सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में शिक्षा मित्रों को लेकर फ़ाइल की गई एसएलपी की व्याख्या : मित्रों, सुप्रीम कोर्ट में शिक्षा मित्रों के बचाव हेतु राज्य सरकार द्वारा फ़ाइल की गई विशेष अनुज्ञा याचिका (SLP) के शुरू के कुछ पेज अपलोड किये थे, जिनमें सरकार ने 12 सितम्बर 2015 के इलाहाबाद उच्च
यदि इस याचिका के आधार पर सरकार शिक्षा मित्रों को बचाने की सोच रही है तब यह बहुत बड़ी गलतफहमी है सरकार की तथा शिक्षा मित्रों से मखौल कर रही है सरकार। सरकार ने जो तर्क दिए वह बहुत ही बेवक़ूफ़ाना व कमजोर हैं। आइये देखते हैं सरकार ने क्या क्या बकैती पेली है।
सर्वप्रथम सरकार ने एसके पाठक की सिविल अपील में शिक्षा मित्रों से सम्बंधित समस्त केसों को हाई कोर्ट की ट्रिपल बेंच को ट्रान्सफर करने वाले आदेश का सन्दर्भ ग्रहण कराया है। तदोपरान्त 12 सितम्बर 2015 के आदेश में मुख्य न्यायाधीश ने जो अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया उन्नीसवाँ संशोधन, यूपीआरटीई रूल्स, 2011 में किया गया संशोधन '16 क' तथा समायोजन के सारे शासनादेश रद्द कर दिए थे, का जिक्र करते हुए अपना रोना रोया है। अब मैं एक एक कर के सरकार ने जो गिड़गिड़ की है, उसकी व्याख्या करने का प्रयास करता हूँ :
1) शिक्षा मित्र स्कीम जो उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन एक्ट, 1972 के सेक्शन 13(1) तथा संविधान के अनुच्छेद 162 के अंतर्गत 1:40 के विद्यार्थी, शिक्षक अनुपात तथा 3:2 के अध्यापक, शिक्षा मित्र अनुपात तथा प्राइमरी विद्यालयों में अध्यापकों की भारी कमी को ध्यान में रखते हुए एक उचित एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया द्वारा एक निश्चित मानदेय पर चलाई गई थी जबकि उस समय योग्य व्यक्तियों का अकाल पड़ा हुआ था। क्या इसको अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 से बाहर मानना उचित है?
उत्तर : सरकार यहाँ वहां के तर्क देकर शिक्षा मित्रों की नियुक्ति को सही ठहराने की कोशिश कर रही है, जबकि मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद हाई कोर्ट के अनुसार शिक्षा मित्रों की नियुक्ति, अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 के अनुसार नहीं हुई थी। यदि सरकार शिक्षा मित्रों को शिक्षक की श्रेणी में रखती है तब सरकार को यह सिद्ध करना होगा कि शिक्षा मित्रों को अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 के अनुसार नियुक्त किया गया था। नियमावली के अनुसार अध्यापक बनने की योग्यता 'स्नातक + द्विवर्षीय बीटीसी' थी जबकि शिक्षा मित्रों को इंटर पास कर के शिक्षा मित्र पद पर नियुक्त किया गया था। न तो यह लोग नियुक्ति के समय स्नातक किये हुए थे तथा न ही बीटीसी। साथ ही साथ इन की नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन नहीं की गई थी, स्वीकृत पदों का निर्धारण नियमावली के नियम 4 के अनुसार किया जाता है जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने अत्यधिक जोर दिया है तथा कहा है :
'The fact that the number of persons engaged as Shiksha Mitras may have been determined on an application of a teacher-student ratio of 1:40, is not an indicator that the Shiksha Mitras were appointed to sanctioned posts.'
(यह तथ्य की शिक्षा मित्रों को 1:40 के विद्याथी - शिक्षक अनुपात में रखा गया था इस बात को प्रदर्शित नहीं करता है कि इनका चयन स्वीकृत पदों पर हुआ था)
उमा देवी केस के अनुसार जब नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन तथा नियमावली के अनुसार नहीं होती है तब ऐसी नियुक्ति गैर कानूनी कहलाती है, अर्थात इनका शिक्षा मित्र पद ही गैर कानूनी है। इस बात को आगे बढ़ाते हुए संविधान के आर्टिकल 162 के अंतर्गत राज्य सरकार की अस्थाई कर्मियों को स्थाई करने की शक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के A Umarani Vs Registrar, Coop Societies केस में दिए गए आदेश को आधार बनाते हुए कहा :
No regularization is, thus, permissible in exercise of statutory power conferred under Article 162 of the Constitution if the appointments have been made in contravention of the statutory rules.
