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सावन के महीने में सातवें वेतनमान का जप, केंद्र करें पुन: विचार, नहीं तो आंदोलन

बुधवार का दिन, शहर में कोई हलचल भी नहीं, किसी त्योहार के पहले का कार्यदिवस भी नहीं। फिर भी सरकारी दफ्तरों में अजीब सी गहमा-गहमी रही। कर्मचारी अन्य दिनों के मुकाबले अधिक बतिया रहे थे, कभी-कभी काम कराने आई जनता यह देख खीजने लगती।
कभी उत्तेजना में स्वर ऊंचे होते तो कभी लंबे ठहाके, कई बार तो अधिकारी भी चर्चा में शरीक हो जाते। चर्चा के केंद्र बिंदु था, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की अधिसूचना।1यूं तो अभी यह केंद्रीय कर्मियों से जुड़ा मामला है मगर हलचल प्रदेश सरकार के दफ्तरों में भी कम नहीं थी। अफिस के पास की चाय-पान की दुकानें, नुक्कड़, चौराहे भी सुबह से लेकर शाम तक मंथन के गवाह बने रहे। अधिकतर जगह कर्मचारियों में आक्रोश था कि केंद्र ने सातवें वेतन आयोग को लागू करने में जल्दबाजी दिखाई है। इंक्रीमेंट का नया मानक कर्मचारियों के गले से नीचे नहीं उतर रहा है। केंद्र सरकार ने समिति को आश्वासन दिया था कि यदि वह हड़ताल स्थगित कर देंगे तो न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फामरूला को समाहित कर अधिसूचना जारी की जाएगी, मगर इस पर विचार नहीं किया गया। सिफारिशें वैसे की वैसे ही मान ली गईं। 1साहब के आगे-पीछे घूमने वालों की चांदी : करीब एक बजे, एजी आफिस में काम और इंक्रीमेंट पर बहस चल रही है। काफी देर से खामोश बैठे एक लिपिक खुद को चर्चा में शामिल करते हुए बोलते हैं- बड़े बाबू ई बताइए। इका क्या गारंटी है कि काम करने वाले को ही इंक्रीमेंट मिलेगा। हमरे साहब के आगे-पीछे घूमने वाले जो बाबू हैं, ऊ तो अपना कैरेक्टर रोल (सीआर) तो बनवा ही लेंगे, काम करें चाहें न करें। काम का मूल्यांकन सही तरीके से हो, इसके लिए कौन सी तरकीब इस्तेमाल करेगी केंद्र सरकार। 1कर्मचारियों को छला : लंच का समय, आयकर विभाग की कैंटीन। जोरदार बहस चल रही है। पूरी बहस का लुब्बोलुबाब यह है कि केंद्र सरकार ने क्या किया, जिस बात का आश्वासन देकर हड़ताल स्थगित कराई, उसे तो दरकिनार ही कर दिया। चार महीने के लिए समिति का गठन किया गया। महीने भर के भीतर अधिसूचना जारी कर दी, कर्मचारियों के साथ छलावा हुआ है। कर्मचारी चुप्प नहीं बैठेंगे। यहां आक्रोश ही आक्रोश दिखता है।1टूट गई आस : प्रदेश सरकार का वाणिज्य कर विभाग का आफिस, किसी केंद्रीय कार्यालय से कम गर्म नहीं था। प्रदेश सरकार ने भलेही अभी अधिसूचना जारी नहीं की है, मगर यहां के कर्मचारी जानते हैं कि यह चुनावी साल है। जितना दबाव बनाओ उतनी ही जल्दी सरकार उनके लिए सोचेगी। केंद्र सरकार जितनी सुविधाएं अपने कर्मचारियों को देगी, उसी अनुरूप राज्य सरकार भी लागू कर देगी। उन्हें उम्मीद थी कि न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फामरूले पर केंद्र सरकार कोई सकारात्मक रवैये कदम उठाएगी, फिर भी ऐसा नहीं हुआ। 1अरमानों पर पानी फेरा : विकास भवन में कर्मचारी दिनभर इसकी बातें करते रहे कि केंद्र सरकार ने कर्मचारियों की आस को तोड़ दिया। यहां पर एचआरए पर चर्चा चल रही है। कौन-कितनी पुरानी सर्विस वाला, उसे क्या लाभ होगा। बीच-बीच में केंद्र और राज्य सरकार के वेतनमानों और भत्तों की विसंगतियों पर भी चर्चा होती रही।रमेश यादव

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