प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों में वार्षिक परीक्षाएं आनलाइन हो पाने की संभावना न के बराबर है। विश्वविद्यालयों का मानना है कि ज्यादातर छात्र अभी आनलाइन परीक्षाएं दे पाने में सक्षम ही नहीं हैं। इस कारण पुरानी पद्धति से ही परीक्षाएं कराने के लिए समय-सारिणी बनाई गई है।
बस हालात सामान्य होने का इंतजार किया जा रहा है।
कोरोना महामारी के कारण लंबा लॉक डाउन होने से विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं अधर में फंस गई हैं। ऐसे में परीक्षाओं के लिए नया पैटर्न अपनाने पर भी विचार होने लगा है। आनलाइन परीक्षाएं कराने के विकल्प पर मंथन के बाद विश्वविद्यालय इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं। बचे हुए कोर्स की पढ़ाई आनलाइन पूरा कराने में पूरे मनोयोग से जुटे ये विश्वविद्याल अपने छात्रों की समस्याओं को देखते हुए परीक्षाएं आनलाइन कराने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि ऐने बहुत से छात्र हैं जो स्मार्ट फोन, टैबलेट या लैटटॉप के अभाव में आनलाइन शिक्षण का ही लाभ नहीं उठा पाए। कंप्यूटर फ्रेंडली न होने के कारण वे आनलाइन परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन भी नहीं कर पाएंगे। पिछले दिनों उच्च शिक्षा परिषद की तरफ से आयोजित वेबिनार में ही कुछ कुलपतियों ने आनलाइन परीक्षा के विकल्प को उपयुक्त नहीं माना था।
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वीके सिंह ने कहा कि शेष बची परीक्षाएं कराने के लिए 20 से 25 दिनों का समय चाहिए। लगभग 50 प्रतिशत परीक्षाएं हो चुकी हैं। शेष परीक्षाओं के लिए समय-सारिणी बनी हुई है। अंतिम वर्ष की परीक्षाएं पहले कराई जाएंगी, ताकि सत्र अनियमित न हो। हालात सामान्य होते ही परीक्षाएं शुरू कराई जाएंगी। आनलाइन परीक्षा के लिए बिल्कुल अलग तरह के संसाधन चाहिए, जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न ही दिए जा सकते हैं। फिर आनलाइन परीक्षा के लिए भी छात्र को परीक्षा केंद्र पर आना ही पड़ेगा। छात्र अभी इतने टेक्नोसेवी भी नहीं हैं। रारों-रात चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि आनलाइन परीक्षा एक अच्छा विकल्प तो है लेकिन इसके लिए आधारभूत संचरना का विकास करना होगा। आनलाइन परीक्षा की प्रक्रिया खर्चीली है। इसमें एक छात्र पर औसतन 1200 रुपये तक का खर्च आएगा।
बस हालात सामान्य होने का इंतजार किया जा रहा है।
कोरोना महामारी के कारण लंबा लॉक डाउन होने से विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं अधर में फंस गई हैं। ऐसे में परीक्षाओं के लिए नया पैटर्न अपनाने पर भी विचार होने लगा है। आनलाइन परीक्षाएं कराने के विकल्प पर मंथन के बाद विश्वविद्यालय इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं। बचे हुए कोर्स की पढ़ाई आनलाइन पूरा कराने में पूरे मनोयोग से जुटे ये विश्वविद्याल अपने छात्रों की समस्याओं को देखते हुए परीक्षाएं आनलाइन कराने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि ऐने बहुत से छात्र हैं जो स्मार्ट फोन, टैबलेट या लैटटॉप के अभाव में आनलाइन शिक्षण का ही लाभ नहीं उठा पाए। कंप्यूटर फ्रेंडली न होने के कारण वे आनलाइन परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन भी नहीं कर पाएंगे। पिछले दिनों उच्च शिक्षा परिषद की तरफ से आयोजित वेबिनार में ही कुछ कुलपतियों ने आनलाइन परीक्षा के विकल्प को उपयुक्त नहीं माना था।
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वीके सिंह ने कहा कि शेष बची परीक्षाएं कराने के लिए 20 से 25 दिनों का समय चाहिए। लगभग 50 प्रतिशत परीक्षाएं हो चुकी हैं। शेष परीक्षाओं के लिए समय-सारिणी बनी हुई है। अंतिम वर्ष की परीक्षाएं पहले कराई जाएंगी, ताकि सत्र अनियमित न हो। हालात सामान्य होते ही परीक्षाएं शुरू कराई जाएंगी। आनलाइन परीक्षा के लिए बिल्कुल अलग तरह के संसाधन चाहिए, जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न ही दिए जा सकते हैं। फिर आनलाइन परीक्षा के लिए भी छात्र को परीक्षा केंद्र पर आना ही पड़ेगा। छात्र अभी इतने टेक्नोसेवी भी नहीं हैं। रारों-रात चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि आनलाइन परीक्षा एक अच्छा विकल्प तो है लेकिन इसके लिए आधारभूत संचरना का विकास करना होगा। आनलाइन परीक्षा की प्रक्रिया खर्चीली है। इसमें एक छात्र पर औसतन 1200 रुपये तक का खर्च आएगा।