निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को दाखिले के लिहाज से निशुल्क और अनिवार्य
बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 (आरटीई एक्ट) अपने प्रदेश में एकदम
फ्लॉप साबित हुआ है।
एक भी जिले में इसका पालन नहीं हो रहा है। स्थिति यह है कि गरीब और कमजोर तबके के बच्चों के लिए सूबे के 63 हजार निजी स्कूलों में
छह लाख से ज्यादा सीटें हैं लेकिन उन्हें बमुश्किल 4500 सीटों पर ही दाखिला मिल सका।
आरटीई एक्ट के मुताबिक प्रत्येक गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल को अपने यहां कक्षा-1 में 25 फीसदी तक सीटें अलाभित और दुर्बल वर्ग के बच्चों से भरनी होंगी। शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश से मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अलावा सीबीएसई और आईसीएसई के विद्यालयों पर भी यह नियम लागू होता है। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों को यह प्रावधान मंजूर नहीं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से वे खुलेआम गरीब बच्चों का हक मार रहे हैं। मालूम हो कि आरटीई एक्ट में 25 फीसदी तक सीटें गरीब बच्चों से भरने की जिम्मेदारी निजी स्कूलों की है।
इस मामले में उन पर निगरानी रखने का काम जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को दिया गया है। एक्ट का पालन न होने पर स्कूल की मान्यता रद्द करने का भी प्रावधान है। स्थिति यह है कि वर्ष 2013-14 और 2014-15 में पूरे सूबे में मात्र 54-54 बच्चों को ही इस योजना के तहत दाखिला मिल सका। उपलब्ध सीटों को देखते हुए चालू सत्र में भी स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी हुई है।
राज्य सरकार की नियमावली में ही ढूंढा बचाव का हथियार
आरटीई एक्ट की धारा 12(सी) में कहा गया है कि अलाभित और दुर्बल वर्ग के बच्चों को ‘पड़ोस’ के निजी स्कूलों में दाखिला लेने का अधिकार होगा लेकिन इसी एक्ट की धारा 38-2(बी) में ‘पड़ोस’ शब्द को परिभाषित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी गई है। राज्य सरकार की नियमावली के प्रावधान 4(1-क) में ‘पड़ोस’ के मायने बताए गए हैं : स्कूल की एक किलोमीटर परिधि में रहने वाले लोग।
हालांकि नियमावली में कहीं भी एक किलोमीटर दायरे से बाहर रहने वालों को दाखिला न देने की बात नहीं कही गई है। वहीं, आरटीई के जानकारों का कहना है कि एक्ट में कहीं भी एक किलोमीटर का दायरा निर्धारित नहीं किया गया है।
----वर्जन
गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों को देने का नियम बाध्यकारी नहीं है। स्कूल के एक किलोमीटर दायरे में जितने अलाभित और दुर्बल वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में प्रवेश दिलवाने के लिए संपर्क करते हैं, उनके प्रवेश की व्यवस्था की जाती है।
-दिनेश बाबू शर्मा, निदेशक, बेसिक शिक्षा
-
दो वर्षों में 5.25 लाख रुपये शुल्क की भरपाई
प्रदेश में आरटीई एक्ट के तहत वर्ष 2013-14 और 2014-15 में 14 निजी स्कूलों को 108 गरीब बच्चों को दाखिला देने पर 5.25 लाख रुपये शुल्क की भरपाई की गई। बता दें कि आरटीई एक्ट के तहत दाखिला देने पर निजी स्कूलों को प्रति बच्चा 450 रुपये महीने भुगतान किया जाता है।
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वर्षवार आरटीई एक्ट के तहत गरीब बच्चों के लिए उपलब्ध सीटें और उन पर दाखिले की स्थिति
वर्ष उपलब्ध सीटें कुल दाखिले
2013-14 5.25 लाख 54
2014-15 5.98 लाख 54
2015-16 6.30 लाख 4500 (अनुमानित)
(स्रोत : सर्व शिक्षा अभियान, उपलब्ध सीट=सूबे के सभी गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में एनसी, केजी और कक्षा-1, में उपलब्ध स्थान)