(यदि नियुक्ति कानूनी नियमों के अनुसार नहीं हुई है तब ऐसी अस्थाई नियुक्ति को आर्टिकल 162 के अंतर्गत दी हुई शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्थाई नहीं किया जा सकता है।)
2) क्या केवल केंद्र सरकार द्वारा 23 अगस्त 2010 को जारी नोटिफिकेशन जिसके द्वारा टीईटी को अध्यापक बनने की न्यूनतम योग्यता में शामिल किया गया था, के आधार पर 2010 से पूर्व पारित किये गए उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन एक्ट, 1972 के अंतर्गत लिए गए निर्णयों को अल्ट्रा वायर्स करार दिया जा सकता है?
उत्तर : यह प्रश्न सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण है। सर्वप्रथम तो 23 अगस्त 2010 का नोटिफिकेशन केंद्र सरकार ने नहीं अपितु एनसीटीई ने केंद्र सरकार द्वारा 'अकादमिक अथॉरिटी' नियुक्त होने के पश्चात जारी किया था तथा इस नोटिफिकेशन के द्वारा एनसीटीई ने प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु 'न्यूनतम योग्यता' निर्धारित कर दी।
इस नोटिफिकेशन के अनुसार सहायक अध्यापक बनने की न्यूनतम योग्यता निम्नवत है :
👉 न्यूनतम 50% अंकों के साथ इंटरमीडिएट तथा द्विवर्षीय बीटीसी/बीएलएड
('एवं')
👉 शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना।
👉उक्त नोटिफिकेशन के द्वारा कक्षा 1 से 8 के लिए शिक्षक बनने हेतु 'शिक्षक पात्रता परीक्षा' (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया गया।👈
तथा 23 अगस्त 2010 को जारी नोटिफिकेशन के क्लॉज़ 4 के द्वारा 3 प्रकार के शिक्षकों को टीईटी से छूट दी गई थी जो कि निम्नवत हैं :
(a) जो अध्यापक उक्त नोटिफिकेशन के जारी होने की तिथि अर्थात 23 अगस्त 2010 से पूर्व तथा 3 सितम्बर 2001 जिस दिन एनसीटीई रेगुलेशन 2001 जारी हुए थे, के बाद नियुक्त हुए हों।
(b) कक्षा 1 से 5 हेतु जो बीएड धारी सहायक अध्यापक बनाए गए हैं, उन्होंने 6 माह का विशिष्ट बीटीसी कोर्स किया हो।
(c) जो शिक्षक 3 सितम्बर 2001 को जारी एनसीटीई नोटिफिकेशन जारी होने से पूर्व सम्बंधित नियमों (उत्तर प्रदेश अध्यापक सेवा नियमावली, 1981) के तहत सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हो चुके हों।
शिक्षा मित्र न तो एनसीटीई रेगुलेशन 2001 के अनुसार नियुक्त हुए थे तथा न ही अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 के अनुसार (जैसा कि प्रथम प्रश्न के उत्तर में बताया मैंने) अतः शिक्षा मित्रों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट मिलना सम्भव नहीं है।
संविधान का आर्टिकल 254 कहता है कि यदि राज्य व केंद्र किसी मुद्दे पर संयुक्त रूप से कानून बना सकते हैं तब केंद्र का कानून, राज्य के कानून को 'Supersede' करेगा अर्थात केंद्र का कानून माना जाएगा। चूँकि शिक्षा 'समवर्ती सूची' में आती है, तथा इस पर केंद्र व राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, केंद्रीय कानून 'आरटीई एक्ट, 2009' के सेक्शन 23(1) के अनुसार अध्यापक पद पर न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने का अधिकार एनसीटीई को है जिसमें राज्य सरकार टांग नहीं अड़ा सकती, अतः एनसीटीई के 23 अगस्त 2010 के आधार पर सरकार द्वारा बनाए गए मनमाने नियम बिलकुल अल्ट्रा वायर्स किये जा सकते हैं।
3) क्या आरटीई एक्ट के सेक्शन 23(1) के अंतर्गत बनाई गई 'अकादमिक अथॉरिटी' (एनसीटीई) के द्वारा दी गई सफाई कि '25/08/2010 से पूर्व नियुक्त अप्रशिक्षित सेवारत शिक्षकों जो लगातार सेवा में रहे हों, पर टीईटी बाध्य नहीं होगा' के बाद भी शिक्षा मित्रों जो 1999 से लगातार बिना किसी 'बड़े व्यवधान' के कार्य कर रहे हैं तथा जिन्होंने बीटीसी प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया है, पर टीईटी बाध्य किया जाना उचित है?
