यह अद्भुत संयोग है कि जहां शिक्षा हमारे जीवन से जितनी ही अधिक गंभीरता से जुड़ी है वहीं हमारी व्यवस्था उतनी ही तीव्र उदासीनता के साथ उसका मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सरकारी तंत्र में शिक्षा का नंबर बहुत बाद में या शायद सबके बाद ही आता है।
ज्ञान को पवित्र, क्लेशों से मुक्ति दिलाने वाला और कष्टों को दूर करने वाला एक श्रेष्ठ साधन माना जाता है। कहते हैं कि राजा तो सिर्फ अपने देश में ही पूजा जाता है परंतु विद्वान की तो देश-विदेश हर जगह ही पूछ होती है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि एक नागरिक के रूप में शिक्षा पाकर हम स्वयं अपने प्रति, अपने परिवार, समुदाय और देश के प्रति दायित्वों को अच्छी तरह निभा पाते हैं। सरकारें औपचारिक रूप से विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संस्थाओं के माध्यम से ज्ञान के प्रचार-प्रसार और खास तौर पर सामाजिक विस्तार का काम आगे बढ़ा रही हैं। इस कार्य में बहुत दिनों तक सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र ही प्रमुख किरदार था, परंतु अब स्थिति तेजी से बदल रही है और निजी क्षेत्र का शिक्षा में जोरदार प्रवेश हो रहा है। अब शिशुओं के लिए प्ले स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के निजी संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। इनमें से अधिकतर व्यापार-व्यवसाय की तर्ज पर शिक्षा संस्थानों को आय के अतिरिक्त और सम्मानजनक साधन के रूप में चला रहे हैं। सरकारी महकमे के नौकरशाही वाले लटके-झटके से मुक्त कई निजी संस्थान शिक्षा की अच्छी व्यवस्था कर रहे हैं पर उसकी अंधाधुंध कीमत भी वसूल रहे हैं। उनकी शिक्षा महंगी इसलिए भी लगती है कि अधिकांश सरकारी शिक्षा संस्थान लगभग मुफ्त शिक्षा देते हैं, क्योंकि वहां की सारी व्यवस्था सब्सिडी पर चल रही होती है। इस तरह एक ही शहर में एक ही पाठ्यक्रम की फीस में सरकारी और निजी संस्थानों के बीच जमीन-आसमान का फर्क दिखता है। इन्हें नियमित और व्यवस्थित करने का कोई तरीका नहीं है।
आम आदमी की मुसीबतें तब और भारी हो जाती हैं जब उनके बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता। अधिकांश शिक्षा संस्थानों के लिए शिक्षा प्रदान करने का काम सिर्फ प्रवेश और परीक्षा के दो तकनीकी कार्यो तक ही सिमटता जा रहा है। जहां तक सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का प्रश्न है वह भगवान भरोसे ही चल रही है। हमारी शिक्षा संस्थाएं इनके प्रति लगभग तटस्थ सा रुख अपनाती हैं। कक्षा और कक्षा के बाहर कोई विषय किस तरह जीवित रूप में अनुभव किया जाए और छात्र को विषय सीखने का जीवंत अनुभव मिले तथा उस अनुभव का किसी समस्या के समाधान में उपयोग करने का अवसर बने, इसके लिए शिक्षा में कहीं जगह नहीं बचती है। वहां तो ‘मक्षिका स्थाने मक्षिका’ को ही लाभकर माना जाता है। शिक्षा में सृजनात्मकता और नवोन्मेष एक दूसरे के विरोधी होते जा रहे हैं। इसके विपरीत बहु-विकल्प वाले (मल्टीपल च्वायस) सवाल रटने और तीर तुक्के को और उपयोगी बना रहे हैं। वे चल इसलिए रहे हैं, क्योंकि उनके उपयोग से परीक्षा और मूल्यांकन आसान हो जाता है। ज्ञान पाना, उसका उपयोग करने की क्षमता और सर्जनात्मकता का विकास बड़ा जरूरी है। 21वीं सदी में हम आगे चल सकें, इसके लिए शिक्षा के बारे में अपनी सोच और प्रक्रिया को बदलना ही होगा।
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं)
sponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
- सुप्रीम कोर्ट का फाइनल संभावित आर्डर : 172000 शिक्षामित्रों, 99000 अकैडमिक, 72000 टी ई टी मेरिट सबको समाप्त करके खुली प्रतियोगिता की संभावना
- कैसे होगा न्याय : ये संभव नही की 83 वाला नियुक्त रहे और 115 वाला कम्पटीशन दे
- जनरल ऑर्डर आएगा : सभी टेट पास रिक्त पदों के योग्य , सभी टेट 2011 पास को ये नौकरी मिलेगी
