नंबर कट ऑफ से 110 अंक अधिक हैं।
इसके बाद भी उसका चयन नहीं हुआ। फेल करने के बाद आयोग ने इसका कारण नहीं बताया। जनसूचना अधिकार के तहत उसने जानकारी मांगी, जिसे आयोग ने अब तक नहीं दिया है।

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