उत्तर : उक्त कथन के अनुसार, केवल उन शिक्षकों को छूट है जो 25/08/10 से पूर्व पूर्णकालिक पद पर नियुक्त हुए थे। शिक्षा मित्र संविदा कर्मी मात्र हैं जिनकी नियुक्ति 11 माह की संविदा पर हुई थी। इनकी नियुक्ति प्रत्येक वर्ष के जून माह में समाप्त हो जाती है तथा जुलाई माह से दोबारा नई नियुक्ति होती है। शिक्षा मित्रों को अध्यापक मानने से इंकार करते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन्हें सामुदायिक सेवक मात्र माना है तथा Sanjay Kumar Singh vs. State of UP के फैसले को याद कराते हुए यह कहा :
“Everybody is forgetting that the scheme of Shiksha Mitra is to spread education and it is not a scheme for employment. What is being given is an honorarium to the concerned teacher. The appointment comes to an end at the end of the academic year, with right to continue if the performance is good."
(सभी भूल रहे हैं कि शिक्षा मित्र योजना शिक्षा के प्रसार के लिए चलाई गई थी न कि रोजगार के साधन के रूप में। उक्त शिक्षक को जो दिया जा रहा है वह 'मानदेय' है। यदि प्रदर्शन अच्छा है तो नवीनीकरण के अधिकार के साथ प्रत्येक शैक्षिक वर्ष के अंत में नियुक्ति समाप्त हो जाती है।)
शिक्षा मित्र कभी सेवारत शिक्षक थे ही नहीं। वह केवल एक संविदा कर्मी मात्र थे जो अपनी इच्छा से कार्य कर रहा था। और यदि उक्त वाक्य को ध्यान से पढ़ा जाए तो शिक्षा मित्रों ने 14 वर्ष कार्य किया ही नहीं। इनकी नियुक्ति प्रत्येक 11 माह में समाप्त हो जाती थी तथा जुलाई से दोबारा नई नियुक्ति होती है। कानूनी भाषा में कहें तो शिक्षा मित्र अधिक से अधिक 11 माह तक कार्य करने का दावा ठोंक सकते हैं। इन 14 वर्षों में 14 बार इनकी नौकरी समाप्त हुई तथा 14 बार ही उसका नवीनीकरण हुआ। सामान्य भाषा में आप इसको लगातार 14 वर्ष तक कार्य करना कह सकते हैं लेकिन कानूनी रूप से शिक्षा मित्रों ने इतने लंबे समय तक लगातार काम नहीं किया। अतः शिक्षा मित्रों को सेवारत शिक्षक कहना हर प्रकार से गलत है। शिक्षा मित्र एक संविदा कर्मी हैं जिसको शिक्षा के प्रसार हेतु 11 माह की संविदा पर स्वेच्छा से रखा गया था।
प्रश्न संख्या (4) व (5) में सरकार ने हाई कोर्ट द्वारा अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 में किया गया 19वां संशोधन तथा यूपीआरटीई रूल्स में किया गया संशोधन '16 क' को अवैध ठहराए जाने पर प्रश्न चिन्ह उठाए हैं तथा एनसीटीई एक्ट, 1993 के सेक्शन 12A का हवाला देने की कोशिश की है। तथा यह भी प्रश्न किया है कि क्या हाई कोर्ट द्वारा समायोजन रद्द किया जाना उचित था?
उत्तर : हाई कोर्ट द्वारा संशोधन '16 क' व नियमावली के 19वें संशोधन को रद्द किया जाना सर्वथा उचित है। संशोधन '16 क' द्वारा राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को टीईटी से छूट दी थी जबकि आरटीई एक्ट, 2009 के सेक्शन 23(2) के अनुसार टीईटी आदि से छूट देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है। तथा उन्नीसवें संशोधन द्वारा राज्य सरकार ने नियमावली में शिक्षा मित्र योग्यता को शामिल कर के नियम 14(6) के द्वारा समस्त शिक्षा मित्रों को द्विवर्षीय बीटीसी कराने के बाद समायोजित करने की बात कही थी। इस को असंवैधानिक सिद्ध करते हुए कोर्ट ने उमा देवी केस तथा संविधान के आर्टिकल 14 व 16 का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा :
👉 आर्टिकल 14 तथा 16 सरकारी नौकरियों में समानता के अधिकार की बात करते हैं। जब तक नियुक्ति संवैधानिक नियमों के अधीन तथा योग्य व्यक्तियों के मध्य खुली प्रतिस्पर्धा के बाद नहीं होती तब तक वह नियुक्त व्यक्ति को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देती। (Secretary of state of Karnataka vs. Uma Devi)
