आजमगढ़ के अशर्फाबाद गांव में रहने वाले 23 वर्षीय मनोज
सिंह बेहद गरीब परिवार से हैं. पिता एक थोड़ी सी जमीन पर खेती करते हैं
जिससे उनके परिवार का गुजारा नहीं हो पाता. पिता का बोझ कम करने के लिए
मनोज ने शिक्षक बनने की सोची.
- 68500 की भर्ती प्रक्रिया में हुआ है घोटाला , शिक्षामित्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ : उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ
- पीएचडी महिला शिक्षामित्र ने योगी सरकार पर बोला हमला, 68500 शिक्षक भर्ती पर दिया ये बयान
- लखनऊ कोर्ट अपडेट: SPL appeal Avinash Kumar and Others की निर्णायक बहस आज माननीय हाई कोर्ट में
- UPTET 2011: बीएड-टीईटी वाले 5 को करेंगे अटल आंदोलन, 72825 एकेडमिक रिकॉर्ड के आधार पर शुरू करने की करेंगे मांग
- शिक्षक भर्ती में तय पदों के सापेक्ष खाली रहेंगी हर वर्ग की सीटें, जनवरी को भर्ती व 18 अगस्त को चयन के शासनादेश में 68500 ही दर्ज
- परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों के नवनियुक्त शिक्षकों को श्री योगी आदित्यनाथ मा0 मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश द्वारा नियुक्त पत्र वितरण कार्यक्रम जारी: देखें पूरे कार्यक्रम की रूप रेखा
लिखित परीक्षा में उत्तर पुस्तिका की कार्बन कॉपी को घर
लाकर जब मनोज ने उत्तर का मिलान किया तो उन्हें विश्वास हो गया कि उन्हें
अच्छे अंक मिलेंगे. मनोज शिक्षक बनने के सपने देखने लगे. लेकिन 13 अगस्त को
जब परीक्षा परिणाम आया तो मनोज के सपने बिखर गए. वे परीक्षा में फेल हो
चुके थे. मनोज बताते हैं, ‘‘मुझे लिखित परीक्षा में मात्र 19 अंक दिए गए
जबकि कार्बन कॉपी से उत्तर का मिलान करने पर मुझे किसी भी कीमत पर 80 से कम
अंक नहीं मिलने का भरोसा था.’’
उन्होंने भर्ती प्रक्रिया आयोजित कराने वाली संस्था
परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय, इलाहाबाद में कॉपी देखने का प्रयास
किया पर सफलता नहीं मिली. निराश मनोज ने हाइकोर्ट की शरण ली. कोर्ट के आदेश
से मनोज को उत्तर पुस्तिका की ‘स्कैन’ कॉपी देखने को मिली. स्कैन कॉपी
देखते ही मनोज अचरज में पड़ गए.
लिखित परीक्षा में 19 अंक पाकर भर्ती प्रक्रिया से बाहर
हो जाने वाले मनोज को उत्तर पुस्तिका में 98 अंक मिले थे. मनोज के मित्र
और आजमगढ़ में उनके पड़ोस के गांव बिलावल में रहने वाले अंकित वर्मा भी
नतीजे में 22 अंक पाकर फेल घोषित हो गए थे जबकि उत्तर पुस्तिका में उन्हें
122 अंक मिले थे.
प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षकों के 68,500 पदों पर
भर्ती के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की सबसे बड़ी शिक्षक
भर्ती प्रक्रिया गड़बडिय़ों की भेंट चढ़ गई है. 13 अगस्त को सहायक शिक्षक
भर्ती का नतीजा आने के बाद से अभ्यर्थी इसमें गड़बडिय़ों की जांच की मांग को
लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. 31 अगस्त को हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीड ने जब
अनुसूचित जाति की अभ्यर्थी सोनिका देवी की कॉपी परीक्षा नियामक प्राधिकारी
से तलब की तो गड़बडिय़ों से पर्दा उठ गया.
कोर्ट को पता चला कि सोनिका देवी की कॉपी ही बदल गई है.
