उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (उशिसे) की स्थापना सरकारी सहायता प्राप्त स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में शिक्षकों तथा प्राचार्यों का निष्पक्ष एवं वस्तुनिष्ठ तरीके से चयन करने के उद्देश्य से की गयी थी।
अपनी ही विनियमावली की व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर मनमाने ढंग से अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जा रहा है। धड़ाधड़ साक्षात्कार और परिणाम निकालने की कवायद चल रही है।उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के विज्ञापन संख्या 46 की बात करें तो आयोग ने लिखित परीक्षा के बाद कुछ विषयों में 35 गुना, 40 गुना तथा 87 गुना तक अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जो अब भी जारी है। जबकि उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (अध्यापकों की चयन प्रक्रिया) विनियमावली 2014 की धारा- 6 (2) में प्रावधान किया गया है कि ‘लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों में से साक्षात्कार के लिए बुलाये जाने वाले अभ्यर्थियों की संख्या रिक्तियों की संख्या के तीन से पांच गुना तक जैसा आयोग उचित समझे, होगी।’ विज्ञापन संख्या 46 में विषयवार साक्षात्कार के लिए बुलाए जा रहे अभ्यर्थियों की संख्या पर नजर डालें तो पूरी कहानीे खुद ब खुद स्पष्ट हो जा रही है। बीस विषयों में सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के रिक्त पदों उसके सापेक्ष साक्षात्कार के लिए बुलाए गये अभ्यर्थियों की संख्या की बात करें तो यह उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (अध्यापकों की चयन प्रक्रिया) विनियमावली 2014 की धारा- 6 (2) का मजाक उड़ा रही है। सामान्य वर्ग में जहां विभिन्न विषयों में पदों की संख्या के सापेक्ष पांच से सात गुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग में इतिहास में 87 गुना, सांख्यिकी में 35 गुना व प्राचीन इतिहास में 30 गुना जबकि अन्य कई विषयों में भी 9 से 18 गुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है। इसी तरह अनुसूचित जाति वर्ग में अर्थशास्त्र में 40 गुना, शिक्षाशास्त्र में 36 गुना व राजनीति विज्ञान में 21 गुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है। उल्लेखनीय है कि विज्ञापन संख्या 46 की लिखित परीक्षा भी सवालों के घेरे में रही है। लिखित परीक्षा की सैकड़ों कापियां सादी पकड़ी गयीं थीं। यही नहीं बिना संघटन के आयोग ने कई विषयों के साक्षात्कार करा डाले। ज्ञातव्य हो कि प्राचार्यों की नियुक्ति के प्रकरण में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्णय दिया था कि आयोग साक्षात्कार के लिए उचित तरीके से स्थापित मानदंड, न्यूनतम स्तर तथा मार्ग निर्देशक सिद्धांत निर्धारित करे। किंतु विज्ञापन संख्या 46 के मामले में आयोग ने 2014 की अपनी विनियमावली में निर्धारित तीन से पांच गुने अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में बुलाने की व्यवस्था की धज्जियां उड़ा डाली।
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अपनी ही विनियमावली की व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर मनमाने ढंग से अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जा रहा है। धड़ाधड़ साक्षात्कार और परिणाम निकालने की कवायद चल रही है।उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के विज्ञापन संख्या 46 की बात करें तो आयोग ने लिखित परीक्षा के बाद कुछ विषयों में 35 गुना, 40 गुना तथा 87 गुना तक अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जो अब भी जारी है। जबकि उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (अध्यापकों की चयन प्रक्रिया) विनियमावली 2014 की धारा- 6 (2) में प्रावधान किया गया है कि ‘लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों में से साक्षात्कार के लिए बुलाये जाने वाले अभ्यर्थियों की संख्या रिक्तियों की संख्या के तीन से पांच गुना तक जैसा आयोग उचित समझे, होगी।’ विज्ञापन संख्या 46 में विषयवार साक्षात्कार के लिए बुलाए जा रहे अभ्यर्थियों की संख्या पर नजर डालें तो पूरी कहानीे खुद ब खुद स्पष्ट हो जा रही है। बीस विषयों में सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के रिक्त पदों उसके सापेक्ष साक्षात्कार के लिए बुलाए गये अभ्यर्थियों की संख्या की बात करें तो यह उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (अध्यापकों की चयन प्रक्रिया) विनियमावली 2014 की धारा- 6 (2) का मजाक उड़ा रही है। सामान्य वर्ग में जहां विभिन्न विषयों में पदों की संख्या के सापेक्ष पांच से सात गुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग में इतिहास में 87 गुना, सांख्यिकी में 35 गुना व प्राचीन इतिहास में 30 गुना जबकि अन्य कई विषयों में भी 9 से 18 गुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है। इसी तरह अनुसूचित जाति वर्ग में अर्थशास्त्र में 40 गुना, शिक्षाशास्त्र में 36 गुना व राजनीति विज्ञान में 21 गुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है। उल्लेखनीय है कि विज्ञापन संख्या 46 की लिखित परीक्षा भी सवालों के घेरे में रही है। लिखित परीक्षा की सैकड़ों कापियां सादी पकड़ी गयीं थीं। यही नहीं बिना संघटन के आयोग ने कई विषयों के साक्षात्कार करा डाले। ज्ञातव्य हो कि प्राचार्यों की नियुक्ति के प्रकरण में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्णय दिया था कि आयोग साक्षात्कार के लिए उचित तरीके से स्थापित मानदंड, न्यूनतम स्तर तथा मार्ग निर्देशक सिद्धांत निर्धारित करे। किंतु विज्ञापन संख्या 46 के मामले में आयोग ने 2014 की अपनी विनियमावली में निर्धारित तीन से पांच गुने अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में बुलाने की व्यवस्था की धज्जियां उड़ा डाली।
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