👉 यदि नियुक्ति संविदा पर हुई है तब संविदा अवधि समाप्त होने पर नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी। शिक्षा मित्र एक सामुदायिक सेवक मात्र हैं। नियुक्ति के समय प्रत्येक शिक्षा मित्र को इस तथ्य का ज्ञान था। शिक्षा मित्र स्कीम मात्र शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चलाई गई थी, न कि रोजगार के साधन के रूप में। इनकी नियुक्ति 11 माह की संविदा पर हुई थी।
👉 शिक्षा मित्रों की नियुक्ति न तो स्वीकृत पदों पर हुई तथा न ही यह निर्धारित न्यूनतम योग्यता पूर्ण करते थे। शिक्षा मित्रों की नियुक्ति के समय आरक्षण सम्बन्धी नियमों का भी पालन नहीं हुआ था इसलिए इनकी नियुक्ति पूर्णतया गैर कानूनी है। शिक्षा मित्र योग्य नहीं हैं अतः इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता है।
👉 अनुभव को योग्यता के बराबर अथवा उसका 'substitute' नहीं कहा जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पद कई वर्ष कार्य कर के अनुभव प्राप्त किया है फिर भी उस व्यक्ति को सम्बन्धित पद के लिए निर्धारित योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मानवता को आधार मान कर ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती जबकि निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति मौजूद, ऐसा करना योग्य व्यक्ति के साथ घोर अन्याय होगा। यह मानवता का ही आधार है जो कोर्ट योग्य व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से बेहतर समझती है जो निर्धारित योग्यता भी न रखता हो। (State of MP vs. Dharam Bir, SC)
इनके अतिरिक्त राज्य सरकार में अपनी एसएलपी में यह भी कहा है कि चूँकि प्रदेश में सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों से प्रति वर्ष केवल 10,000-12,000 प्रशिक्षित ही उपलब्ध होते हैं तथा इतने ही लोग रिटायर हो जाते हैं, जिस कारण शिक्षा मित्रों का समायोजन उचित है। यहाँ सरकार का कथन असत्य तो नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वास्तव में डायट से केवल 10,000 से 12,000 लोग ही प्रशिक्षित होते हैं। लेकिन आधा अधूरा सत्य भी एक असत्य ही होता है। डायट के अतिरिक्त प्राइवेट कॉलेज से भी अब करीब 40,000 लोग प्रतिवर्ष प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं जिनको सरकार सिरे से गोल कर गई। तथा निकम्मी सरकार यह भी कह रही है कि आज की तारीख में भी टीईटी पास बीटीसी प्रशिक्षितों की कमी है। सरकार के झूठ का पर्दाफाश करते कुछ तथ्य निम्न हैं :
👉 वर्तमान में करीब 60,000 बीटीसी प्रशिक्षित टीईटी पास कर के भी बेरोजगार हैं, जिनको मुख्य रूप से इन शिक्षा मित्रों के समायोजन के कारण ही बेरोजगार बैठना पड़ रहा है।
👉 58,000 शिक्षा मित्रों के समायोजन के समय तक बीटीसी 2011 बैच (करीब 14,000 लोग) बीटीसी पूर्ण कर चुका था तथा टीईटी भी पास था, परन्तु उन्हें नियुक्ति न देकर उनके स्थान पर अयोग्य शिक्षा मित्रों को समायोजित किया गया।
👉 92,000 शिक्षा मित्रों के समायोजन के दूसरे शासनादेश तक बीटीसी 2012 (डायट) बीटीसी व टीईटी पास कर चुका था, उन्हें नियुक्ति न देके उनके स्थान पर शिक्षा मित्रों को समायोजित किया गया, जो कि प्रत्येक रूप में अनुचित था।
सरकार की यह दलील कि शिक्षा मित्रों को हटाए जाने की स्थिति में 70% अध्यापक बाहर हो जाएंगे बिलकुल गलत व अनुचित है। इसका इलाज भी तुरन्त किया जा सकता है। वर्तमान में करीब 60,000 बीटीसी प्रशिक्षित टीईटी पास कर के बेरोजगार घूम रहे हैं तथा लाखो की संख्या में टीईटी पास बीएड धारी बेरोजगार हैं। 60,000 बीटीसी तो ऐसे हैं जिनको सरकार कल चाहे नियुक्ति दे सकती है। हमें किसी भी प्रकार की अलग से ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं है तथा अप्रैल 2016 तक बीटीसी 2013 बैच भी आ जाएगा जहाँ 50,000 योग्य प्रशिक्षु प्रशिक्षणरत हैं।
मित्रों, सरकार की एसएलपी में सरकार ने बचकाना बातें की हैं, तथा शिक्षा मित्रों को बचाने की कोशिश के स्थान पर डुबाने व पल्ला झाड़ने के अंदाज में याचिका फ़ाइल की है। मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी है। शिक्षा मित्रों का बचना मुश्किल ही नहीं है बल्कि नामुमकिन है।
आपका शुभेच्छु
ॠषि श्रीवास्तव
जूनियर भर्ती संघर्ष मोर्चा
उत्तर प्रदेश
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यदि इस याचिका के आधार पर सरकार शिक्षा मित्रों को बचाने की सोच रही है तब यह बहुत बड़ी गलतफहमी है सरकार की तथा शिक्षा मित्रों से मखौल कर रही है सरकार। सरकार ने जो तर्क दिए वह बहुत ही बेवक़ूफ़ाना व कमजोर हैं। आइये देखते हैं सरकार ने क्या क्या बकैती पेली है।
सर्वप्रथम सरकार ने एसके पाठक की सिविल अपील में शिक्षा मित्रों से सम्बंधित समस्त केसों को हाई कोर्ट की ट्रिपल बेंच को ट्रान्सफर करने वाले आदेश का सन्दर्भ ग्रहण कराया है। तदोपरान्त 12 सितम्बर 2015 के आदेश में मुख्य न्यायाधीश ने जो अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया उन्नीसवाँ संशोधन, यूपीआरटीई रूल्स, 2011 में किया गया संशोधन '16 क' तथा समायोजन के सारे शासनादेश रद्द कर दिए थे, का जिक्र करते हुए अपना रोना रोया है। अब मैं एक एक कर के सरकार ने जो गिड़गिड़ की है, उसकी व्याख्या करने का प्रयास करता हूँ :
1) शिक्षा मित्र स्कीम जो उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन एक्ट, 1972 के सेक्शन 13(1) तथा संविधान के अनुच्छेद 162 के अंतर्गत 1:40 के विद्यार्थी, शिक्षक अनुपात तथा 3:2 के अध्यापक, शिक्षा मित्र अनुपात तथा प्राइमरी विद्यालयों में अध्यापकों की भारी कमी को ध्यान में रखते हुए एक उचित एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया द्वारा एक निश्चित मानदेय पर चलाई गई थी जबकि उस समय योग्य व्यक्तियों का अकाल पड़ा हुआ था। क्या इसको अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 से बाहर मानना उचित है?
उत्तर : सरकार यहाँ वहां के तर्क देकर शिक्षा मित्रों की नियुक्ति को सही ठहराने की कोशिश कर रही है, जबकि मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद हाई कोर्ट के अनुसार शिक्षा मित्रों की नियुक्ति, अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 के अनुसार नहीं हुई थी। यदि सरकार शिक्षा मित्रों को शिक्षक की श्रेणी में रखती है तब सरकार को यह सिद्ध करना होगा कि शिक्षा मित्रों को अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 के अनुसार नियुक्त किया गया था। नियमावली के अनुसार अध्यापक बनने की योग्यता 'स्नातक + द्विवर्षीय बीटीसी' थी जबकि शिक्षा मित्रों को इंटर पास कर के शिक्षा मित्र पद पर नियुक्त किया गया था। न तो यह लोग नियुक्ति के समय स्नातक किये हुए थे तथा न ही बीटीसी। साथ ही साथ इन की नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन नहीं की गई थी, स्वीकृत पदों का निर्धारण नियमावली के नियम 4 के अनुसार किया जाता है जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने अत्यधिक जोर दिया है तथा कहा है :
'The fact that the number of persons engaged as Shiksha Mitras may have been determined on an application of a teacher-student ratio of 1:40, is not an indicator that the Shiksha Mitras were appointed to sanctioned posts.'
(यह तथ्य की शिक्षा मित्रों को 1:40 के विद्याथी - शिक्षक अनुपात में रखा गया था इस बात को प्रदर्शित नहीं करता है कि इनका चयन स्वीकृत पदों पर हुआ था)
उमा देवी केस के अनुसार जब नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन तथा नियमावली के अनुसार नहीं होती है तब ऐसी नियुक्ति गैर कानूनी कहलाती है, अर्थात इनका शिक्षा मित्र पद ही गैर कानूनी है। इस बात को आगे बढ़ाते हुए संविधान के आर्टिकल 162 के अंतर्गत राज्य सरकार की अस्थाई कर्मियों को स्थाई करने की शक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के A Umarani Vs Registrar, Coop Societies केस में दिए गए आदेश को आधार बनाते हुए कहा :
No regularization is, thus, permissible in exercise of statutory power conferred under Article 162 of the Constitution if the appointments have been made in contravention of the statutory rules.
