UPTET SHIKSHAMITRA : सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि किसका कितना भारांक देना है यह राज्य निर्धारित करेगा न कि कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पुर्नविचार हेतु उस ही बेंच के समक्ष रखा जा सकता है परंतु सामान्यतः कोई भी बेंच अपने ही निर्णय में कोई भी फेरबदल नही करती है।
एक जज के लिए उसका निर्णय उसकी इज्जत की तरह होता है जिस पर हाथ डालने वालों को जज साहब एंटरटेन नही करते हैं। देश की सर्वोच्च अदालत के लिए अपने ही निर्णय को बदलना एक अपमान से कम नही होता है खासकर तब जब निर्णय को 2 महीने के लिए रिज़र्व करने के बाद डिलीवर किया गया हो। पुनर्विचार याचिका खारिज होने के उपरांत क्यूरेटिव पिटीशन (उपचारात्मक याचिका) के माध्यम से भी पीड़ित पक्ष उसको कोर्ट के समक्ष रख सकता है, परन्तु वहां भी कोर्ट केवल यह निर्धारित करती है कि क्या यह केस दोबारा सुनने लायक है?! यदि बहुमत (समस्त जजों में से) इस पर सहमत हो जाता है तब केस दोबारा उस ही बेंच में भेज दिया जाता है जिसने उस पर निर्णय दिया था।
शिक्षक भर्ती विवाद में केवल 841 याची व 66,000 भर्ती के मुद्दे को रिव्यु में उठाया जा सकता है। क्योंकि इन दोनों को कोर्ट ने बिना किसी आधार बचा दिया। अकादमिक मेरिट केस में कोर्ट का आदेश बिल्कुल स्पष्ट है। हाई कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस विपिन सिन्हा की डिवीज़न बेंच ने अकादमिक मेरिट को दो आधार पर रद्द किया, अनुच्छेद 14 का उल्लंघन व टीईटी का भारांक न देना। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने उक्त आदेश का हवाला देकर संशोधन 16 को सिन्गल बेंच से रद्द कर दिया। केस चीफ जस्टिस डी बी भोंसले व जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच में पहुंचा और उन्होंने 1 दिसंबर 2016 को संशोधन 16 को टीईटी का भारांक न देने के कारण रद्द कर दिया जबकि सम्पूर्ण आदेश में कहीं भी अनुच्छेद 14 के उल्लंघन की बात नही की, केवल टीईटी भारांक के कारण अकादमिक मेरिट को गलत माना।
इसी बीच वी लावण्या केस में 9 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अकादमिक अंको के भारांक को रद्द करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि :

Equivalence of academic qualifications is a matter for experts and courts normally do not interfere with the decisions of the Government based on the recommendations of the experts (vide University of Mysore v. CD Govinda Rao (1964) 4 SCR 575 and Mohd. Sujat Ali v. Union of India (1975) 3 SCC 76). We hold that it is the prerogative of State-Authorities to formulate a system whereby weightage marks is decided with reference to actual marks secured by each candidate. In the present case, as no arbitrariness is proved on the part of the respondents, in formulating the grading system we cannot interfere with the same. We cannot be expected to go into every minute technicalities of decision taken by the experts and perform the job of the respondent-State.
कोर्ट ने कहा कि किसका कितना भारांक देना है यह राज्य निर्धारित करेगा न कि कोर्ट।
कुल मिलाकर अकादमिक को हाई कोर्ट से जबरदस्ती रद्द करा दिया गया था। जिसको कि अंततः सुप्रीम कोर्ट ने सही मानते हुए बहाल कर दिया। टीईटी मेरिट समर्थकों को उक्त बात हजम नही हो रही है अतः नित्य नई बातें बनाते रहते हैं। इनकी कुड़न जल्द ही इन्हें पागल कर देगी।

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