Think about this : क्या कोई दूसरा विकल्प है कि बना भारांक को दिए ये भर्तियां चरम पर पहुँच जाएं ? : Himanshu Rana

माननीय उच्च न्यायालय खंड पीठ इलाहबाद ने NCTE के क्लॉज़ 9 B की व्याख्या जो कि फुल बेंच द्वारा की गई थी को आधार मानकर पुराना ऐड बहाल किया था जो कि आज माननीय उच्चत्तम न्यायालय में बिना स्टे ग्रांट हुए विचाराधीन है और अब वहां भारांक पर ही मुख्य बेहेस होनी तय है कि कितना भारांक दिया जाए
जबकि 17 दिसंबर 2014 को एडवोकेट जनरल ये साफ़ कर चुके हैं कि भारांक आवश्यक है और ये सरकार के ऊपर है कि भारांक कितना दिया जाए परंतु आवश्यक है भारांक का देना जिस पर न्यायमूर्ति दीपक मिश्र जी ने असहमति जताते हुए संसद का भी हवाला दिया था कि अगर आप वहां ये सब तय करते तो आज पूरे देश में एक प्रणाली होती , जिसके लिए अब मुद्दा विचाराधीन है |
लेकिन एक बात साफ़ है कि कई भर्तियां जो कि चाहे गणित-विज्ञान की हो या बीटीसी की , उपरोक्त उल्लेखित मामले के विचाराधीन रखी गई थी परंतु सरकार के इस नंगे नाच में बेरोजगार पिसता भी गया और अवैधानिक तरीके से नौकरी करता भी गया जिसकी जिम्मेदारी सूबे के मुख्यमंत्री की है जो अपनी हठधर्मिता और कुछ आला-अधिकारियों के मकड़जाल में फंसकर नौकरी करते युवा के भविष्य के साथ खेल गए (शिक्षा-मित्र अपने को युवा न समझें क्योंकि 15 वर्ष के संविदा कार्यकाल में वे जिस युवा का इन्तजार कर रहे थे उसने इनका भी बुढापा ही खराब किया है) |
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क्या कोई दूसरा विकल्प है कि बना भारांक को दिए ये भर्तियां चरम पर पहुँच जाएं ?
एक बात और देखने वाली ये होगी कि जब विज्ञापन निकले ये सभी तो उसमे भी चयन का आधार साफ़ उल्लेखित था और ये सभी जानते हैं कि वो चयन केआधार का दोष भी माननीय उच्चत्तम न्यायालय से दूर हुए बिना कुछ नहीं होगा परंतु अगर माननीय उच्च न्यायालय यहाँ फैसला देता है तो इतने प्रश्न के उत्तर कहाँ से आएँगे ?
क्या समस्त विज्ञापन निरस्त होकर भर्तियां ख़त्म हो जाएंगी ?
क्या न्यायमूर्ति बिना विज्ञापन के विकल्प के निकले हुए विज्ञापन पर चयन का आधार पलट देंगे कि आपके विज्ञापन में ये दोष था इसको दूर करके भारांक लगाइये चूंकि कोर्ट भारांक नहीं बता सकती है कि कितना देना है ?
क्या फुल बेंच के आदेश में ये उल्लेखित है कि टेट मेरिट इस बेस्ट ?
क्या प्रतिवादी के अधिवक्ता ये दलील नहीं रखेंगे कि हमने विज्ञापन के शर्तों पर अप्लाई किया था तो हमारा अधिकार जनरेट हुआ है और हम नौकरी कर रहे हैं (हालाँकि ये दलील दकियानूसी है ) ?
क्या बीटीसी वाले ये बात नहीं रखेंगे कि विज्ञापन के पदों के सापेक्ष हमारी संख्या कम थी तो हमें माफ़ करें ?
सबसे महत्वपूर्ण क्या खरे साहब की इस दलील से कोर्ट कंविंस हो जाएगी कि जब माननीय उच्च न्यायालय खंडपीठ अपना आदेश दे चूका था और अपैक्स कोर्ट से स्टे रिजेक्टेड था तो उस समय 12 कोर्ट के अनुसार प्रभावी था , फिर ये चयन कैसे हुए क्योंकि अपने आदेश में खंडपीठ के द्वारा सरकार द्वारा लाए गए समस्त संशोधनों को खारिज कर दिया था ?
समस्त ऐड निरस्त हो जाएंगे बस उन्हें छोड़कर जिनमे चयन विज्ञापन में दर्शाये गए पदों से निम्न हैं लेकिन उन्हें भी ( शकुल भाई को 😜) कोर्ट जाना होगा चूंकि मामला दिल्ली पहुँचाना तय है तो दीपक सर कुछ भी कर सकते हैं , उनकी सोच वो रहती है हर बार कि आप कोर्ट के विषय में दो हजार सोच का आंकलन रखिये वे अपनी दो हजार एक्वी सोच को दर्शाकर आदेश पारित करते हैं |
टेट मेरिट बने माननीय उच्च न्यायालय से ये कहना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि खरे साहब की एल दलील नए सीजे पर क्या प्रभाव डालेगी वे देखने लायक होगी |
देखते हैं क्या होता है इस एपिसोड में भी वैसे सुधीर अग्रवाल जी मुहर लगा ही गए थे ?
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