बच्चों को अनिवार्य शिक्षा राज्य का दायित्व

बच्चों को अनिवार्य शिक्षा राज्य का दायित्व
विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का राज्य सरकार का दायित्व है। प्राइवेट शिक्षण संस्थान बच्चों को शिक्षा देकर राज्य सरकार का ही काम कर रहे हैं इसलिए राज्य का दायित्व है कि बच्चों को शिक्षित करने वाले कॉलेजों को संसाधनों सहित वित्तीय सहायता प्रदान करे।

कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अनिवार्य शिक्षा कानून आने के बाद अपनी 1989 की शिक्षा नीति में बदलाव लाए ताकि बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाले प्राइवेट कॉलेजों के प्राइमरी सेक्शन को वित्तीय सहायता दी जा सके। कोर्ट ने किसान आदर्श इंटर कॉलेज ठाकुर नगर, गोरखपुर के प्राइमरी सेक्शन को वित्तीय सहायता देने से इंकार करने के राज्य सरकार के आदेश 10 जनवरी 2002 तथा याचिका खारिज करने के एकलपीठ के आदेश 29 अगस्त 14 को रद कर दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को नए कानून एवं न्यायिक निर्णयों के आलोक में नई शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड तथा न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खण्डपीठ ने परिपूर्णानन्द त्रिपाठी व अन्य यहायक अध्यापक की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा है कि समाज के कमजोर तबके के बच्चे ऐसे स्कूलों में शिक्षा ले रहे हैं। ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
शिक्षा प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा दी जानी चाहिए किंतु संसाधनों के अभाव के चलते योग्य शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं। प्राइवेट कॉलेजों के शिक्षक दयनीय हालत में शिक्षा दे रहे हैं। कोई भी अच्छा शिक्षक ऐसे स्कूलों में नहीं जाना चाहता। प्राइवेट स्कूलों के छात्र अच्छी शिक्षा नहीं पा रहे हैं। राज्य सरकार का दायित्व है कि वह बच्चों को नि:शुल्क, अनिवार्य व गुणकारी शिक्षा प्रदान करे।
मालूम हो कि 1989 में राज्य सरकार ने हाईस्कूल व इंटर कॉलेजों के प्राइमरी सेक्शन को शर्तो का पालन करने पर वित्तीय अनुदान देने की नीति बनाई जिसके तहत 39 स्कूलों को अनुदान दिया गया। याची के स्कूल को 1972 में स्थापित होने के बावजूद अनुदान नहीं दिया गया।


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