(यदि नियुक्ति कानूनी नियमों के अनुसार नहीं हुई है तब ऐसी अस्थाई नियुक्ति को आर्टिकल 162 के अंतर्गत दी हुई शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्थाई नहीं किया जा सकता है।)
2) क्या केवल केंद्र सरकार द्वारा 23 अगस्त 2010 को जारी नोटिफिकेशन जिसके द्वारा टीईटी को अध्यापक बनने की न्यूनतम योग्यता में शामिल किया गया था, के आधार पर 2010 से पूर्व पारित किये गए उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन एक्ट, 1972 के अंतर्गत लिए गए निर्णयों को अल्ट्रा वायर्स करार दिया जा सकता है?
उत्तर : यह प्रश्न सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण है। सर्वप्रथम तो 23 अगस्त 2010 का नोटिफिकेशन केंद्र सरकार ने नहीं अपितु एनसीटीई ने केंद्र सरकार द्वारा 'अकादमिक अथॉरिटी' नियुक्त होने के पश्चात जारी किया था तथा इस नोटिफिकेशन के द्वारा एनसीटीई ने प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु 'न्यूनतम योग्यता' निर्धारित कर दी।
इस नोटिफिकेशन के अनुसार सहायक अध्यापक बनने की न्यूनतम योग्यता निम्नवत है :
👉 न्यूनतम 50% अंकों के साथ इंटरमीडिएट तथा द्विवर्षीय बीटीसी/बीएलएड
('एवं')
👉 शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना।
👉उक्त नोटिफिकेशन के द्वारा कक्षा 1 से 8 के लिए शिक्षक बनने हेतु 'शिक्षक पात्रता परीक्षा' (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया गया।👈
तथा 23 अगस्त 2010 को जारी नोटिफिकेशन के क्लॉज़ 4 के द्वारा 3 प्रकार के शिक्षकों को टीईटी से छूट दी गई थी जो कि निम्नवत हैं :
(a) जो अध्यापक उक्त नोटिफिकेशन के जारी होने की तिथि अर्थात 23 अगस्त 2010 से पूर्व तथा 3 सितम्बर 2001 जिस दिन एनसीटीई रेगुलेशन 2001 जारी हुए थे, के बाद नियुक्त हुए हों।
(b) कक्षा 1 से 5 हेतु जो बीएड धारी सहायक अध्यापक बनाए गए हैं, उन्होंने 6 माह का विशिष्ट बीटीसी कोर्स किया हो।
(c) जो शिक्षक 3 सितम्बर 2001 को जारी एनसीटीई नोटिफिकेशन जारी होने से पूर्व सम्बंधित नियमों (उत्तर प्रदेश अध्यापक सेवा नियमावली, 1981) के तहत सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हो चुके हों।
शिक्षा मित्र न तो एनसीटीई रेगुलेशन 2001 के अनुसार नियुक्त हुए थे तथा न ही अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 के अनुसार (जैसा कि प्रथम प्रश्न के उत्तर में बताया मैंने) अतः शिक्षा मित्रों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट मिलना सम्भव नहीं है।
संविधान का आर्टिकल 254 कहता है कि यदि राज्य व केंद्र किसी मुद्दे पर संयुक्त रूप से कानून बना सकते हैं तब केंद्र का कानून, राज्य के कानून को 'Supersede' करेगा अर्थात केंद्र का कानून माना जाएगा। चूँकि शिक्षा 'समवर्ती सूची' में आती है, तथा इस पर केंद्र व राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, केंद्रीय कानून 'आरटीई एक्ट, 2009' के सेक्शन 23(1) के अनुसार अध्यापक पद पर न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने का अधिकार एनसीटीई को है जिसमें राज्य सरकार टांग नहीं अड़ा सकती, अतः एनसीटीई के 23 अगस्त 2010 के आधार पर सरकार द्वारा बनाए गए मनमाने नियम बिलकुल अल्ट्रा वायर्स किये जा सकते हैं।
3) क्या आरटीई एक्ट के सेक्शन 23(1) के अंतर्गत बनाई गई 'अकादमिक अथॉरिटी' (एनसीटीई) के द्वारा दी गई सफाई कि '25/08/2010 से पूर्व नियुक्त अप्रशिक्षित सेवारत शिक्षकों जो लगातार सेवा में रहे हों, पर टीईटी बाध्य नहीं होगा' के बाद भी शिक्षा मित्रों जो 1999 से लगातार बिना किसी 'बड़े व्यवधान' के कार्य कर रहे हैं तथा जिन्होंने बीटीसी प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया है, पर टीईटी बाध्य किया जाना उचित है?
