अलीगढ़ के 8000 शिक्षकों में से एक भी आदर्श नहीं, जानिए क्यों

 अलीगढ़ : ये हैरत करने वाली बात है कि जिले में करीब आठ हजार शिक्षक हैं, लेकिन इनमें एक भी आदर्श शिक्षक नहीं है। ये बात बेहद गंभीर है। अध्यापक अपने संयम, सदाचार, आचरण, विवेक, सहनशीलता से बच्चों को महान बनाते हैं, लेकिन ज्यादातर अध्यापक कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं।
विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों का भी नैतिक पतन हुआ है। आदर्श शिक्षक होने के गुणों का अभाव है। अलीगढ़ में कक्षा एक से आठ तक के सरकारी स्कूलों में आदर्श गुरुजी का टोटा है। जिले से एक भी शिक्षक का नाम राज्य पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए नहीं भेजा गया है। जिले में 1776 प्राइमरी व 735 जूनियर हाईस्कूल हैं। इनमें लगभग आठ हजार शिक्षक-शिक्षिकाएं पढ़ाते हैं। यह पुरस्कार पाने के लिए कड़े नियमों पर खरा उतरना होता है। जैसे 15 साल एक ही पोस्ट पर तैनाती, उत्कृष्ट कार्य के प्रमाणपत्र, सीआर (कैरेक्टर रोल) साफ-सुथरा होना, पूरे कार्यकाल के दौरान निलंबन, प्रतिकूल प्रविष्टि व अन्य कार्रवाई न होना, शत-प्रतिशत छात्र संख्या व परिणाम आदि। प्रदेश सरकार की ओर से हर जिले से न्यूनतम एक शिक्षक का नाम इस सम्मान के लिए भेजने पर जोर दिया गया था। इसके आवेदन की अंतिम तिथि 31 जुलाई थी। मगर, जिले से एक भी शिक्षक का नाम नहीं भेजा जा सका है। अफसरों का कहना है कि हर खंड शिक्षा अधिकारी से उत्कृष्ट व पात्र शिक्षक के आवेदन प्राप्त करने को कहा गया था। मगर नगर क्षेत्र समेत किसी भी ब्लॉक से किसी शिक्षक का आवेदन नहीं मिला।

प्रमाणपत्रों ने अटकाया सम्मान
नगर क्षेत्र के पूर्व माध्यमिक कन्या विद्यालय दोधपुर की इंचार्ज प्रधानाध्यापिका गजाला नसरीन का कहना है कि वे इस पुरस्कार के लिए योग्यता रखती हैं। पिछले साल उनका नाम पुरस्कार के लिए चयनित हुआ था, लेकिन तब जरूरी प्रमाणपत्र नहीं आ पाए थे। इस साल जरूरी प्रमाणपत्र आ गए तो आवेदन की अंतिम तिथि निकल गई। कहा, अब अगले साल आवेदन करेंगी।
शिक्षकों ने नहीं किया आवेदन

सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी बीबी पांडेय ने बताया कि सभी एबीएसए को आवेदन प्राप्त करने के निर्देश थे। मगर, किसी शिक्षक का आवेदन नहीं आया। जिले से इस पुरस्कार के लिए कोई भी नाम नहीं भेजा गया है।
आदर्श शिक्षक में होने चाहिए ये गुण
एक आदर्श अध्यापक अच्छे और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण होता है। उन्हें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए, जो अध्यापक समय का पालन करता है और योजना बनाकर विषय अनुसार ज्ञान प्रदान करता है वही सही गुरू कहलाता है। समय बड़ा बलवान होता है।
मृदु भाषी होना जरूरी
हिन्दी भाषा एक मधुर और मीठी भाषा है। एक अध्यापक को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए, जिससे बच्चे उन से प्यार करें, उन्हें अपनी भावनाओं और मन की इच्छाओं को व्यक्त करने में कोई झिझक न हों। मृदु भाषी से हम संसार को जीत सकते हैं परन्तु क्त्रोध, अहंकार, लोभ, मद से हमारी हार होती है। अध्यापक अपनी वाणी से बच्चों का मन जीत ले तो बच्चे उन के हो जाते हैं।
धैर्य और सहनशीलता जरूरी
अध्यापक में धैर्य और सहनशीलता होनी चाहिए, जिससे न केवल बच्चे परन्तु आस-पास के लोग उन की प्रशसा के पुल बाधे और उन से आकर्षित हो। शिक्षक में सहनशीलता का होना बेहद जरूरी है। विद्यार्थी यदि गुस्सा दिलाए तो भी सहन कर लेना चाहिए।
बच्चों को दे सभी और संस्कृति का ज्ञान
अध्यापक बच्चों को धर्म, संस्कृति, संगीत और धार्मिक त्योहार से अवगत कराए। त्योहार हिन्दू ,मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई के लिए खुशियां और प्यार लाता है। त्योहार रिश्तों के संबंधों को मजबूत बनाता है। रामायण की कथा सुनाकर श्री रामचन्द्र जी, लक्ष्मण जी , शत्रुघ्न तथा भरत के प्रेमको प्रदर्शित करने की कोशिश करें। बच्चों को सभी धर्मो का ज्ञान देना बेहद जरूरी है।
बच्चों को अनुशासन सिखाने वाला हो शिक्षक

अध्यापक को अपने बच्चों को अनुशासन सिखाना चाहिए। व्यक्ति को अपने विकास, जीवन, समाज और राष्ट्र के विकास के लिए अनुशासन बहुत जरूरी है। एक अनुशासित अध्यापक अपने बच्चों का मार्ग दर्शक होता है।