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11 घटनाएं जो साबित करती हैं कि अखिलेश दुबारा मुख्यमंत्री बनने लायक नहीं हैं

मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश यादव खुद सपा के अध्यक्ष बन गये हैं. जनता में बड़ा पॉजिटिव माहौल बना है. पर ये लग रहा है कि अखिलेश हर तरह के ब्लेम से मुक्त हैं.
सारी गलती सपा पार्टी की है. सपा के पुराने नेताओं की है. अखिलेश सरकार तो एकदम काम करने के मोड में थी. पिछले छह महीनों में अखिलेश ने यही इमेज बनाने की कोशिश की है और सफल भी रहे हैं. जून 2016 से मुख्तार अंसारी की पार्टी के सपा में विलय को लेकर शिवपाल के खिलाफ निशाना साधा अखिलेश ने. तो तुरंत इमेज बन गई कि अखिलेश गुंडई के खिलाफ लड़ रहे हैं.

पर पिछले 5 साल में अगर अखिलेश यादव की सरकार के काम-काज पर ध्यान दें तो कई चीजें ऐसी निकलेंगी जिससे पता चलेगा कि अखिलेश शासन काल के अंत में जागे हैं. ये काम तो हर मुख्यमंत्री करता है. आइए देखते हैं अखिलेश सरकार की नाकामियों को-

1. दंगे जिन्हें अखिलेश रोक नहीं पाये

मुजफ्फरनगर दंगे
इसकी शुरूआत हुई मुजफ्फरनगर से. इन दंगों में 62 लोग मारे गये. जिस वक्त हजारों लोग विस्थापित होकर टेंट में रह रहे थे, अखिलेश सैफई में सलमान खान का डांस देख रहे थे. जब आवाज उठी तो बुलडोजर से सारे टेंट गिरा दिये गये. कि इमेज खराब हो रही है. दंगे बस इतने ही नहीं थे. ये तो बहुत बड़े पैमाने पर था. 2012 में यूपी में कुल 227 दंगे हुए. 2013 में 247. 2014 में 242. 2015 में 219. 2016 में भी 100 के ऊपर हो चुके हैं. दंगों के मामले में यूपी देश में एक नंबर पर है. ये केसों की बात थी. अगर सारे दंगे जोड़ दिये जायें तो डाटा कुछ और ही होगा. ये दंगे सिर्फ धार्मिक नहीं हैं. जमीन को लेकर, जाति को लेकर, छात्रों के दंगे सब शामिल हैं इनमें. दंगे का नाम आते ही हिंदू-मुस्लिम जेहन में आते हैं. पर यूपी में पब्लिक की हिंसा हर स्तर पर है.

2. मथुरा का रामवृक्ष कांड, जो अखिलेश को बबुआ बना गया

घायल सिपाही
280 एकड़ सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने गई पुलिस टीम पर हमला हो गया. एसपी और एसएचओ मारे गये. 23 पुलिसवाले अस्पताल में भर्ती हुए. जवाहर पार्क में रामवृक्ष यादव ने कब्जा जमा रखा था. पूरी सेना बना रखी थी. पुलिस के साथ लड़ाई चली. कुल 24 लोग मारे गये. चारों ओर से खुसुर-फुसुर होने लगी कि रामवृक्ष को सपा नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त था. क्योंकि बिना उसके इतनी बड़ी घटना नहीं हो सकती. सवाल ये है कि सरकार क्या कर रही थी इतने दिन तक. किसने उसे प्रश्रय दिया था. क्या सरकार अनजान थी. तब तो ये और ज्यादा खतरनाक हो जाएगा. क्या अखिलेश को इसके बारे में पता नहीं था?

3. दादरी कांड जिसकी जिम्मेदारी अखिलेश ने नहीं ली

अखलाक का परिवार

जब धर्मांध लोगों ने अखलाक को घर से खींचकर मार डाला तो अखिलेश सरकार ने ऐसे रिएक्ट किया जैसे सरकार कहीं से भी इस मामले से जुड़ी नहीं है. ऐसा नहीं होता है. ऐसी घटनाएं शॉर्ट नोटिस पर नहीं होती. प्लानिंग होती है. सरकार के रवैये को भांपकर अंजाम दिया जाता है. क्या अखिलेश सरकार वोट के चक्कर में धर्मांध लोगों को शह दे रही थी. हर बार सपा के लोग सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने की बात करते हैं. पर सवाल ये है कि कौन सांप्रदायिक है. क्या अखिलेश सरकार सांप्रदायिक नहीं है. क्या सांप्रदायिक ना होने का मतलब ये होता है कि किसी भी संप्रदाय को नहीं बचाना है?

अगर अखिलेश ये कहें कि ये ‘सांप्रदायिक ताकतों’ के चलते हुआ. हमाया कोई दोष नहीं है. तो कुछ और चीजें भी हैं-

4. बदायूं रेप कांड के बाद हुआ बुलंदशहर रेप, मुख्यमंत्री क्या सोच रहे थे?

