कहानी टीईटी मेरिट व टीईटी वेटेज की (अवश्य पढ़ें): अकादमिक मेरिट से हुई समस्त भर्तियाँ घेरे में

[8:15 PM, 11/23/2016] +91 81879 80940: मित्रों, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बहिन कुमारी मायावती जी के शासनकाल में प्राइमरी हेतु 72,825 बीएड धारी सहायक अध्यापक भर्ती आई थी जिसकी चयन प्रक्रिया में चयन का आधार टीईटी के अंको को बनाया गया था।
लेकिन भर्ती के मध्य ही सत्ता में सपा सरकार का आगमन हो गया। सरकार ने टीईटी मेरिट को हटाकर अकादमिक मेरिट अर्थात गुणांक प्रणाली का बीज बो दिया। सपा सरकार ने तुरन्त ही 72,825 भर्ती को रद्द कर के अकादमिक चयन प्रणाली के आधार पर नई भर्ती निकाल दी।

उसके बाद से 72,825 भर्ती मुकदमों के बोझ तले दबती चली गई तथा रोज एक नया केस चयन के आधार को निर्णित करने के लिए पड़ता रहा। हाई कोर्ट से होता हुआ केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तथा वहां न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा जी ने अंतरिम आदेश देते हुए भर्ती को टीईटी मेरिट से पहले पूर्ण करने को कहा उसके बाद ही उन्होंने किसी भी प्रकार की बहस की बात की।

जब से यह भर्ती अंतरिम आदेश के अनुसार टीईटी मेरिट पर हुई, इसके कुछ आकाओं को सुलेमानी कीड़ों ने काट लिया तथा अब उनको नेतागिरी का भूत सवार हो गया जिस वजह से यह लोग अन्य भर्तियों मसलन बीटीसी भर्ती व जूनियर भर्ती में अपनी टांग अड़ाने लगे तथा उनको भी टीईटी मेरिट के आधार पर सम्पन्न कराने की कुचेष्टा करने लगे। इसी क्रम में कुछ नेताओं ने जूनियर की 29,334 गणित विज्ञान शिक्षकों की भर्ती को भी टीईटी मेरिट पर कराने की कोशिश शुरू कर दी तथा न्यायालय में वाद दायर कर दिया। इसकी देखा देखी में कुछ बीटीसी वालों को भी टीईटी मेरिट का मोह जाग गया तथा उन्होंने भी इस सम्बन्ध में केस फ़ाइल कर दिया। जूनियर भर्ती का केस जस्टिस सुधीर अग्रवाल जी की बेंच में पहुँचा जहाँ उन्होंने दिनांक 25/05/2015 को आर्डर रिज़र्व करते हुए, दिनांक 18/08/2015 को फैसला सुनाया तथा किसी भी प्रकार की टीईटी मेरिट की मांग को कई नजीर लगाते हुए ठुकरा दिया।

जब 100% टीईटी मेरिट का डिब्बा गुल होता दिखा तब उक्त नेताओं ने सोचा कि 100% न सही कुछ तो वेटेज मिल जाए हमें टीईटी के अंकों का। इसी जुगाड़ तुगाड़ में उक्त नेताओं का ध्यान एनसीटीई द्वारा 11/02/2011 को जारी टीईटी आयोजन से सम्बंधित 'गाइडलाइन' (N/N : 76-4/2010/NCTE/Acad)  के पैराग्राफ 9(b) पर गया जिसमें लिखा है कि :

👉 Para 9(b) : School managements (Government, local bodies, government aided and unaided) should give weightage to the TET scores in the recruitment process.

[विद्यालय व्यवस्थापकों (सरकारी, स्थानीय संस्था, सरकारी सहायता प्राप्त तथा गैर सहायता प्राप्त) को भर्ती प्रक्रिया में टीईटी के अंको का वेटेज देना चाहिए।]

उक्त पैराग्राफ में एनसीटीई ने 'सभी' विद्यालयों को अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया में टीईटी के अंको का वेटेज देने की बात कही। कितना वेटेज दिया जाना चाहिए इस सम्बन्ध में एनसीटीई की उक्त गाइडलाइन मौन है।

इस बात को बेस बना कर कई टीईटी नेताओं ने जूनियर भर्ती के आवेदकों को जिनका गुणांक प्रणाली से चयन नहीं हो पाया, लूटना शुरू कर दिया। यह सभी लोग 'अकादमिक प्रक्रिया' रद्द कराने की बात तो करते ही हैं लेकिन साथ में 'टीईटी मेरिट/वेटेज' लगवाने की बात भी करते हैं जिससे बेरोजगार प्रभावित होकर चंदे के द्वार इनके लिए खोल देते हैं।

