इलाहाबाद : बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षक हों या फिर शिक्षक
बनने की दहलीज पर खड़े युवा दोनों अनदेखी व अनसुनी पर इन दिनों मुट्ठियां
भींचे हैं। इन हालात से से वाकिफ अफसर समस्याओं का निराकरण करने की बजाय
उसे लटकाए हुए हैं।
लिहाजा विद्यालयों में गैर शिक्षण कार्य ठप है और शिक्षा निदेशालय में अफसरों का कामकाज करना मुश्किल हो चला है, क्योंकि पिछले तीन माह से यहां अनवरत आंदोलन-प्रदर्शन का सिलसिला जारी है।
बेसिक
शिक्षा परिषद के शिक्षकों की जिले के अंदर तबादले की प्रक्रिया अगस्त 2015
में शुरू करने को शासन ने हरी झंडी दी थी।1 बेसिक शिक्षा परिषद सचिव संजय
सिन्हा ने तो 19 सितंबर तक शिक्षकों को तबादला आदेश जारी करने का कार्यक्रम
भी जारी कर दिया था, लेकिन उसी समय पंचायत चुनाव की घोषणा और हाईकोर्ट से
शिक्षामित्रों के संबंध में सख्त आदेश से पूरी प्रक्रिया को जहां का तहां
रोक दिया गया। यह तबादले फरवरी 2016 में होने की उम्मीद जगी थी, ताकि
शैक्षिक सत्र के पहले ही शिक्षकों को अपने पसंदीदा स्कूलों में नियुक्ति
मिल जाए। परिषदीय शिक्षकों के तबादले पिछले दो वर्षो में भी नहीं हुए हैं।
ऐसे
में परिषद ने शासन को नया साल शुरू होते ही तबादला नीति के संबंध में
विस्तृत प्रस्ताव भेज दिया था और शिक्षकों की नियुक्ति की नियमावली में
बदलाव की भी पेशकश हुई। इसके बाद भी इस ओर अफसरों ने ध्यान नहीं दिया बल्कि
सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों की सुनवाई पर ही पूरा ध्यान लगा रहा।
लिहाजा शिक्षकों ने थक हारकर गैर शैक्षिक कार्य ठप कर दिया है और तालाबंदी
का अल्टीमेटम दिया है तब तबादला नीति जारी करने की सुगबुगाहट तेज है।
वहीं
शिक्षा निदेशालय ने पहली बार खंड शिक्षा अधिकारियों के तबादला के संबंध
में नीति तैयार की। हालांकि यह कार्य शासन के निर्देश पर ही किया गया,
लेकिन नीति का प्रस्ताव पिछले कई महीने से अनुमोदन के इंतजार में लंबित है।
अब तक उस दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि अगले
माह तक खंड शिक्षा अधिकारियों की नीति जारी होगी। ऐसे ही शिक्षा निदेशालय
में पिछले तीन माह से अनवरत कोई न कोई युवाओं का गुट किसी न किसी बात को
लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहा है।
उनमें से लगभग सभी
प्रकरणों का निर्णय शासन स्तर से ही लिया जाना है और दर्जनों बार शासन को
सारी स्थितियों से अवगत कराया गया, लेकिन आंदोलनों के संबंध में स्पष्ट
निर्देश जारी करने में टालमटोल जारी है। परिषद के सचिव ने तो शासन को यह तक
लिखकर भेज दिया था कि ऐसे माहौल में यहां कामकाज कर पाना संभव नहीं हो पा
रहा है, इसके बाद भी शासन ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई है।
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