उत्तर : उक्त कथन के अनुसार, केवल उन शिक्षकों को छूट है जो 25/08/10 से पूर्व पूर्णकालिक पद पर नियुक्त हुए थे। शिक्षा मित्र संविदा कर्मी मात्र हैं जिनकी नियुक्ति 11 माह की संविदा पर हुई थी। इनकी नियुक्ति प्रत्येक वर्ष के जून माह में समाप्त हो जाती है तथा जुलाई माह से दोबारा नई नियुक्ति होती है। शिक्षा मित्रों को अध्यापक मानने से इंकार करते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन्हें सामुदायिक सेवक मात्र माना है तथा Sanjay Kumar Singh vs. State of UP के फैसले को याद कराते हुए यह कहा :
“Everybody is forgetting that the scheme of Shiksha Mitra is to spread education and it is not a scheme for employment. What is being given is an honorarium to the concerned teacher. The appointment comes to an end at the end of the academic year, with right to continue if the performance is good."
(सभी भूल रहे हैं कि शिक्षा मित्र योजना शिक्षा के प्रसार के लिए चलाई गई थी न कि रोजगार के साधन के रूप में। उक्त शिक्षक को जो दिया जा रहा है वह 'मानदेय' है। यदि प्रदर्शन अच्छा है तो नवीनीकरण के अधिकार के साथ प्रत्येक शैक्षिक वर्ष के अंत में नियुक्ति समाप्त हो जाती है।)
शिक्षा मित्र कभी सेवारत शिक्षक थे ही नहीं। वह केवल एक संविदा कर्मी मात्र थे जो अपनी इच्छा से कार्य कर रहा था। और यदि उक्त वाक्य को ध्यान से पढ़ा जाए तो शिक्षा मित्रों ने 14 वर्ष कार्य किया ही नहीं। इनकी नियुक्ति प्रत्येक 11 माह में समाप्त हो जाती थी तथा जुलाई से दोबारा नई नियुक्ति होती है। कानूनी भाषा में कहें तो शिक्षा मित्र अधिक से अधिक 11 माह तक कार्य करने का दावा ठोंक सकते हैं। इन 14 वर्षों में 14 बार इनकी नौकरी समाप्त हुई तथा 14 बार ही उसका नवीनीकरण हुआ। सामान्य भाषा में आप इसको लगातार 14 वर्ष तक कार्य करना कह सकते हैं लेकिन कानूनी रूप से शिक्षा मित्रों ने इतने लंबे समय तक लगातार काम नहीं किया। अतः शिक्षा मित्रों को सेवारत शिक्षक कहना हर प्रकार से गलत है। शिक्षा मित्र एक संविदा कर्मी हैं जिसको शिक्षा के प्रसार हेतु 11 माह की संविदा पर स्वेच्छा से रखा गया था।
प्रश्न संख्या (4) व (5) में सरकार ने हाई कोर्ट द्वारा अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 में किया गया 19वां संशोधन तथा यूपीआरटीई रूल्स में किया गया संशोधन '16 क' को अवैध ठहराए जाने पर प्रश्न चिन्ह उठाए हैं तथा एनसीटीई एक्ट, 1993 के सेक्शन 12A का हवाला देने की कोशिश की है। तथा यह भी प्रश्न किया है कि क्या हाई कोर्ट द्वारा समायोजन रद्द किया जाना उचित था?
उत्तर : हाई कोर्ट द्वारा संशोधन '16 क' व नियमावली के 19वें संशोधन को रद्द किया जाना सर्वथा उचित है। संशोधन '16 क' द्वारा राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को टीईटी से छूट दी थी जबकि आरटीई एक्ट, 2009 के सेक्शन 23(2) के अनुसार टीईटी आदि से छूट देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है। तथा उन्नीसवें संशोधन द्वारा राज्य सरकार ने नियमावली में शिक्षा मित्र योग्यता को शामिल कर के नियम 14(6) के द्वारा समस्त शिक्षा मित्रों को द्विवर्षीय बीटीसी कराने के बाद समायोजित करने की बात कही थी। इस को असंवैधानिक सिद्ध करते हुए कोर्ट ने उमा देवी केस तथा संविधान के आर्टिकल 14 व 16 का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा :
👉 आर्टिकल 14 तथा 16 सरकारी नौकरियों में समानता के अधिकार की बात करते हैं। जब तक नियुक्ति संवैधानिक नियमों के अधीन तथा योग्य व्यक्तियों के मध्य खुली प्रतिस्पर्धा के बाद नहीं होती तब तक वह नियुक्त व्यक्ति को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देती। (Secretary of state of Karnataka vs. Uma Devi)
👉 यदि नियुक्ति संविदा पर हुई है तब संविदा अवधि समाप्त होने पर नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी। शिक्षा मित्र एक सामुदायिक सेवक मात्र हैं। नियुक्ति के समय प्रत्येक शिक्षा मित्र को इस तथ्य का ज्ञान था। शिक्षा मित्र स्कीम मात्र शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चलाई गई थी, न कि रोजगार के साधन के रूप में। इनकी नियुक्ति 11 माह की संविदा पर हुई थी।
