इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक
फैसले में कहा है कि बच्चों के अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार
अधिनियम 2009 के तहत आने वाले बच्चों को अपनी पसंद के स्कूल में शिक्षा
ग्रहण करने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार किसी पात्र बच्चे को इस आधार पर प्राइवेट स्कूल में पढ़ने से नहीं रोक सकती कि बच्चे के घर के पास सरकारी स्कूल है।
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कोर्ट ने कहा कि सरकार किसी पात्र बच्चे को इस आधार पर प्राइवेट स्कूल में पढ़ने से नहीं रोक सकती कि बच्चे के घर के पास सरकारी स्कूल है।
इसी
के साथ कोर्ट ने प्रदेश सरकार द्वारा जनवरी 2016 में जारी इस आशय के
शासनादेश को असंवैधानिक करार दिया है।
शासनादेश में कहा गया है कि बच्चों के अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार कानून के तहत पात्र बच्चों को पहले सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया जाए। सरकारी स्कूल न होने पर पास के किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई के लिए उनका दाखिला कराया जाए।
शासनादेश में कहा गया है कि बच्चों के अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार कानून के तहत पात्र बच्चों को पहले सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया जाए। सरकारी स्कूल न होने पर पास के किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई के लिए उनका दाखिला कराया जाए।
यह
फैसला मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा
की खंडपीठ ने वाराणसी के अजय कुमार पटेल की जनहित याचिका पर दिया है।
याचिका में कहा गया था कि सरकार ने शासनादेश जारी कर प्रदेश के सभी बेसिक
शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि बच्चों के अनिवार्य एवं नि:शुल्क
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चों का सबसे पहले सरकारी स्कूलों में
दाखिला कराएं। जहां ऐसे सरकारी स्कूल न हों तो प्राइवेट स्कूलों में बच्चों
का दाखिला कराया जाए। याचिका में शासनादेश को अवैध बताया गया।
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