इलाहाबाद : बेसिक शिक्षा परिषद के जिन शिक्षकों को अंतर जिला तबादले से रोका गया, उन्हीं शिक्षकों को जिले के अंदर हुए स्थानांतरण में मनचाहे स्कूल जाने का मौका दिया गया। इसका लाभ बड़ी संख्या में शिक्षकों को दिया गया है।
प्रदेश भर के परिषदीय स्कूलों के उन शिक्षकों को अंतर जिला तबादले से रोक दिया गया है, जिनकी नियुक्ति का मार्च 2016 तक तीन वर्ष पूरा नहीं हो सका है। यह आदेश जारी करने के पीछे अफसरों की मंशा यही थी कि हालिया वर्षो में शिक्षकों की जो नियुक्तियां हुई हैं, उनमें से अधिकांश की न्यायालयों में सुनवाई चल रही है। अंतिम निर्णय आने तक उनका स्थानांतरण न किया जाए। शिक्षामित्रों से समायोजित होकर सहायक अध्यापक बनने वाले शिक्षकों को लेकर तो ऊहापोह कायम ही है, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट समायोजन रद कर चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने स्थगनादेश जारी किया है। ऐसे ही 72 हजार शिक्षकों की भर्ती में भी नियुक्तियों को लेकर कई पेंच हैं और तो और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 29 हजार शिक्षकों की भर्ती को लेकर कई याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं। न्यायालय के निर्देशों के अलावा इधर दो वर्षो में जो भी नियुक्तियां हुई हैं उनमें अधिकांश युवाओं को सुदूर जिलों में ही तैनाती मिली है। यदि अंतर जिला तबादले में उन्हें मौका दिया जाएगा तो बड़े पैमाने पर फेरबदल हो जाता।
अंतर जिला तबादले में अफसरों ने तीन वर्ष की अवधि पूरा न करने वालों को ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया व काउंसिलिंग आदि के जरिए रोक लिया, लेकिन इसके पहले ही गुपचुप तरीके से जिले के अंदर हुए फेरबदल में समायोजित शिक्षक एवं अन्य शिक्षकों ने परिवीक्षा काल में ही बड़ी संख्या में तबादले कराए हैं। खास बात यह है कि इनमें से तमाम शिक्षकों ने मंत्री एवं अन्य बड़े विभागीय अफसरों से इस संबंध आदेश कराकर तबादला करा लिया है। हर जिले में ऐसे शिक्षकों की तादाद अच्छी खासी है।
इसी बीच ‘दैनिक जागरण’ में समायोजित शिक्षामित्रों के तबादले का प्रकरण उछलने पर उनके स्थानांतरण निरस्त कर दिए गए हैं। बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने सभी समायोजित शिक्षकों को तबादला वाले स्कूलों से रिलीव भी कर दिया है। पिछले दिनों इसी मुद्दे को लेकर प्रतापगढ़ में प्रदर्शन भी हुआ और अन्य जिलों में भी समायोजित शिक्षक इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि केवल शिक्षामित्रों का ही स्थानांतरण क्यों निरस्त हुआ है, बाकी शिक्षक जिनका परिवीक्षा काल में फेरबदल हुआ है उन पर चुप्पी क्यों साधी गई है?
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प्रदेश भर के परिषदीय स्कूलों के उन शिक्षकों को अंतर जिला तबादले से रोक दिया गया है, जिनकी नियुक्ति का मार्च 2016 तक तीन वर्ष पूरा नहीं हो सका है। यह आदेश जारी करने के पीछे अफसरों की मंशा यही थी कि हालिया वर्षो में शिक्षकों की जो नियुक्तियां हुई हैं, उनमें से अधिकांश की न्यायालयों में सुनवाई चल रही है। अंतिम निर्णय आने तक उनका स्थानांतरण न किया जाए। शिक्षामित्रों से समायोजित होकर सहायक अध्यापक बनने वाले शिक्षकों को लेकर तो ऊहापोह कायम ही है, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट समायोजन रद कर चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने स्थगनादेश जारी किया है। ऐसे ही 72 हजार शिक्षकों की भर्ती में भी नियुक्तियों को लेकर कई पेंच हैं और तो और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 29 हजार शिक्षकों की भर्ती को लेकर कई याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं। न्यायालय के निर्देशों के अलावा इधर दो वर्षो में जो भी नियुक्तियां हुई हैं उनमें अधिकांश युवाओं को सुदूर जिलों में ही तैनाती मिली है। यदि अंतर जिला तबादले में उन्हें मौका दिया जाएगा तो बड़े पैमाने पर फेरबदल हो जाता।
अंतर जिला तबादले में अफसरों ने तीन वर्ष की अवधि पूरा न करने वालों को ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया व काउंसिलिंग आदि के जरिए रोक लिया, लेकिन इसके पहले ही गुपचुप तरीके से जिले के अंदर हुए फेरबदल में समायोजित शिक्षक एवं अन्य शिक्षकों ने परिवीक्षा काल में ही बड़ी संख्या में तबादले कराए हैं। खास बात यह है कि इनमें से तमाम शिक्षकों ने मंत्री एवं अन्य बड़े विभागीय अफसरों से इस संबंध आदेश कराकर तबादला करा लिया है। हर जिले में ऐसे शिक्षकों की तादाद अच्छी खासी है।
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