महानिदेशक स्कूल शिक्षा के पत्र ने बढ़ा दी है शिक्षकों की बेचैनी

 फिरोजाबाद

परिषदीय स्कूलों के बच्चों के लिए कोरोना काल में ई-पाठशाला संचालन के महानिदेशक द्वारा दिए गए निर्देश ने शिक्षकों को बेचैन कर दिया है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच परिषदीय शिक्षकों की शत-प्रतिशत स्कूलों में उपस्थिति के आदेश को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। लाकडाउन के दौरान परिषदीय बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा के परिणाम को लेकर पहले भी शासन के आदेश को जमीनी हकीकत के विपरीत होने को लेकर चर्चाएं होती रही हैं ।


यूटा जिलाध्यक्ष जया शर्मा ने कहा कि परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे उन परिवारों से आते हैं जहां कनस्तर में आटे का इंतजाम करना मुश्किल होता है ऐसे में वह अभिभावक हर माह मोबाइल डाटा का इंतजाम किस प्रकार करेगा। शासन का उद्देश्य अच्छा है लेकिन अभिभावकों के पास संसाधन उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के कार्यकारी जिलाध्यक्ष डॉ. अबोध कुमार ने बताया कि परिषदीय स्कूलों में अधिकतर प्रतिदिन रोजी रोटी कमाने वाले अभिभावकों के बच्चे पढ़ते हैं। उनके लिए बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा हेतु मोबाइल और इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराना आसान नहीं है। ई- पाठशाला संचालित करने के आदेश का लाभ सभी बच्चों को नहीं मिल सकेगा। उन्होंने कोरोना काल में शिक्षकों को प्रतिदिन स्कूल में उपस्थित होने के आदेश को भी अव्यावहारिक बताया।

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष डॉ. शौर्यदेवमणि यादव ने कहा कि सरकार पहले बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट डाटा उपलब्ध कराए। उसके बाद ही ई-पाठशाला कल आप बच्चों को मिल सकेगा। उन्होंने शासन के आदेश को अव्यवहारिक बताया।

प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष यतेंद्र यादव ने कहा कि परिषदीय स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बच्चे पढ़ने आते हैं। जिनके अभिभावकों के पास ई पाठशाला संचालन का लाभ बच्चों को दिलाने को संसाधन उपलब्ध नहीं है । सरकार को इस पहलू पर विचार कर पहले जमीनी हकीकत को ध्यान में रखकर संसाधनों की व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव के बीच सरकार को शिक्षकों के प्रतिदिन स्कूल जाने के आदेश पर विचार करना चाहिए।

जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रवक्ता टीकम सिंह का कहना है, कि सचिव बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा जारी किया गया शिक्षकों की स्कूल में अनिवार्य उपस्थिति एवं ई पाठशाला संचालन का आदेश व्यावहारिक नहीं है। इसका लाभ बमुश्किल 20 से 25 फीसदी बच्चों को मिल सकेगा।