लगातार 18 वर्षों से प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने में जुटे शिक्षा मित्रों की आवाज सूबे केउच्च सदन में स्नातक एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह ने उठाया और उन्हें समायोजित किये जाने की मांग की। उप्र के विधान
परिषद मेंगोरखपुर-फैजाबाद स्नातक निर्वाचन क्षेत्र मे एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह ने नियम 115 के अंतर्गत प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में कार्य कर रहे सभी शिक्षा मित्रों को शिक्षक के रूप में समायोजित करने और समान कार्य कराने के लिए समान वेतन दिए जाने की मांग उठायी। जिसपर पीठ से प्रभावी कार्यवाही का निर्देश दिया गया। अपने वक्तव्य में स्नातक विधान परिषद सदस्य श्री सिंह ने कहा कि शिक्षा मित्र पूरे निष्ठा व समर्पण के साथ प्राथमिक शिक्षा हेतु स्थापित विद्यालयों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्हें जरूरत के हिसाब से समय-समय पर प्रशिक्षण होता रहा है और उनके कार्यकाल का नवीनीकरण भी नियमित उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए किया गया है। वर्ष 2007 में उनके क शल कार्य को देखते हुएनवीनीकरण की व्यवस्था को सरकार ने समाप्त कर दिया। वर्ष 2011 में इन्हें अप्रशिक्षित अध्यापक मानते हुए दूरस्थ शिक्षा से विशिष्ट बीटीसी का प्रशिक्षण दिया गया। जो प्रशिक्षण 2013 में समाप्त हो गया। द्वितीय सत्र में भी शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षण दिया गया। जो वर्ष 2014 में पूरा हुआ औरवे पूर्ण रूप से प्रशिक्षित हो गये। 18 वर्षो तक लगातार शिक्षा मित्र बेसिक शिक्षा में अपना योगदान दे रहे हैं। सरकार जुलाई 2014 में प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक के रूप मे समायोजित किया और लगातार तीन वर्षों से पूरा वेतन पाते रहे। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके मामले को सरकार पर निर्णय लेने के लिए छोड़ दिया गया है।वर्तमान में दस हजार रुपये मानदेय पर शिक्षा मित्र अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। सरकार ने उप मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था जिसमें अपनी रिपोर्ट भी सौप दिया है। उन्होने कहा कि दो दशक सेकार्य कर रहे शिक्षा मित्र समान कार्य के लिए समान वेतन पाने हेतु आन्दोलन कर रहे हैं।