- UPTET SHIKSHAMITRA : शिक्षामित्रों की समायोजन और शिक्षकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में हिमांशु राणा की फेसबुक पोस्ट
- 10 तक मांगी गई एलटी ग्रेड शिक्षकों की वरिष्ठता सूची
ज्ञान को पवित्र, क्लेशों से मुक्ति दिलाने वाला और कष्टों को दूर करने वाला एक श्रेष्ठ साधन माना जाता है। कहते हैं कि राजा तो सिर्फ अपने देश में ही पूजा जाता है परंतु विद्वान की तो देश-विदेश हर जगह ही पूछ होती है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि एक नागरिक के रूप में शिक्षा पाकर हम स्वयं अपने प्रति, अपने परिवार, समुदाय और देश के प्रति दायित्वों को अच्छी तरह निभा पाते हैं। सरकारें औपचारिक रूप से विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संस्थाओं के माध्यम से ज्ञान के प्रचार-प्रसार और खास तौर पर सामाजिक विस्तार का काम आगे बढ़ा रही हैं। इस कार्य में बहुत दिनों तक सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र ही प्रमुख किरदार था, परंतु अब स्थिति तेजी से बदल रही है और निजी क्षेत्र का शिक्षा में जोरदार प्रवेश हो रहा है। अब शिशुओं के लिए प्ले स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के निजी संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। इनमें से अधिकतर व्यापार-व्यवसाय की तर्ज पर शिक्षा संस्थानों को आय के अतिरिक्त और सम्मानजनक साधन के रूप में चला रहे हैं। सरकारी महकमे के नौकरशाही वाले लटके-झटके से मुक्त कई निजी संस्थान शिक्षा की अच्छी व्यवस्था कर रहे हैं पर उसकी अंधाधुंध कीमत भी वसूल रहे हैं। उनकी शिक्षा महंगी इसलिए भी लगती है कि अधिकांश सरकारी शिक्षा संस्थान लगभग मुफ्त शिक्षा देते हैं, क्योंकि वहां की सारी व्यवस्था सब्सिडी पर चल रही होती है। इस तरह एक ही शहर में एक ही पाठ्यक्रम की फीस में सरकारी और निजी संस्थानों के बीच जमीन-आसमान का फर्क दिखता है। इन्हें नियमित और व्यवस्थित करने का कोई तरीका नहीं है।
आम आदमी की मुसीबतें तब और भारी हो जाती हैं जब उनके बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता। अधिकांश शिक्षा संस्थानों के लिए शिक्षा प्रदान करने का काम सिर्फ प्रवेश और परीक्षा के दो तकनीकी कार्यो तक ही सिमटता जा रहा है। जहां तक सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का प्रश्न है वह भगवान भरोसे ही चल रही है। हमारी शिक्षा संस्थाएं इनके प्रति लगभग तटस्थ सा रुख अपनाती हैं। कक्षा और कक्षा के बाहर कोई विषय किस तरह जीवित रूप में अनुभव किया जाए और छात्र को विषय सीखने का जीवंत अनुभव मिले तथा उस अनुभव का किसी समस्या के समाधान में उपयोग करने का अवसर बने, इसके लिए शिक्षा में कहीं जगह नहीं बचती है। वहां तो ‘मक्षिका स्थाने मक्षिका’ को ही लाभकर माना जाता है। शिक्षा में सृजनात्मकता और नवोन्मेष एक दूसरे के विरोधी होते जा रहे हैं। इसके विपरीत बहु-विकल्प वाले (मल्टीपल च्वायस) सवाल रटने और तीर तुक्के को और उपयोगी बना रहे हैं। वे चल इसलिए रहे हैं, क्योंकि उनके उपयोग से परीक्षा और मूल्यांकन आसान हो जाता है। ज्ञान पाना, उसका उपयोग करने की क्षमता और सर्जनात्मकता का विकास बड़ा जरूरी है। 21वीं सदी में हम आगे चल सकें, इसके लिए शिक्षा के बारे में अपनी सोच और प्रक्रिया को बदलना ही होगा।
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं)
- शिक्षक भर्ती धांधली : निशाने पर एक हजार शिक्षक
- UPTET Yachi List : 72,825 याची लिस्ट देखने और डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें
- शिक्षामित्रों और टेट भर्ती के करीब 3 लाख शिक्षकों को न्यायालय के फैसले के बाद ही मिलेगा एनपीएस का लाभ
- B.Ed वालों के लिए बहुत ही जल्दी बड़ी भर्ती : मुख्यमंत्री
- जनरल ऑर्डर आएगा : सभी टेट पास रिक्त पदों के योग्य , सभी टेट 2011 पास को ये नौकरी मिलेगी
- कैसे होगा न्याय : ये संभव नही की 83 वाला नियुक्त रहे और 115 वाला कम्पटीशन दे
sponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines