टीचर कम हैं तो क्या हुआ… पढ़ाई न रुकेगी

पुंवारका (सहारनपुर)। पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली निकिता हमेशा अव्वल आती है, अपनी पढ़ाई के साथ-साथ वह स्कूल के दूसरे बच्चों को पढ़ाने में भी अपना योगदान दे रही है। निकिता की कक्षा के अन्य बच्चे भी छोटी कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों की मदद करते हैं।


सहारनपुर जिले के पुंवारका ब्लॉक के हलालपुर प्राथमिक विद्यालय में सिर्फ प्रधानाध्यापिका और एक शिक्षामित्र ही हैं, लेकिन अध्यापकों की कमी से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए प्रधानाध्यापिका ने तरकीब निकाली है। चौथी और पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे खुद तो पढ़ते ही हैं, साथ ही अपने से छोटी कक्षा के बच्चों को भी पढ़ाते हैं।

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प्रधानाध्यापिका गुरु देवी वर्मा बताती हैं, "हमारा पूरा फोकस बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का रहता है, क्योंकि गाँव वाले तभी अपने बच्चों को हमारे यहां भेजेंगे जब उन्हें लगेगा की यहां अच्छी पढ़ाई होती है। लेकिन अध्यापकों की कमी से कई बार परेशानी होती है। ऐसे में हम बड़े बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वे अपने से छोटे बच्चों को पढ़ाएं। बच्चे जैसे-जैसे बड़ी क्लास में जाते हैं, पीछे का भूल जाते हैं, लेकिन हमारे बच्चों के साथ ऐसा नहीं है। नियमित रूप से पढ़ाने की वजह से वे कभी पढ़ा हुआ नहीं भूलते।"

    "बच्चे अध्यापकों की जिम्मेदारी होते हैं। यहां के बाद उन्हें दूसरे स्कूल में जाना है। इसलिए हम उन्हें इस तरह तैयार कर देते हैं कि आगे चलकर कोई परेशानी न हो।"
    गुरु देवी वर्मा, प्रधानाध्यापिका

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विद्यालय प्रबंधन समिति के सहयोग से मिल रही बेहतर शिक्षा

शहर के नजदीक होने के कारण गाँव के लोग अपने बच्चों को शहर के प्राइवेट स्कूलों में भेजना चाहते हैं। लोगों की यह सोच बदलने में विद्यालय प्रबंधन समिति मददगार साबित हो रही है। समिति की अध्यक्ष नीलम बताती हैं, "गाँव के लोग बच्चों को शहर के स्कूलों में भेजना चाहते हैं, उन्हें लगता है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई-लिखाई नहीं होती है। हम लोग उन्हें समझाते हैं कि सरकारी स्कूल किसी से कम नहीं है। मेरे दो बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं, अब लोगों को समझ में आने लगा है कि उनके लिए क्या सही है।"

"हम प्रोजेक्ट तैयार करते हैं। मैम जो बताती हैं वह हम लिखते हैं। सबको अलग-अलग काम दिया जाता है, सब लोग अलग-अलग लिखते हैं। इसके बाद हम एक दूसरे को ये सब बताते हैं, जिससे सबको आसानी से याद हो जाता है।" निकिता, कक्षा-पांच

अभिभावकों से फोन पर लेती हैं जानकारी

जो बच्चे स्कूल में बिना बताए अनुपस्थित रहते हैं, उनके अभिभावकों को फोन करके न आने का कारण पूछा जाता है। प्रधानाध्यापिका बताती हैं, "जब बच्चे बिना बताए स्कूल नहीं आते हैं, तब हम उनके अभिभावक को फोन करके पूछते हैं। जब बच्चे कई दिनों तक नहीं आते हैं तो हम उनके घर भी जाते हैं।"
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बच्चों को पढ़ाने के लिए निकाली तरकीब

बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां नई तरकीब निकाली गई है, जिससे उन्हें कोई भी चीज बिना रटे आसानी से समझ आने के साथ-साथ याद हो जाए। पांचवीं कक्षा में पढ़ने में वाले अंशुल बताते हैं, "मैम हमें नए तरीके से पढ़ाती हैं।

विद्यालय में बच्चों की संख्या

150 कुल

74 छात्र

76 छात्राएं

जिले में विद्यालय

प्राथमिक:1355

पूर्व माध्यमिक: 576