उत्तर प्रदेश में सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में वर्ष 2000 के बाद नियुक्त तदर्थ शिक्षकों के वेतन भुगतान का प्रकरण खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। अयोध्या और आजमगढ़ दो ऐसे जनपद है, जहां के शिक्षकों का वेतन नियमित कर दिया गया है।
इसके अलावा प्रदेश के 25 जनपदों के करीब एक हजार तदर्थ शिक्षकों को मई व जून माह से वेतन मिला है। शिक्षकों की माने तो शासन स्तर पर शिक्षकों को नियमित वेतन देने के लिए अधिकारियों को निर्देश भी दिए जा चुका है। इसके बावजूद भी जिले में तैनात जिम्मेदार अधिकारी शिक्षकों को छह माह से बकाया वेतन नहीं दे रहे है।
मई और जून माह से तदर्थ शिक्षकों को नहीं मिल रहा वेतन
7 अगस्त 1993 से 30 दिसंबर 2000 तक 979 और वर्ष 2000 के बाद 1111 कुल नियुक्त 2090 शिक्षक तदर्थ हैं। तदर्थ शिक्षकों के अनुसार उन्हें प्रदेश के प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर, बस्ती जनपद को छोड़कर अन्य जनपदों में तैनात 1111 शिक्षकों को मई माह से वेतन नहीं मिला है। जबकि शिक्षक नियमित रुप से विद्यालयों में सेवा दे रहे है।
ऐसे में कुछ जनपदों ने वेतन का भुगतान तो किया, लेकिन जिले में तदर्थ शिक्षकों का भुगतान नहीं हुआ। यहां तक की संयुक्त शिक्षा निदेशक, जिला विद्यालय निरीक्षक स्तर से भी पत्राचार किए गए। अध्यापकों ने अनशन भी किया। लेकिन सभी बेनतीजा रहे। कुछ शिक्षक इसे अधिकारियों का हठधर्मिता बता रहे है।
अयोध्या और आजमगढ़ में तैनात शिक्षकों के नियमित भुगतान के आदेश
शिक्षकों की लड़ाई लड़ रहे सुशील शुक्ला ने बताया कि प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा के निर्देश के बाद जेडी और डीआईओएस के सहमति पत्र के बाद अयोध्या में वेतन बहाली का रास्ता साफ हो गया है। अयोध्या में 36 विद्यालयों में 113 तदर्थ शिक्षक सेवाएं दे रहे है। सभी शिक्षकों का वेतन जून माह से बकाया था। जिला विद्यालय निरीक्षक राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ने बताया कि सभी अवरोध समाप्त हो चुके हैं। जल्द ही सभी शिक्षकों के वेतन का भुगतान हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने वेतन देने के लिए दिया है आदेश
तदर्थ शिक्षकों ने बताया कि जिस सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देकर वेतन रोका गया है। उसी कोर्ट ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि जब तक रिक्त पदों पर चयन की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो जाती है तब तक फाइनेंशियल बेनिफिट दिया जाए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है जब तक चयनित अभ्यर्थी नहीं आते है, तब तक शिक्षक अपने पद पर बने रहेंगे। सभी शिक्षक वेतन पाने के हकदार है। कोर्ट ने परीक्षा पास और फेल हुए अभ्यर्थियों को लेकर सरकारी वकील की दलील को निराधार बताया था।
जिम्मेदारों पर सवाल
सवाल यह उठता है कि कोर्ट और प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा के आदेश और बावजूद भी तदर्थ शिक्षकों का वेतन जिले में तैनात जिम्मेदार अधिकारी क्यों नहीं दे रहे है। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब कोर्ट का स्पष्ट आदेश नहीं है तो किस आधार पर शिक्षकों का वेतन रोका गया ? फिलहाल इन शिक्षकों की समस्याओं से एक लाख बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही इन शिक्षकों के पारिवारिक स्थिति दिन प्रतिदिन प्रभावित हो रही है।
समाज सेवी आशुतोष त्रिपाठी ने बताया कि शिक्षकों को नियमित वेतन न मिलने से विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ता है।