बिना मान्यता चल रहे स्कूलों पर कार्रवाई के लिए एक बार फिर से प्रदेश
सरकार ने कमर कस ली है। मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशकों और जिला बेसिक शिक्षा
अधिकारियों से शुक्रवार तक ऐसे स्कूलों पर कृत कार्रवाई से अधिकारियों को
ई-मेल से अवगत कराने का निर्देश दिया गया है।
राज्य में निशुल्क और बाल
शिक्षा अधिकार नियमावली -2011 लागू है, जिसके अनुसार बिना मान्यता प्राप्त
किए स्कूल खोलना और उसे चलाना दोनों ही दंडनीय है। सरकार की ओर से पूछा गया
है कि बिना मान्यता के चल रहे कितने स्कूलों को अब तक नोटिस दी गई और
कितनों के खिलाफ रपट दर्ज कराई गई। इसके बाद से विभागीय सक्रियता काफी बढ़
गई है। बिना मान्यता वाले स्कूलों के प्रबंधक अपने स्कूल को बचाने का
रास्ता खोजने में जुट गए हैं। 1बिना मान्यता के स्कूल हर कोने में हैं। ऐसे
स्कूलों को खुलने और उनके मुनाफा कमाने के पीछे कहीं न कहीं सरकारी
स्कूलों की व्यवस्था को दोषी ठहराया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र के
अभिभावकों में भी अब प्राइवेट विद्यालयों में बच्चे भेजने का क्रेज है,
चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या न हों। सरकारी स्कूलों की छात्र संख्या
आमतौर पर मिड डे मील पर निर्भर दिखती है। इसी कारण उन प्राथमिक विद्यालयों
में छात्र संख्या संतोषजनक नहीं हो पा रही जहां अच्छी पढ़ाई होती है और
संसाधन भी प्राइवेट से कमतर नहीं हैं। राज्य सरकार अगर ऐसे अवैध अथवा फर्जी
विद्यालयों पर लगाम लगाती है तो सबसे पहले तो अभिभावकों का आर्थिक शोषण
रुकेगा। दूसरे, सरकारी पाठ्यक्रम के मुताबिक बच्चों की पढ़ाई हो सकेगी और
तभी प्रदेश की सही मायने में उन्नति हो सकेगी। तभी हर कक्षा के विद्यार्थी
का बौद्धिक स्तर उंचा होगा। तभी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में हर
क्षेत्र की प्रतिभा सफलता हासिल कर सकेगी। सबको शिक्षा और समान शिक्षा की
नीति का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। यह सही समय है जब अवैध विद्यालयों
पर शिकंजा कसा जा सकता है। सरकार को चाहिए कि उच्च स्तर पर अपने इन
प्रयासों की सतत मॉनीटरिंग करके शिक्षा के क्षेत्र को साफ-सुथरा बनाएं।
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