इसके बाद हाइकोर्ट ने अन्य अभ्यर्थिकयों को भी उत्तर पुस्तिका की स्कैन
कॉपी दिखाने को कहा. इसके बाद तो अभ्यर्थि.यों के भविष्य के साथ हुआ
खिलवाड़ पूरी तरह सामने आ गया. बड़ी संख्या में उन अभ्यर्थि.यों को फेल कर
दिया गया था जिन्हें लिखित परीक्षा में काफी अच्छे अंक मिले थे. वहीं दो
ऐसे अभ्यर्थिययों को भर्ती प्रक्रिया में सफल घोषित किया गया जो परीक्षा
में शामिल भी नहीं हुए थे.
बेसिक शिक्षा विभाग में 68,500 पदों पर सहायक शिक्षकों
की भर्ती प्रक्रिया इस वर्ष 25 जनवरी को शुरू हुई थी. यह भाजपा सरकार की
महत्वाकांक्षी शिक्षक भर्ती परीक्षा थी. इसमें जमकर धांधली (देखें बॉक्स)
सामने आने पर डैमेज कंट्रोल करते हुए मुख्यमंत्री ने परीक्षा नियामक
प्राधिकारी की सचिव सुत्ता सिंह को निलंबित कर उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी.
बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव पद पर लंबे वक्त से जमे संजय सिन्हा और
रजिस्ट्रार, विभागीय परीक्षाएं जितेंद्र सिंह ऐरी को पद से हटा दिया गया.
मुख्यमंत्री ने प्रमुख सचिव, चीनी एवं गन्ना विकास संजय
भूसरेड्डी की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन कर दोषियों के खिलाफ
कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के सचिव
आर.पी. मिश्र कहते हैं, ‘‘विपक्षी सरकारों में चयन संस्थाओं में गड़बडिय़ों
का आरोप लगाने वाली भाजपा अब अपनी सरकार में ऐसा कोई तंत्र तैयार नहीं कर
पाई है जो इन संस्थाओं की छवि सुधार सके. शिक्षक भर्ती में गड़बड़ी इसकी
मिसाल है.’’
दागी अफसरों पर भरोसा
सरकार ने जैसे ही शिक्षक भर्ती में गड़बड़ी के दोषी अधिकारियों पर
कार्रवाई की, उसके कुछ ही देर बाद इलाहाबाद में परीक्षा नियामक कार्यालय
में भर्ती प्रक्रिया में शामिल अभ्यर्थियों की कॉपियां जला दी गईं. मौके पर
पहुंचे अभ्यर्थिरयों को इन्हीं जली कापियों के बीच छात्रा सोनिका देवी की
जली हुई ओएमआर शीट भी मिली जिसने हाइकोर्ट में याचिका दायर कर अपनी कॉपी
बदले जाने का आरोप लगाया था. परीक्षा नियामक कार्यालय की सचिव पद पर तैनात
रहीं सुत्ता सिंह पर भाजपा सरकार की मेहरबानी भर्ती प्रक्रिया में किरकिरी
की वजह बनी है.
सुत्ता सिंह के कार्यकाल में उस दागी एजेंसी पर भरोसा
जताकर उसे शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी)-2017 की जिम्मेदारी सौंपी गई जिस
पर माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड की प्रवक्ता, स्नातक शिक्षक भर्ती परीक्षा
और वर्ष 2013 की टीईटी में गड़बड़ी करने का आरोप था.
इस पर निदेशक, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं शैक्षिक
परिषद ने तत्कालीन सचिव, परीक्षा नियामक प्राधिकारी से जवाब मांगा था पर
सुत्ता सिंह की हनक के आगे किसी की कुछ न चली. मेहरबानी का आलम यह था कि
सुत्ता सिंह को निलंबित करने से पहले सरकार ने उन्हें शिक्षक भर्ती
प्रक्रिया में अनियमितता के आरोप जांचने के लिए सचिव, बेसिक शिक्षा मनीषा
त्रिघटिया की अध्यक्षता में बनी कमेटी का सदस्य बनाया था.
शिक्षक भर्ती में गड़बडिय़ों के खिलाफ आंदोलनरत इलाहाबाद
के जितेंद्र शाही बताते हैं, ‘‘भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी के लिए
परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय जिम्मेदार है. इसके तत्कालीन सचिव को
ही जांच समिति का सदस्य बनाकर सरकार ने पूरे मुद्दे को ठंडे बस्ते में
डालने की चाल चली थी जो हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सामने आ गई.’’ बेसिक
शिक्षा परिषद के पूर्व सचिव संजय सिन्हा को लंबे वक्त तक अहम पद पर तैनात
रखे जाने पर भी सवाल खड़े हुए हैं.
