उत्तर प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक कॉलेजों में कार्यरत तदर्थ शिक्षकों भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। आश्वासन के बावजूद भी इन शिक्षकों को 6 माह से वेतन नहीं मिल रहा है। तो वहीं 27 जनपदों में तैनात 1715 तदर्थ शिक्षकों में 1135 शिक्षकों को नौकरी जाने का डर सता रहा है। हालांकि सरकार की तरफ से बीच का रास्ता निकालने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आश्वासन दिए भी कई माह बीत चुके हैं। वहीं दूसरी ओर सभी तदर्थ शिक्षक पिछले 6 माह से स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
शासन ने एडेड कालेजों में कार्यरत वर्ष 2000 तक के शिक्षकों को विनियमित किया था लेकिन, 1135 शिक्षक को विनियमित के नियमों में न आने से छूट गए थे। उनके लिए नियमावली में संशोधन करके विनियमित के मामले में शिक्षकों को जून माह से वेतन नहीं मिला है। इससे शिक्षक परेशान है।
अधिकारियों में असमंजस की स्थिति
शिक्षकों के वेतन बहाल करने को लेकर अधिकारियों में ही असमंजस की स्थिति उत्पन्न ना है। अयोध्या में जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा वेतन बहाल करने के आदेश के बावजूद भी वित्तीय विभाग द्वारा शिक्षकों को वेतन नहीं दिया गया। सूत्रों की माने तो इसी प्रकार की स्थिति पूरे प्रदेश में हैं। तदर्थ शिक्षक ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि शासन से वेतन देने के आदेश के बावजूद भी अधिकारी आनाकानी कर रहे हैं। जबकि सभी शिक्षक बिना वेतन मिले ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यानी सभी शिक्षक नियमित रूप से स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
कोर्ट का हवाला देकर नहीं मिल रहा वेतन
शिक्षकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा वेतन रोकने को लेकर कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। इसके बावजूद भी प्रशासन स्तर पर शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया है। गौरतलब है कि एडेड कालेजों में मौलिक रिक्ति के सापेक्ष 555 व अल्पकालिक शिक्षक के रूप में नियुक्त शिक्षकों की तादाद 580 सहित 1135 है, जो नियमावली की वजह से विनियमित नहीं हो सके हैं। शिक्षकों के अनुसार कोर्ट के आदेश में केवल तदर्थवाद खत्म करने का जिक्र है ना कि तैनात शिक्षकों का वेतन रोकने का जिक्र है।
तदर्थ शिक्षकों को लेकर लड़ाई लड़ रहे सुशील शुक्ला ने बताया कि आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है। परिवार का पालन पोषण करना पड़ रहा है। कुछ परिवार के सामने भुखमरी खड़ा हो गया है।