इसी पेड़ पर लटकाई गई थीं लाशें
दो नाबालिक लड़कियों का रेप और मर्डर हुआ. वो क्या सांप्रदायिक ताकतों ने किया था? आरोप तो सपा सांसद के नजदीकी लोगों पर लगा था. उन लोगों की हिम्मत कैसे हुई? क्या सांसद ने उन लोगों से पल्ला झाड़ा? अरविंद केजरीवाल के मंत्रियों पर जब आरोप लगे तो उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया. अखिलेश ने क्या किया? क्या ऐसा नहीं लगता कि उन लोगों को पूरा यकीन था कि सपा सांसद के नजदीकी हैं तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. क्या बदायूं में अब भी लड़कियां अकेले घूमने जाती हैं? पत्ते बीनने? पर इससे सबक नहीं लिया गया. इसके बाद बुलंदशहर के NH-91 पर 12 लोगों ने मां-बेटी से रेप किया. मंत्रियों के इन्सेंसिटिव बयान भी आए, जो इसके दर्द को बढ़ाने के लिए ही दिए गए थे. अपराध के लिए सरकार कह सकती है कि हमें पता नहीं था. पर क्या उसके बाद कोई सबक नहीं लेगी सरकार? एप्लिकेशन बना देने से हो जाएगा? पुलिस भर्ती में औरतों की भागीदारी, पुलिस में औरतों के प्रति संवेदनशीलता ये चीजें कैसे आएंगी? हमेशा रिपोर्ट में आता है कि यूपी औरतों के लिए सबसे खतरनाक जगह है.

5. पत्रकार को जिंदा जलाया गया, मरते हुए मंत्री का नाम लिया था, पर कौन पकड़ा गया?

जगेंद्र सिंह
शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जलाया गया. इसमें भी सपा के एक मंत्री का नाम आया. क्या वो मंत्री अभी जेल में है? नहीं. ये मामला ही पता नहीं कहां चला गया. जबकि मरते हुए जगेंद्र ने बयान दिया था कि मंत्री राममूर्ति वर्मा की शह पर पुलिस ने जलाया था. इस बयान को आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने ही रिकॉर्ड किया था. राममूर्ति स्टेट बैकवर्ड क्लासेज मिनिस्टर थे. इस मामले की गवाह थी एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता. और विडंबना ये है कि उसी औरत ने मूर्ति और उनके लोगों पर रेप का इल्जाम लगाया था. जगेंद्र ने इसी औरत के लिए लड़ाई लड़ी थी. उस औरत ने ये भी कहा था कि मूर्ति के लोगों ने जगेंद्र के साथ उसे भी जलाने का प्रयास किया था. पर वह भाग निकली. बाद में वो औरत अपने बयान से मुकर गई. ये कैसे हुआ? किसने उस औरत को मजबूर किया बयान बदलने के लिए? किन परिस्थितियों में कोई ऐसा करता है?

6. माइनिंग माफिया को लेकर अखिलेश चुप रहे, शायद इनको समझ ही नहीं आया

दुर्गाशक्ति नागपाल
अखिलेश के राज में माइनिंग को लेकर चर्चा हुई गौतमबुद्धनगर की कलेक्टर दुर्गाशक्ति नागपाल को लेकर. दुर्गा ने माफिया पर शिकंजा कसना शुरू किया तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. हालांकि 2016 में अखिलेश ने माइनिंग मिनिस्टर गायत्री प्रजापति को बर्खास्त कर दिया था. पर ये याद रखना होगा कि ये 2016 था. चुनाव आ रहा था.

7. आईजी अमिताभ ठाकुर का मुद्दा
अमिताभ ठाकुर
अमिताभ ठाकुर की पत्नी ने गायत्री प्रजापति के खिलाफ कंप्लेंट दर्ज कराई थी. इसके बदले अमिताभ को धमकियां मिलने लगीं. एक ऑडियो भी आया जिसमें पता चला कि खुद मुलायम सिंह यादव अमिताभ को धमका रहे थे. कि जैसे एक बार पहले पीटे गये थे, वैसे ही पीटे जाओगे. ठाकुर अक्टूबर 2015 से सस्पेंड हैं. अखिलेश ने क्या किया इस मामले में? आज अपनी गद्दी के लिए पिता के सामने खड़े हुए हैं. पर जनता के लिए कब खड़े हुए थे. 3 जनवरी को रिटायर हुए चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर ने जम्मू-कश्मीर में अपने डिप्टी सीएम पिता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. अखिलेश सिर्फ अपने स्वार्थ को लेकर अपने पिता के खिलाफ लड़े हैं.

8. यूपी पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन अनिल कुमार यादव का मुद्दा

अनिल कुमार यादव
अनिल कुमार यादव चेयरमैन थे. और तब कमीशन पर करप्ट प्रैक्टिस का आरोप लगा. कमीशन अनिल कुमार की निजी कंपनी की तरह काम कर रहा था. अखिलेश आंख मूंदे रहे. जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसमें हाथ डाला, तब अनिल को हटाया गया.

