पिछले एक दशक से रोजगार की तलाश में भटकता युवा राजनीतिक दलों के लिए
सत्ता हासिल करने का टूल बनकर रह गया है। भर्ती के हर विज्ञापन के साथ
युवाओं की उम्मीदें परवान चढ़ती हैं लेकिन रेगिस्तान में मरीचिका की तरह ही
मंजिल आगे खिसकती जाती है।
आखिर क्या वजह है कि किसी भी भर्ती संस्था में
ऐसा तंत्र नहीं विकसित किया जा सका जो तय समय में प्रतियोगी छात्रों को
नियुक्ति पत्र पकड़ा सके। लोक सेवा आयोग में प्रतियोगी परीक्षाएं देते-देते
बूढ़े हो रहे हैं। माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग और उच्चतर शिक्षा सेवा
आयोग का भी यही हाल है और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में भर्तियां विवादों में
घिरी रहीं। युवाओं में कुंठा है तो उनका परिवार बेटे की नौकरी की आस में कई
सपने संजोए बैठा है और इधर पीसीएस जैसी परीक्षा में गलत पेपर बांट दिए जा
रहे हैं। इससे युवाओं का मनोबल तो गिर ही रहा है उनमें भविष्य को लेकर
आशंकाएं भी बढ़ती जा रही हैं। यह सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि
परीक्षाओं के परिणाम में विलंब की वजह से छात्रों को अवसाद की स्थिति से
गुजरना पड़ रहा है। 1भर्तियों में विलंब की स्थिति यह है कि माध्यमिक
शिक्षा सेवा चयन आयोग एलटी शिक्षकों के लिए 2010 में विज्ञापित भर्ती के
परिणाम अभी तक नहीं दे सका है। यही हाल उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का रहा
जहां कि 2014 में विज्ञापित हुई डिग्री कालेजों शिक्षकों की भर्ती अभी तक
पूरी नहीं हो पाई। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की कई भर्तियां भी विजलेंस जांच
के दायरे में है और उनके अभ्यर्थी भी परिणाम के इंतजार में बैठे हैं।
समीक्षा अधिकारी 2016 की प्रारम्भिक परीक्षा 27 नवंबर 2016 में हुई थी
जिसमें पेपर आउट की एफआइआर हुई है, इसका भी परिणाम नहीं आ सका। इसी तरह
सांख्यकीय अधिकारी, इंजीनियरिंग सर्विस आदि के दर्जनों पदों की भर्तियां
लंबित हैं। प्रदेश में ऑनलाइन से लेकर लिखित परीक्षाओं में धांधली के मामले
भी लगातार बढ़ रहे हैं। इसी महीने परीक्षाओं में धांधली के 11 मामले
एसटीएफ ने पकड़े हैं। खासकर ऑनलाइन परीक्षा संचालित कराने वाली संस्थाओं की
भूमिका को लेकर बड़े सवाल खड़े हुए हैं। इन सारे सवालों पर सरकार को विचार
करना चाहिए।
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