Ticker

6/recent/ticker-posts

Ad Code

भर्ती के लिए योग्यता व मानदंड तय करने का हाईकोर्ट नहीं दे सकता निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भर्ती के लिए मानदंड तय करने केलिए हाईकोर्ट निर्देश नहीं दे सकता है। जब तक कि उसमें कोई विसंगति नहीं हो। कोर्ट ने कहा कि योग्यता का निर्धारण और सेवा की अन्य शर्तें नीति से संबंधित हैं और राज्य के विशेष विवेक और अधिकार क्षेत्र के भीतर हैं। न्यायालय का यह काम नहीं है कि वह भर्तियों केलिए योग्यता व मानदंड संबंधी निर्देश सरकार को दे। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने आलोक शुक्ला व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।




कोर्ट ने कहा कि किसी भी पद पर चयन और नियुक्ति विज्ञापन की शर्तों और भर्ती नियमों के अनुसार सख्ती से की जानी चाहिए। मामले में याची आलोक शुक्ला व अन्य द्वारा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के विज्ञापन को चुनौती दी गई थी। जिसमें खनन अधिकारी के 16 पदों और खनन निरीक्षक के 36 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे।



इसके लिए जो योग्यता निर्धारित की गयी थी, उसमें खनन अधिकारी पद के लिए एक वर्ष के अनुभव के साथ खनन इंजीनियरिंग की डिग्री या डिप्लोमा और खनन निरीक्षक के पद के लिए खनन इंजीनियरिंग में एक वर्ष का डिप्लोमा पास होना अनिवार्य था।

याचियों की ओर से तर्क दिया गया कि दूसरे राज्यों मेंखनन अधिकारी पद पर चयन के लिए भूविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि और खनन निरीक्षक पद के लिए बीएससी भूविज्ञान की योग्यता तय की गई है। याचियों की ओर से तर्क दिया गया उत्तर प्रदेश भू विज्ञान और खनन सेवा नियम 1983 में समय-समय पर संशोधन किया गया, लेकिन योग्यता में कोई बदलाव नहीं किया गया।

इस वजह से वे इसमें शामिल नहीं हो सकते हैं जबकि उनके पास योग्यता अधिक है। मामले में अभ्यर्थी की ओर से इस संदर्भ में अभ्यावेदन देकर भर्ती प्रक्रिया में इन दोनों डिग्रियों को शामिल किए जाने की मांग की गई, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया गया।

अभ्यावेदन करें तो किया जा सकता है विचार

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के पास नियम के अनुसार उपरोक्त पदों के लिए निर्धारित अर्हता से अधिक योग्यता है। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा किसी अन्य की समकक्षता के लिए कोई स्पष्टीकरण अथवा अधिसूचना नहीं जारी की गई है। कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक योग्यता को बदलने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक नीतिगत निर्णय लिया जाना है, जिसकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है।

कोर्ट ने कहा कि याचियों की ओर से इस संबंध में यदि कोई अभ्यावेदन किया जाता है तो कोर्ट प्रमुख सचिव, भूविज्ञान, खनन विभाग उत्तर प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से विशेषज्ञों की राय प्राप्त कर उस पर विचार करेगी। कोर्ट ने इसकेलिए दो महीने की अवधि भी निर्धारित कर दी।

إرسال تعليق

0 تعليقات

latest updates

latest updates

Random Posts