लखनऊ (एसएनबी)। महालेखापरीक्षक और नियंत्रक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में
सूबे के प्राथमिक विद्यालयों में चल रही मध्याह्न भोजन योजना को सही ढंग से
न लागू किये जाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की भूमिका को असंवेदनशील
बताया है।कैग की राज्य विधानसभा में रविवार को पेश रिपोर्ट में कहा गया है
कि प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्र आधारित यह योजना सही ढंग से लागू नहीं हो पा रही है, जिसके कारण 2010 से 2015 तक छात्रों की संख्या में गिरावट आयी है। 31 मार्च, 2015 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ही अधर में लटकता दिखायी पड़ रहा है। कैग ने कहा कि 2010-11 में छात्रों की संख्या 1.59 करोड़ से घटकर 2014-15 में 1.34 करोड़ हो गयी। पांच वर्षों में छात्रों की संख्या में सात फीसद की गिरावट आयी। सन 2010 से 2015 तक इस योजना में Rs 7227 करोड़ खर्च हुए। इस दौरान वित्तीय अनियमितताएं भी देखी गयीं। रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को बेहतर स्वास्य सुविधाएं भी नहीं उपलब्ध करायी गयीं। 21 जिलों के 603 विद्यालयों के भौतिक सत्यापन से यह बात उभरकर सामने आयी। बच्चे के स्वास्य कार्ड भी नहीं पाये गए। योजना के लिए खाद्यान्नों की उठान भी ठीक ढंग से नहीं की गई। पांच वर्षों में 17 लाख मीट्रिक टन के सापेक्ष सरकार केवल 13 लाख मीट्रिक टन अनाज ही उठ सकी। राज्य सरकार ने 2006 से 2015 तक 1.13 लाख रसोईघर बनाने लिए Rs 724 करोड़ खर्च किये। आडिट के दौरान रसोईघरों के निर्माण में काफी कमियां पायी गयीं। रसोईघरों में दरवाजे तक सही से नहीं लगाये गए हैं। बिजली की व्यवस्था नहीं पायी गयी। 21 फीसद स्कूलों में तो रसोईघर ही नहीं पाये गए। 42 प्रतिशत विद्यालयों में गैस कनेक्शन नहीं थे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय के कम से कम 200 दिन मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के निर्देश के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक 56 हजार स्कूलों में पांच वर्षों में प्रति वर्ष औसतन 102 दिन ही भोजन दिया गया। कई स्कूलों में प्रशिक्षित रसोइया ही नहीं पाये गए। कैग की इस रिपोर्ट के बाद अब आगे की कार्रवाई सरकार को करनी होगी।
2010 से 2015 के बीच मध्याह्न भोजन योजना में Rs 7227 करोड़ हुए खर्च
इस दौरान वित्तीय अनियमितताएं भी देखी गयीं
21 फीसद स्कूलों में रसोईघर ही नहीं
2010-11 से 2014-15 के बीच घटे 25 लाख विद्यार्थी
56 हजार स्कूलों में पांच वर्षों में प्रति वर्ष औसतन 102 दिन बंटा भोजन
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कि प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्र आधारित यह योजना सही ढंग से लागू नहीं हो पा रही है, जिसके कारण 2010 से 2015 तक छात्रों की संख्या में गिरावट आयी है। 31 मार्च, 2015 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ही अधर में लटकता दिखायी पड़ रहा है। कैग ने कहा कि 2010-11 में छात्रों की संख्या 1.59 करोड़ से घटकर 2014-15 में 1.34 करोड़ हो गयी। पांच वर्षों में छात्रों की संख्या में सात फीसद की गिरावट आयी। सन 2010 से 2015 तक इस योजना में Rs 7227 करोड़ खर्च हुए। इस दौरान वित्तीय अनियमितताएं भी देखी गयीं। रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को बेहतर स्वास्य सुविधाएं भी नहीं उपलब्ध करायी गयीं। 21 जिलों के 603 विद्यालयों के भौतिक सत्यापन से यह बात उभरकर सामने आयी। बच्चे के स्वास्य कार्ड भी नहीं पाये गए। योजना के लिए खाद्यान्नों की उठान भी ठीक ढंग से नहीं की गई। पांच वर्षों में 17 लाख मीट्रिक टन के सापेक्ष सरकार केवल 13 लाख मीट्रिक टन अनाज ही उठ सकी। राज्य सरकार ने 2006 से 2015 तक 1.13 लाख रसोईघर बनाने लिए Rs 724 करोड़ खर्च किये। आडिट के दौरान रसोईघरों के निर्माण में काफी कमियां पायी गयीं। रसोईघरों में दरवाजे तक सही से नहीं लगाये गए हैं। बिजली की व्यवस्था नहीं पायी गयी। 21 फीसद स्कूलों में तो रसोईघर ही नहीं पाये गए। 42 प्रतिशत विद्यालयों में गैस कनेक्शन नहीं थे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय के कम से कम 200 दिन मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के निर्देश के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक 56 हजार स्कूलों में पांच वर्षों में प्रति वर्ष औसतन 102 दिन ही भोजन दिया गया। कई स्कूलों में प्रशिक्षित रसोइया ही नहीं पाये गए। कैग की इस रिपोर्ट के बाद अब आगे की कार्रवाई सरकार को करनी होगी।
2010 से 2015 के बीच मध्याह्न भोजन योजना में Rs 7227 करोड़ हुए खर्च
इस दौरान वित्तीय अनियमितताएं भी देखी गयीं
21 फीसद स्कूलों में रसोईघर ही नहीं
2010-11 से 2014-15 के बीच घटे 25 लाख विद्यार्थी
56 हजार स्कूलों में पांच वर्षों में प्रति वर्ष औसतन 102 दिन बंटा भोजन
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