हर कदम पर गोलमाल
संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में गठित समिति को कई स्तरों पर गड़बडिय़ों
का पता चला है. उसे जानकारी मिली है कि परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय
ने जांची गई कॉपियों के नंबर दर्ज करने से पहले उन्हें कई स्तर पर
‘क्रॉसचेक’ नहीं किया. कॉपियों के मूल्यांकन के बाद नंबर ‘अवार्ड ब्लैंक’
पर चढ़ाए गए थे. कई अभ्यर्थिययों की कॉपियों में अंक की जगह बारकोड नंबर या
अन्य सूचनाएं दर्ज की गई हैं. कुछ अनुपस्थित अभ्यर्थिायों के आगे नंबर
दर्ज हो गए और उपस्थित अभ्यर्थिहयों को अनुपस्थित दिखा दिया गया. परीक्षा
में पारदर्शिता बरतने के लिए देश में ज्यादातर परीक्षाएं बहुविकल्पीय ढंग
से ओएमआर शीट पर संपन्न हो रही हैं.
इसके उलट शिक्षक भर्ती परीक्षा ‘सब्जेक्टिव’ ढंग से
कराई गई. शिक्षक भर्ती में गड़बड़ी के विरोध में हाइकोर्ट में अपील करने
वाले सिद्घार्थ कुमार बताते हैं, ‘‘सब्जेक्टिव परीक्षा में हमेशा नंबरों के
हेरफेर की गुंजाइश रहती है. यह बात शिक्षक भर्ती के नतीजे से अब साबित हो
गई है.’’
जांच समिति की रिपोर्ट में भर्ती प्रक्रिया में कुछ
अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा सकती है. जांच समिति को
इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि लिखित परीक्षा के अंक दर्ज करने में
बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है, सो निर्धारित पदों के सापेक्ष काफी कम
अञ्जयर्थी उत्तीर्ण हुए थे.
अब जबकि सरकार चयनित अभ्यर्थि्यों को नियुक्ति पत्र
बांट चुकी है, ऐसे में उसके सामने सबसे बड़ी चिंता नए अभ्यर्थिसयों के चयन
को लेकर है. दुविधा इस बात को लेकर है कि किस तरह पूरा परिणाम नए सिरे से
घोषित किया जाए. अगर नए सिरे से मेरिट बनती है तो कई अभ्यर्थितयों के
आवंटित जिले में परिवर्तन होगा.
पिछली सपा सरकार में हुई भर्तियों पर सवाल खड़े करने
वाली भाजपा अब लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में अपनी सरकार में खुद उन्हीं
सवालों से घिर गई है. इन सवालों का जवाब ही युवाओं में भाजपा सरकार के
प्रति विश्वास का पैमाना बनेगा.
सरकार से राहत पाने की जंग
लखनऊ में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर विधानभवन के सामने लोकभवन
में राज्य अध्यापक पुरस्कार समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
शिक्षकों का सम्मान कर रहे थे. वहीं कुछ ही दूरी पर शिक्षक बाल मुंड़वाकर
सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर कर रहे थे.
ये वित्तविहीन शिक्षक थे जो मानदेय की मांग को लेकर कई
दिनों से आंदोलनरत थे. उनके प्रदर्शन ने तामझाम से हो रहे सरकारी कार्यक्रम
में खलल डाला और इसकी टीस मुख्यमंत्री के भाषण में भी दिखी. उन्होंने तंज
कसते हुए कहा, ‘‘आज वे लोग भी सिर मुंड़वाकर शिक्षक का सम्मान मांग रहे हैं
जो इसकी योग्यता नहीं रखते.’’ मुख्यमंत्री ने इन वित्तविहीन शिक्षकों की
मानदेय की मांग यह कहकर खारिज कर दी कि वे इसकी योग्यता ही नहीं रखते.
पर शिक्षा विभाग की राय उनसे जुदा है. माध्यमिक शिक्षा
निदेशक ने 30 अगस्त को मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी अजय कुमार सिंमह
को पत्र लिखकर सूचना दी कि वित्तविहीन विद्यालयों में शिक्षकों के मानदेय
का भुगतान करने की नीति शासन स्तर पर विचाराधीन है, सो उनकी मांग नीतिगत
है. शिक्षा निदेशक के इस पत्र ने प्रदेश के 21,000 वित्तविहीन कॉलेजों के
1,92,000 शिक्षकों को पिछली सपा की सरकार में मिल रहे मानदेय की मांग को
नीतिगत ठहरा दिया.