9. इससे बड़ा यादव सिंह का भ्रष्टाचार

यादव सिंह
नोएडा के चीफ इंजीनियर यादव सिंह पर सैकड़ों करोड़ की संपत्ति बनाने का आरोप लगा. पहले तो सरकार आना-कानी करती रही. फिर बाद में 2014 में सस्पेंड कर दिया गया. पर फरवरी 2015 में वन-मैन जुडिशियल इंक्वायरी बैठाई गई. क्योंकि इसे मैनेज करना आसान था. इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेटीशन फाइल की गई कि सीबीआई इंक्वायरी हो. अखिलेश सरकार ने इसका विरोध किया. पर कोर्ट ने ऑर्डर दे दिया. इसके बाद अखिलेश सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई. पर वहां पर भी हाई कोर्ट का ही फैसला माना गया. अखिलेश सरकार बेशर्मों की तरह काम कर रही थी. किसको बचा रही थी, कैसे छुपा है.

10. बुंदेलखंड की क्राइसिस

बुंदेलखंड क्राइसिस
2015 में बुंदेलखंड में फरवरी और अप्रैल में बारिश हो गई. फसलें खराब हो गईं. किसान मरने लगे. बहुतों ने आत्महत्या कर ली और कई हार्ट अटैक से मर गये. क्योंकि सरकार ने फसल खराब होने को लेकर कोई फैसला नहीं दिया था. किसी भी तरह के मुआवजे की बात नहीं की थी. और मुलायम सिंह यादव किसान नेता चौधरी चरण सिंह के साये में बड़े हुए थे. साल खत्म होने पर अखिलेश सरकार ने चैक बांटने शुरू किये. लोगों को 23-23 रुपये के चैक बांटे गये. बुंदेलखंड में ये क्राइसिस अचानक नहीं हो गई थी. वहां तीन साल से सूखा भी पड़ा था. अप्रैल 2016 में अखिलेश ऑस्ट्रेलिया जाने वाले थे. इससे पहले वो बुंदेलखंड गये. वहां जाकर कुछ राहत का ऐलान किया.

11. साढ़े चार मुख्यमंत्रियों की सरकार बना जनतंत्र का फ्यूनरल निकाला

समाजवाद पर चर्चा हो रही है शायद
अखिलेश सपा सरकार के अकेले मुख्यमंत्री नहीं रहे. बेशक वो इसका ठीकरा बाकी लोगों के सिर पर फोड़ सकते हैं. कह सकते हैं कि इसी बात की तो लड़ाई लड़ रहा हूं. पर ये लड़ाई 5 साल पूरा होने के बाद ही याद आई है. तो क्या अखिलेश को इसके लिए माफ कर दिया जाए कि आपका कोई दोष नहीं था? 2012 से 2015 तक मुलायम सिंह यादव हर छह महीने में एक बार अखिलेश को डांटते रहे. ये पहली बार हो रहा था कि किसी मुख्यमंत्री को उसका पार्टी सुप्रीमो पब्लिकली डांट रहा था. इनके अलावा PWD मिनिस्टर चाचा शिवपाल अलग मुख्यमंत्री बने हुए थे. रामगोपाल यादव अभी तो अखिलेश के साथ हैं, पर उस वक्त ये भी आधे मुख्यमंत्री हुआ करते थे. फिर अर्बन डेवेलपमेंट मिनिस्टर आजम खान ने अलग सत्ता जमा रखी थी. अखिलेश कहां थे? घर के छोटे बच्चे थे? सीख रहे थे? तो क्या जनता एक्सपेरिमेंट करने के लिए है? संजय गांधी ने भी एक बार एक्सपेरिमेंट किया था.
अखिलेश कैसे मुख्यमंत्री बनेंगे, इसका अंदाजा उसी समय हो गया था जब ये जीतकर आए थे. उसी दिन सपा के लोगों ने गुंडई मचा दी थी. कई जगह तो थाने फूंक दिये गये थे. क्या अखिलेश इससे भी अनजान थे? हर जगह तो सीना ठोंककर बोले हैं कि 2012 का चुनाव मैंने ही जितवाया है सपा को. अपने दोस्तों के साथ मिलकर पूरी प्लानिंग की थी. तो ब्लेम लेने में सेलेक्टिव क्यों? क्या क्रेडिट लेने का ही काम करेंगे? 5 साल तो मिल गये. अब फिर मांगेंगे 5 साल. कहेंगे कि मेट्रो ला दिये लखनऊ में. 1090 हेल्पलाइन लाये. डायल 100 लाये, पुलिस तुरंत आ जाती है. पर बड़ी घटनाओं ने क्या नजीर पेश की है? कभी-कभी तो ऐसा लग रहा है कि सारे प्रोजेक्ट सिर्फ सरकार की नाकामी छुपाने के लिए एनाउंस किये गये हैं. जब दिल्ली के ‘आधे’ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हर बात पर धर लिया जाता है तो अखिलेश से सिंपैथी क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि वो युवा हैं. या फिर इसलिए कि अपने पापा और चाचा से लड़ रहे हैं, अपनी गद्दी के लिए. जनता के लिए क्या किया है? क्या जनता अखिलेश का सिनेमा देखे?
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