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एक भी जिले में इसका पालन नहीं हो रहा है। स्थिति यह है कि गरीब और कमजोर तबके के बच्चों के लिए सूबे के 63 हजार निजी स्कूलों में
छह लाख से ज्यादा सीटें हैं लेकिन उन्हें बमुश्किल 4500 सीटों पर ही दाखिला मिल सका।
आरटीई एक्ट के मुताबिक प्रत्येक गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल को अपने यहां कक्षा-1 में 25 फीसदी तक सीटें अलाभित और दुर्बल वर्ग के बच्चों से भरनी होंगी। शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश से मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अलावा सीबीएसई और आईसीएसई के विद्यालयों पर भी यह नियम लागू होता है। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों को यह प्रावधान मंजूर नहीं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से वे खुलेआम गरीब बच्चों का हक मार रहे हैं। मालूम हो कि आरटीई एक्ट में 25 फीसदी तक सीटें गरीब बच्चों से भरने की जिम्मेदारी निजी स्कूलों की है।
इस मामले में उन पर निगरानी रखने का काम जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को दिया गया है। एक्ट का पालन न होने पर स्कूल की मान्यता रद्द करने का भी प्रावधान है। स्थिति यह है कि वर्ष 2013-14 और 2014-15 में पूरे सूबे में मात्र 54-54 बच्चों को ही इस योजना के तहत दाखिला मिल सका। उपलब्ध सीटों को देखते हुए चालू सत्र में भी स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी हुई है।
राज्य सरकार की नियमावली में ही ढूंढा बचाव का हथियार
आरटीई एक्ट की धारा 12(सी) में कहा गया है कि अलाभित और दुर्बल वर्ग के बच्चों को ‘पड़ोस’ के निजी स्कूलों में दाखिला लेने का अधिकार होगा लेकिन इसी एक्ट की धारा 38-2(बी) में ‘पड़ोस’ शब्द को परिभाषित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी गई है। राज्य सरकार की नियमावली के प्रावधान 4(1-क) में ‘पड़ोस’ के मायने बताए गए हैं : स्कूल की एक किलोमीटर परिधि में रहने वाले लोग।
हालांकि नियमावली में कहीं भी एक किलोमीटर दायरे से बाहर रहने वालों को दाखिला न देने की बात नहीं कही गई है। वहीं, आरटीई के जानकारों का कहना है कि एक्ट में कहीं भी एक किलोमीटर का दायरा निर्धारित नहीं किया गया है।
----वर्जन
गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों को देने का नियम बाध्यकारी नहीं है। स्कूल के एक किलोमीटर दायरे में जितने अलाभित और दुर्बल वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में प्रवेश दिलवाने के लिए संपर्क करते हैं, उनके प्रवेश की व्यवस्था की जाती है।
-दिनेश बाबू शर्मा, निदेशक, बेसिक शिक्षा
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दो वर्षों में 5.25 लाख रुपये शुल्क की भरपाई
प्रदेश में आरटीई एक्ट के तहत वर्ष 2013-14 और 2014-15 में 14 निजी स्कूलों को 108 गरीब बच्चों को दाखिला देने पर 5.25 लाख रुपये शुल्क की भरपाई की गई। बता दें कि आरटीई एक्ट के तहत दाखिला देने पर निजी स्कूलों को प्रति बच्चा 450 रुपये महीने भुगतान किया जाता है।
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वर्षवार आरटीई एक्ट के तहत गरीब बच्चों के लिए उपलब्ध सीटें और उन पर दाखिले की स्थिति
वर्ष उपलब्ध सीटें कुल दाखिले
2013-14 5.25 लाख 54
2014-15 5.98 लाख 54
2015-16 6.30 लाख 4500 (अनुमानित)
(स्रोत : सर्व शिक्षा अभियान, उपलब्ध सीट=सूबे के सभी गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में एनसी, केजी और कक्षा-1, में उपलब्ध स्थान)
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