वर्ष 1986 में तत्कालीन राज्य सरकार ने ‘इंटरमीडिएट
एजुकेशन ऐक्ट’-1921 में नियम 7 (क) (क) जोड़ा जिसके तहत कक्षा 9 से कक्षा
12 तक नए विषय पढ़ाने के लिए दो वर्ष तक वित्तविहीन कॉलेज खोलने की अनुमति
दी गई. इन कॉलेजों को सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मिलनी थी. इस नीति से
प्रदेश में वित्तविहीन कॉलेजों की बाढ़ आ गई जिन्होंने काफी कम वेतन में
शिक्षकों को अपने यहां नौकरी देना शुरू किया.
25 वर्षों में ऐसे वित्तविहीन कॉलेजों की संख्या
21,000 पार कर गई और इन्होंने साढ़े तीन लाख शिक्षकों को कम वेतन पर रोजगार
दिया. वर्ष 2010 में हाइकोर्ट ने इन वित्तविहीन शिक्षकों को विधान परिषद
में शिक्षक चुनाव क्षेत्र के लिए होने वाले चुनाव में मतदाता माना.
प्रदेश में वित्तविहीन शिक्षकों की भारी संख्या ने
अपने बीच से लखनऊ से विधान परिषद में शिक्षक चुनाव क्षेत्र में लखनऊ से
उम्मीदवार उमेश द्विवेदी और बरेली से संजय मिश्र को चुनाव जिताया. इसी
चुनाव के बाद और 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले, तत्कालीन सपा सरकार ने इन
शिक्षकों को लुभाने का दांव चला. उसने वर्ष 2010 तक मान्यता वाले
वित्तविहीन कॉलेजों में कार्यरत प्रधानाचार्य को हर महीने 1,040 रु.,
प्रवक्ता को 980 रु. और सहायक शिक्षक को 840 रु. मानदेय तय किया.
इसके लिए 2015-16 के बजट में सपा सरकार ने 200 करोड़
रु. तय किए. मानदेय नियमों में 1,92,000 वित्तविहीन शिक्षक आए जिन्हें
मार्च 2016 से अप्रैल 2017 तक निर्धारित राशि मिलती रही.
पिछले वर्ष मार्च में भाजपा सरकार बनने के बाद
वित्तविहीन शिक्षकों के मानदेय के लिए बजटीय प्रावधान खत्म कर दिया गया.
सरकार का तर्क है कि वित्तविहीन कॉलेज प्रबंधन मान्यता लेते वक्त यह
शपथपत्र देता है कि वह सरकार से कोई मदद नहीं मांगेगा.
माध्यमिक शिक्षा विभाग के एक अधिकारी कहते हैं, ‘‘सपा
सरकार में वित्तविहीन शिक्षकों को मानदेय दिलाने वाले शासनादेश में स्पष्ट
कहा गया है कि इसे भविष्य में दृष्टांत नहीं माना जाए. सो बजट में इसका
प्रावधान नहीं किया गया है.’’ उत्तर प्रदेश माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक
महासभा के महासचिव अजय सिंह ‘एडवोकेट’ शिक्षकों के आंदोलन को तेज करने की
तैयारी कर रहे हैं.
वे कहते हैं, ‘‘प्रदेश के कुल 87 फीसदी बच्चे
वित्तविहीन कॉलेजों में पढ़ते हैं. इनका भविष्य संवारने वाले साढ़े तीन लाख
शिक्षकों पर सरकार एक पैसा नहीं खर्च कर रही है जिससे ये बेहद गरीबी में
जीवन जी रहे हैं.’’ वैसे उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘‘सरकार को
शिक्षकों से सहानुभूति है, उनके साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.’’
इस तरह चला गड़बडिय़ों का सिलसिला
गलत प्रश्न: 15 अक्तूबर, 2017 को हुई टीईटी में अभ्यर्थिियों ने एक
दर्जन से ज्यादा प्रश्नों पर आपत्तियां जताई. हाइकोर्ट ने गलत सवालों को
डिलीट कर सरकार से टीईटी की नई मेरिट लिस्ट बनाने को कहा. इसके बाद 12
मार्च को प्रस्तावित शिक्षक भर्ती परीक्षा को टालना पड़ा. बाद में कोर्ट ने
तीन प्रश्नों को गलत माना.