👉 शिक्षा मित्रों की नियुक्ति न तो स्वीकृत पदों पर हुई तथा न ही यह निर्धारित न्यूनतम योग्यता पूर्ण करते थे। शिक्षा मित्रों की नियुक्ति के समय आरक्षण सम्बन्धी नियमों का भी पालन नहीं हुआ था इसलिए इनकी नियुक्ति पूर्णतया गैर कानूनी है। शिक्षा मित्र योग्य नहीं हैं अतः इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता है।
👉 अनुभव को योग्यता के बराबर अथवा उसका 'substitute' नहीं कहा जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पद कई वर्ष कार्य कर के अनुभव प्राप्त किया है फिर भी उस व्यक्ति को सम्बन्धित पद के लिए निर्धारित योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मानवता को आधार मान कर ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती जबकि निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति मौजूद, ऐसा करना योग्य व्यक्ति के साथ घोर अन्याय होगा। यह मानवता का ही आधार है जो कोर्ट योग्य व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से बेहतर समझती है जो निर्धारित योग्यता भी न रखता हो। (State of MP vs. Dharam Bir, SC)
इनके अतिरिक्त राज्य सरकार में अपनी एसएलपी में यह भी कहा है कि चूँकि प्रदेश में सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों से प्रति वर्ष केवल 10,000-12,000 प्रशिक्षित ही उपलब्ध होते हैं तथा इतने ही लोग रिटायर हो जाते हैं, जिस कारण शिक्षा मित्रों का समायोजन उचित है। यहाँ सरकार का कथन असत्य तो नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वास्तव में डायट से केवल 10,000 से 12,000 लोग ही प्रशिक्षित होते हैं। लेकिन आधा अधूरा सत्य भी एक असत्य ही होता है। डायट के अतिरिक्त प्राइवेट कॉलेज से भी अब करीब 40,000 लोग प्रतिवर्ष प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं जिनको सरकार सिरे से गोल कर गई। तथा निकम्मी सरकार यह भी कह रही है कि आज की तारीख में भी टीईटी पास बीटीसी प्रशिक्षितों की कमी है। सरकार के झूठ का पर्दाफाश करते कुछ तथ्य निम्न हैं :
👉 वर्तमान में करीब 60,000 बीटीसी प्रशिक्षित टीईटी पास कर के भी बेरोजगार हैं, जिनको मुख्य रूप से इन शिक्षा मित्रों के समायोजन के कारण ही बेरोजगार बैठना पड़ रहा है।
👉 58,000 शिक्षा मित्रों के समायोजन के समय तक बीटीसी 2011 बैच (करीब 14,000 लोग) बीटीसी पूर्ण कर चुका था तथा टीईटी भी पास था, परन्तु उन्हें नियुक्ति न देकर उनके स्थान पर अयोग्य शिक्षा मित्रों को समायोजित किया गया।
👉 92,000 शिक्षा मित्रों के समायोजन के दूसरे शासनादेश तक बीटीसी 2012 (डायट) बीटीसी व टीईटी पास कर चुका था, उन्हें नियुक्ति न देके उनके स्थान पर शिक्षा मित्रों को समायोजित किया गया, जो कि प्रत्येक रूप में अनुचित था।
सरकार की यह दलील कि शिक्षा मित्रों को हटाए जाने की स्थिति में 70% अध्यापक बाहर हो जाएंगे बिलकुल गलत व अनुचित है। इसका इलाज भी तुरन्त किया जा सकता है। वर्तमान में करीब 60,000 बीटीसी प्रशिक्षित टीईटी पास कर के बेरोजगार घूम रहे हैं तथा लाखो की संख्या में टीईटी पास बीएड धारी बेरोजगार हैं। 60,000 बीटीसी तो ऐसे हैं जिनको सरकार कल चाहे नियुक्ति दे सकती है। हमें किसी भी प्रकार की अलग से ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं है तथा अप्रैल 2016 तक बीटीसी 2013 बैच भी आ जाएगा जहाँ 50,000 योग्य प्रशिक्षु प्रशिक्षणरत हैं।
मित्रों, सरकार की एसएलपी में सरकार ने बचकाना बातें की हैं, तथा शिक्षा मित्रों को बचाने की कोशिश के स्थान पर डुबाने व पल्ला झाड़ने के अंदाज में याचिका फ़ाइल की है। मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी है। शिक्षा मित्रों का बचना मुश्किल ही नहीं है बल्कि नामुमकिन है।
आपका शुभेच्छु
ॠषि श्रीवास्तव
जूनियर भर्ती संघर्ष मोर्चा
उत्तर प्रदेश
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