खैर मेरी पोस्ट का विषय यह है कि जिस 9(b) के ऊपर यह लोग कूद रहे हैं वह 9(b) क्या वास्तव में कानूनी रूप से राज्य सरकार को बाध्य कर सकता है टीईटी वेटेज देने के लिए? इसकी जांच करने के लिए हमें एनसीटीई को विभिन्न कानूनों के द्वारा प्राप्त शक्तियों की जांच करनी होगी। एनसीटीई तथा इसकी शक्तियाँ 2 एक्ट से संचालित होती हैं :

1) NCTE Act, 1993
2) RTE Act, 2009

1) NCTE Act, 1993 : एनसीटीई का गठन NCTE Act, 1993 के सेक्शन 3(1) से किया गया था। एनसीटीई की शक्तियां इस एक्ट के सेक्शन 32 में तथा एनसीटीई के द्वारा किये जाने वाले कार्य (Functions) सेक्शन 12 में विहित हैं। इस एक्ट का सेक्शन 12(d) अध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने की शक्ति व जिम्मेदारी एनसीटीई को देता है तथा कहता है :

👉 Section 12(d) : The council (NCTE) may lay down guidelines in respect of minimum qualifications for a person to be employed as a teacher in schools or in recognised institutions.

(एनसीटीई विद्यालय अथवा मान्यता प्राप्त संस्थाओं में अध्यापक के रूप में भर्ती किये जाने वाले व्यक्ति हेतु 'न्यूनतम अर्हता' के सम्बन्ध में दिशानिर्देश जारी कर सकती है।)

इसके अतिरिक्त, इस एक्ट का सेक्शन 32 एनसीटीई को एक्ट में दिए गए विभिन्न कार्यों के सम्बन्ध में नियम बनाने की शक्ति देता है तथा इसी क्रम में 32(2)(d)(i) कहता है कि :

👉 Section 32(2)(d)(i) : In particular, and without prejudice to the generality of the foregoing power, such regulations may provide for the norms, guidelines and standards in respect of the minimum qualifications for a person to be employed as a teacher under clause (d) of section 12

(इस एक्ट में दी गई अन्य शक्तियों को प्रभावित किये बिना, एनसीटीई, सेक्शन 12 के क्लॉज़ (d) के अन्तर्गत अध्यापक के रूप में नियुक्त होने वाले व्यक्ति की 'न्यूनतम अर्हता' के सम्बन्ध में मानदंड, दिशानिर्देश व मानकों को नियम बनाकर जारी कर सकती है)

2) RTE Act, 2009 : इस एक्ट का निर्माण 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने के लिए किया गया था। तथा इस एक्ट के प्रावधानों को उचित रूप से लागू करने के सम्बन्ध में विभिन्न नियम बनाने की शक्ति केंद्र व राज्य सरकार को सेक्शन 38 के माध्यम से दी गई। इस एक्ट का सेक्शन 23(1) केंद्र सरकार को नोटिफिकेशन द्वारा 'अकादमिक अथॉरिटी' को नियुक्त करने का अधिकार देता है। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 'अकादमिक अथॉरिटी' द्वारा निर्धारित की गई 'न्यूनतम योग्यता' रखने वाला व्यक्ति ही अध्यापक के रूप में भर्ती किया जा सकता है।

👉 Section 23(1) : Any person possessing such minimum qualifications, as laid down by an academic authority, authorised by the Central Government, by notification, shall be eligible for appointment as a teacher.

इसी क्रम में केंद्र सरकार ने 5 अप्रैल 2010 को नोटिफिकेशन द्वारा एनसीटीई को अकादमिक अथॉरिटी नियुक्त कर दिया।

✒इस नोटिफिकेशन में स्पष्ट रूप से लिखा है कि एनसीटीई को #न्यूनतम_योग्यता_निर्धारित_करने_हेतु अकादमिक अथॉरिटी नियुक्त किया जाता है। 👈

 तदोपरान्त एनसीटीई ने अपने विभिन्न नोटिफिकेशन द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु 'न्यूनतम योग्यता' निर्धारित कर दी। इसी के आधार पर एनसीटीई ने 11 फ़रवरी 2011 को टीईटी के आयोजन के सम्बन्ध में दिशानिर्देश जारी कर दिए जिसके पैरा 9(b) पर चर्चा हो रही है।
ऊपर दिए गए तथ्य एक बात की ओर इशारा करते हैं कि एनसीटीई का कार्य सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु 'न्यूनतम योग्यता' निर्धारित करना है। उक्त दोनों ही एक्ट एनसीटीई को 'सहायक अध्यापक' पद पर चयन हेतु प्रक्रीया निर्धारण करने की शक्ति नहीं देते हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वयं केंद्र सरकार ही टीईटी के अंको का वेटेज किसी भी भर्ती में नहीं देती है।

