लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2019 में अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम क्वालिफाइंग अंक तय करने संबंधी सात जनवरी 2019 को जारी शासनादेश को रद कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि इस परीक्षा को कराने के बारे में एक दिसंबर तथा पांच दिसंबर 2018 को जारी शासनादेशों का अनुपालन किया जाए तथा सहायक शिक्षक भर्ती 2018 के अनुसार ही मेरिट बनाकर परिणाम घोषित किया जाए।
कोर्ट ने 2019 की भर्ती का परिणाम घोषित करने पर लगी अंतरिम रोक वापस लेते हुए सरकार को तीन माह के भीतर परिणाम घोषित कर भर्ती प्रकिया पूरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट के आदेश से शिक्षामित्रों में खुशी की लहर दौड़ गई है। कोर्ट ने कहा कि उक्त शासनादेश शिक्षामित्रों व गैर शिक्षामित्र अभ्यर्थियों में विभेद करता है और मनमाना है। अत: संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ठहरने वाला नहीं है।
यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चौहान की बेंच ने मो. रिजवान व अन्य समेत कुल 99 याचिकाओं को मंजूर करते हुए, पारित किया। उक्त याचिकाओं में सचिव, बेसिक शिक्षा द्वारा जारी सात जनवरी 2019 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें छह जनवरी 2019 को हुई लिखित परीक्षा के बाद क्वालिफाइंग अंक 65 व 60 प्रतिशत कर दिया गया था। याचियों का कहना था कि लिखित परीक्षा होने के बाद क्वालिफाइंग अंक घोषित करना, विधि के सिद्धांतों के विरुद्ध है। याचियों का आरोप था कि शिक्षामित्रों को भर्ती से रोकने के लिए, सरकार ने पिछली परीक्षा की तुलना में इस बार अधिक क्वालिफाइंग अंक घोषित कर दिया।
सरकार की ओर से सात जनवरी के शासनादेश का बचाव करते हुए, कहा गया कि क्वालिटी एजुकेशन के लिए उसके द्वारा यह निर्णय लिया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि पिछली परीक्षा की तुलना में इस बार अधिक अभ्यर्थियों ने भाग लिया था, इसलिए भी क्वालिफाइंग अंक बढ़ाना पड़ा। जबकि, याचियों की ओर से जवाब में कहा गया कि वे शिक्षामित्र हैं और उन्हें सर्वोच्च कोर्ट द्वारा आगामी दो परीक्षाओं में 25 अंकों का वेटेज दिये जाने का निर्देश दिया गया था। वर्ष 2018 की सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा में क्वालिफाइंग अंक 45 व 40 प्रतिशत तय किया गया था, जिसमें वे भाग ले चुके हैं। इस बार उनके लिए सहायक शिक्षक पद पर भर्ती होने का आखिरी मौका है। लिहाजा इसका क्वालिफाइंग अंक पिछली परीक्षा के अनुसार ही होना चाहिए।
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कोर्ट ने 2019 की भर्ती का परिणाम घोषित करने पर लगी अंतरिम रोक वापस लेते हुए सरकार को तीन माह के भीतर परिणाम घोषित कर भर्ती प्रकिया पूरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट के आदेश से शिक्षामित्रों में खुशी की लहर दौड़ गई है। कोर्ट ने कहा कि उक्त शासनादेश शिक्षामित्रों व गैर शिक्षामित्र अभ्यर्थियों में विभेद करता है और मनमाना है। अत: संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ठहरने वाला नहीं है।
यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चौहान की बेंच ने मो. रिजवान व अन्य समेत कुल 99 याचिकाओं को मंजूर करते हुए, पारित किया। उक्त याचिकाओं में सचिव, बेसिक शिक्षा द्वारा जारी सात जनवरी 2019 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें छह जनवरी 2019 को हुई लिखित परीक्षा के बाद क्वालिफाइंग अंक 65 व 60 प्रतिशत कर दिया गया था। याचियों का कहना था कि लिखित परीक्षा होने के बाद क्वालिफाइंग अंक घोषित करना, विधि के सिद्धांतों के विरुद्ध है। याचियों का आरोप था कि शिक्षामित्रों को भर्ती से रोकने के लिए, सरकार ने पिछली परीक्षा की तुलना में इस बार अधिक क्वालिफाइंग अंक घोषित कर दिया।
सरकार की ओर से सात जनवरी के शासनादेश का बचाव करते हुए, कहा गया कि क्वालिटी एजुकेशन के लिए उसके द्वारा यह निर्णय लिया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि पिछली परीक्षा की तुलना में इस बार अधिक अभ्यर्थियों ने भाग लिया था, इसलिए भी क्वालिफाइंग अंक बढ़ाना पड़ा। जबकि, याचियों की ओर से जवाब में कहा गया कि वे शिक्षामित्र हैं और उन्हें सर्वोच्च कोर्ट द्वारा आगामी दो परीक्षाओं में 25 अंकों का वेटेज दिये जाने का निर्देश दिया गया था। वर्ष 2018 की सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा में क्वालिफाइंग अंक 45 व 40 प्रतिशत तय किया गया था, जिसमें वे भाग ले चुके हैं। इस बार उनके लिए सहायक शिक्षक पद पर भर्ती होने का आखिरी मौका है। लिहाजा इसका क्वालिफाइंग अंक पिछली परीक्षा के अनुसार ही होना चाहिए।
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