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बिडम्बना यह है कि आज तक शिक्षामित्रों के दर्द को अन्य किसी ने परखा ही नहीं, सिवाय शिक्षामित्रों के!

अब समय की बिडम्बना यह है कि आज तक शिक्षामित्रों के दर्द को शिक्षामित्रों ने ही परखा! अन्य किसी ने नहीं
जैसा कि इस समय अपने भविष्य को सुरक्षित करने हेतु प्रदेश का आम पौने दो लाख पीड़ित शिक्षामित्र हर तरह से अपनी समस्या का हल निकालने के लिए संघर्ष कर रहा है लेकिन बिडम्बना यह है कि चाहें देश के
उपराष्ट्रपति श्री बेंकैया नायडू जी हो, या देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी हो, या यूपी के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ जी हो, केवल उक्त पीड़ितों को डाबर जन्म खुट्टी पिलाने के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया और न समझा, यदि उक्त पीड़ितों के दर्द को वास्तविक रुप से परखा होता तो, आज की तिथि में न तो 700/- से अधिक शिक्षामित्रों ने आत्महत्या की होती और न ही कल दिनांक - 27 जून को दिनेश पाल नाम का अति पीड़ित शिक्षामित्र अपनी जान देने के लिए ईको गार्डन में पेड़ पर चढ़ करके फांसी लगाने हेतु प्रयास करने की आवश्यकता पड़ती!

बहरहाल अब तो बहन उमा देवी जी के नेतृत्व मे गतिमान आमरण अनशन ही उक्त पीड़ित शिक्षामित्रों के साथ न्याय दिलाने में शायद सफलता हासिल कर लें!

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