👉 प्रश्न यह उठता है कि जब एनसीटीई के पास इस सम्बन्ध में नियम बनाने की शक्ति नहीं है तो किस के पास है?
👉 इस प्रश्न का उत्तर संविधान के अनुच्छेद 309 में छिपा हुआ है। अनुच्छेद 309 राज्य सरकार को सरकारी नौकरी पर भर्ती प्रक्रिया तथा अन्य भर्ती एवं कर्मचारियों को रेगुलेट करने हेतु नियम बनाने की शक्ति देता है। इस शक्ति के आधार पर 'उत्तर प्रदेश अध्यापक सेवा नियमावली, 1981' का गठन किया किया जिसके द्वारा सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति, सेवा, प्रमोशन आदि को रेगुलेट किया जाता है। अर्थात आर्टिकल 309 के अनुसार, सहायक अध्यापक के पद पर चयन प्रक्रिया निर्धारण का अधिकार राज्य सरकार के पास है। इसके अतिरिक्त RTE Act, 2009 के सेक्शन 23(3) तथा 38(2)(i) भी इसका अनुमोदन करते हैं।

जब कानून में किसी व्यक्ति को कोई काम करने की शक्ति नहीं होती है तब उस व्यक्ति द्वारा किये गए ऐसे काम को 'Ultra Vires' कहा जाता है, अर्थात अपनी शक्ति से बाहर जाकर किया जाने वाला काम। एनसीटीई को किसी भी प्रावधान के अंतर्गत नियुक्ति प्रक्रिया निर्धारित करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

अब यदि 9(b) को राज्य सरकार पर बाध्य करने की बात कही जाती है तो किस प्रावधान के अंतर्गत 9(b) को राज्य सरकार पर बाध्य किया जाएगा जबकि चयन प्रक्रिया में हस्तक्षेप का अधिकार एनसीटीई के पास है ही नहीं। इस प्रकार की कोई भी बाध्यता राज्य सरकार के अधिकार पर अतिक्रमण होगा जो कि कानूनी रूप से मान्य नहीं किया जा सकता है। अंतरिम आदेश को अंतिम आदेश मानने वालों को कानून का ठीक से अध्ययन करना चाहिए। अंतरिम आदेश में जज 'Prima facie' अर्थात प्रथम दृष्टया जो उचित लगता है वह आदेश दे देते हैं तथा पूरे मामले को सुनने के बाद जो अंतिम आदेश आता है वह वर्तमान कानूनी प्रावधानों के अनुरूप ही देना होता है। केवल इस आधार पर कि जज साहब को कोई बात अच्छी लग रही है, उस बात के पक्ष में जज फैसला नहीं सुना सकते। जज साहब को भले ही टीईटी मेरिट पसंद आती हो लेकिन यदि कानूनी रूप से सरकार को टीईटी मेरिट/ वेटेज देने को बाध्य नहीं किया जा सकता है तो जज साहब जबरदस्ती यह काम नहीं कर सकते। अंतिम फैसला क़ानून के दायरे में रह कर ही देना होता है। जज का काम नियम/कानून बनाना नहीं है। जज का काम वर्तमान में उपस्थित कानून की जांच करना व उसका सही ढंग से पालन कराना है। इस सम्बन्ध में भूतपूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा था कि :


"If there is a law, judges can certainly enforce it, but judges cannot create a law and seek to enforce it."
(यदि कोई क़ानून है तो निश्चित तौर पर कोर्ट उसका पालन करा सकती है लेकिन जज स्वयं कोई कानून नहीं बना सकते और न ही ऐसे कानून को लागू करने का प्रयास कर सकते हैं)

मैं यह नहीं कहता हूँ कि मैं एकदम सही हूँ और जज साहब भी यह ही फैसला देंगे लेकिन मैं इतना अवश्य कहता हूँ कि जो भी इस पोस्ट में लिखा गया है वह एकदम सत्य है तथा कानूनी तथ्यों के आधार पर बहुत खोजबीन व विचारोपरान्त लिखा गया है तथा इन तथ्यों को जस्टिस अरुण टण्डन तथा जस्टिस सुधीर अग्रवाल जी द्वारा भी अपने आदेशों में समाहित किया गया है।
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