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केंद्र सरकार की इस कवायद को 2019 की चुनावी तैयारी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। यही वजह है कि सरकार ने इसके लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार कर तेजी से काम करने में जुटी है। यह बात अलग है कि इनमें राज्यों की भूमिका अहम होगी, क्योंकि यह विषय केंद्र से ज्यादा राज्य सरकारों के दायरे में आता है। फिर भी स्कूली शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए एक बड़ा बजट केंद्र से ही राज्यों को जाता है। ऐसे में केंद्र इस मामले में राज्यों पर दबाव बना सकती है। सरकार का मानना है कि वह इन पदों को भरकर युवाओं के बीच एक बड़ा संदेश दे सकती है। राजनीतिक लिहाज से यह काफी अहम कदम होगा। सरकार ने अपनी यह पूरी कवायद हाल ही में स्कूली शिक्षा को एक दायरे में लाने के कदम के बाद तेज की है। इसे समग्र शिक्षा अभियान नाम दिया है, जिसमें प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा दोनों हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में देश भर के स्कूलों में शिक्षकों के जो दस लाख से ज्यादा पद खाली है, उनमें 9,00,316 पद अकेले प्राथमिक स्कूलों में खाली है, जबकि 1,07,689 पद माध्यमिक स्कूलों में खाली है। इनमें प्राथमिक स्तर पर सबसे ज्यादा 2.24 लाख पद अकेले उत्तर प्रदेश में ही खाली है। दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां 2.03 लाख पद खाली है। यह सभी पद स्वीकृत पदों में से खाली है। वहीं माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के सबसे ज्यादा 21,221 पद जम्मू-कश्मीर में खाली है, जहां शिक्षकों के 25,657 कुल स्वीकृत के मुकाबले सिर्फ 4436 पद ही भरे हुए है। माध्यमिक स्तर पर भी दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां शिक्षकों के 17 हजार से ज्यादा पद खाली है। उत्तर प्रदेश में भी माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के 6866 पद रिक्त हैं।