कट ऑफ:27 मई को प्रस्तावित शिक्षक भर्ती परीक्षा के एक
हक्रता पहले शासन ने कट ऑफ में बदलाव करते हुए इसे ओबीसी और सामान्य
अभ्यर्थिीयों के लिए 33 प्रतिशत और एससी-एसटी के लिए 30 प्रतिशत कर दिया.
बीच परीक्षा प्रकिया में कटआफ में बदलाव को हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया.
सरकार ने पुराना कट ऑफ मानने का आदेश जारी किया. इसके बाद 13 अगस्त को
नतीजा घोषित हुआ.
आरक्षण प्रक्रिया: शिक्षक भर्ती परीक्षा की
लिखित परीक्षा में 41,655 क्वालिफाई हुए. अब कुल 41,655 पदों के लिए अंतिम
चरण की भर्ती प्रकिया शुरू हुई. आरक्षण की गलत प्रक्रिया के चलते अंतिम रूप
से 34,660 अभ्यर्थी ही सफल घोषित हुए. 6,127 अभ्यर्थी लिखित परीक्षा पास
करने के बावजूद मेरिट में न आ सके. बाद में मुख्यमंत्री के निर्देश पर छूटे
अभ्यर्थि यों को नियुक्तिपत्र बांटा गया.
जिला आवंटन: छूटे अभ्यर्थिघयों को नियुक्ति में
शामिल करने से चयन मानक दुरुस्त हुआ तो दो चयन सूची बनने से सफल अभ्यर्थि
यों का जिला आवंटन गड़बड़ा गया. अच्छी मेरिट वालों को दूर का जिला जबकि
अपेक्षाकृत खराब मेरिट वाले अभ्यर्थिययों को उनका गृह जिला मिल गया. लिखित
परीक्षा के आवेदन फार्म में अभ्यर्थिरयों को सामान्य गलतियों को सुधारने का
मौका कोर्ट के हस्तक्षेप से मिला.
अपारदर्शी प्रक्रिया: लिखित परीक्षा में शामिल
अभ्यर्थिोयों को उत्तर पुस्तिका की कार्बन कॉपी को घर ले जाने की व्यवस्था
थी. लिखित परीक्षा का नतीजा आने पर असंतुष्ट अभ्यर्थिययों को परीक्षा
संस्था कार्यालय ने स्क्रूटनी और कॉपियों की दोबारा जांच न करने की जानकारी
दी. बाद में विज्ञापन प्रकाशित किया कि परीक्षा शुल्क से कई गुना अधिक
2,000 रुपए का डिमांड ड्राक्रट देकर कॉपियां देख सकते हैं.
बार कोडिंग: शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में
अभ्यर्थी की पहचान छिपाने के लिए लागू की गई बारकोडिंग की व्यवस्था की आड़
में गड़बड़ी की गई. हाइकोर्ट के आदेश पर अभ्यर्थिपयों को दिखाई गई
स्कैन-कॉपियों में मूल्यांकन में गड़बड़ी नहीं मिली लेकिन कॉपियों में मिले
अंक नतीजे में चढ़े अंक से काफी कम पाए गए. परीक्षा न देने वाले
अभ्यर्थिंयों को भी उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया.
- 68500 शिक्षक भर्ती के रिक्त पदों को भरे जाने के संबंध में सांसद कौशल किशोर ने सीएम को लिखा पत्र
- सीएम योगी के बयान से भड़के प्रतियोगी छात्र
- अगली शिक्षक भर्ती में शिक्षामित्रों के लिए शिक्षक बनना होगा बेहद आसान
- यूपी में प्राथमिक शिक्षक निकला पेपर लीक करने का मास्टरमाइंड, STF से बोला-दो साल से करा रहा हूं भर्ती
- टीचर्स भर्ती 2018: योगी के मंत्री,अधिकारी ही करा रहे सरकार की फजीहत!
- UP में शिक्षामित्रों के मुद्दे ने फिर पकड़ा तूल, सीएम योगी पर बोला जमकर हमला