जागरण संवाददाता, एटा : जेल में बंद शिक्षामित्रों की सुनवाई 21 सितंबर को अदालत में होगी। चूंकि धाराएं संगीन हैं इसलिए राहत मिलने की उम्मीद फिलहाल नजर नहीं आ रही।
वहीं दूसरी तरफ शिक्षामित्र गिरफ्तारी स्टे लेने के लिए हाईकोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। प्रशासन पर इस बात के लिए दवाब बनाया जा रहा है कि किसी तरह से संगीन धाराएं हट जाएं।
आठ सितंबर को शिक्षामित्रों पर हुए लाठीचार्ज की घटना के बाद से ही आंदोलनकारी भागे घूम रहे हैं। इन पर कुल 13 धाराओं में मुकदमा दर्ज है, जिनमें कई धारा संगीन हैं। 21 सितंबर को शिक्षामित्रों की अदालत में पेशी होनी है और इस दौरान सुनवाई होगी, लेकिन अधिवक्ताओं की मानें तो बिना संगीन धाराएं हटें राहत की उम्मीद नजर नहीं आ रही। ऐसे में शिक्षामित्र घबराए हुए हैं कि कौन सा जतन करें जिससे उन्हें राहत मिल सके। 21 को शिक्षामित्रों की सुनवाई सीजेएम की अदालत में होनी है। अधिवक्ताओं का कहना है कि इस मामले की कई धाराएं सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं। ऐसी अवस्था में मजिस्ट्रेट न्यायालय को सुनने का अधिकार नहीं हैं क्योंकि प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट केवल सात साल तक की सजा के मामले की ही सुनवाई कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 307 में सात साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान है और सत्र न्यायालय को ही इसकी सुनवाई का अधिकार है।
इन कानूनी पेचीदगियों के चलते यह आसार नजर नहीं आ रहे कि शिक्षामित्रों को 21 को राहत मिलेगी। इस मामले में 600 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज है। पुलिस के पास यह विकल्प खुला है कि वह शिक्षामित्रों की गिरफ्तारी एफआइआर के आधार पर कर सकती है, लेकिन यह अलग बात है कि शांति व्यवस्था को देखते हुए वह फिलहाल इस पचड़े में न पड़ें। हालांकि अब तक की स्थिति यह है कि न तो शिक्षामित्र ही अपने कदम पीछे हटाने को तैयार हैं न ही पुलिस प्रशासन। शिक्षामित्रों की ओर से यह मांग की जा रही है कि उन पर दर्ज संगीन धाराएं हटाई जाएं। इस मांग पर विचार करने का पुलिस ने आश्वासन भी दे दिया है, लेकिन अभी तक 13 में से कोई भी धारा हटी नहीं है।
दूसरी तरफ शिक्षामित्र गिरफ्तारी का स्टे लेने का प्रयास भी हाईकोर्ट से कर रहे हैं, मगर फिलहाल सफलता नहीं मिली है। उन्होंने 18 सितंबर को प्रदर्शन की योजना बनाई थी, जिसे बुधवार को सपा विधान परिषद सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल और पुलिस के बीच हुई बातचीत के बाद स्थगित कर दिया गया। शिक्षामित्रों की निगाहें अब 21 सितंबर पर टिकी हैं।
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वहीं दूसरी तरफ शिक्षामित्र गिरफ्तारी स्टे लेने के लिए हाईकोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। प्रशासन पर इस बात के लिए दवाब बनाया जा रहा है कि किसी तरह से संगीन धाराएं हट जाएं।
आठ सितंबर को शिक्षामित्रों पर हुए लाठीचार्ज की घटना के बाद से ही आंदोलनकारी भागे घूम रहे हैं। इन पर कुल 13 धाराओं में मुकदमा दर्ज है, जिनमें कई धारा संगीन हैं। 21 सितंबर को शिक्षामित्रों की अदालत में पेशी होनी है और इस दौरान सुनवाई होगी, लेकिन अधिवक्ताओं की मानें तो बिना संगीन धाराएं हटें राहत की उम्मीद नजर नहीं आ रही। ऐसे में शिक्षामित्र घबराए हुए हैं कि कौन सा जतन करें जिससे उन्हें राहत मिल सके। 21 को शिक्षामित्रों की सुनवाई सीजेएम की अदालत में होनी है। अधिवक्ताओं का कहना है कि इस मामले की कई धाराएं सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं। ऐसी अवस्था में मजिस्ट्रेट न्यायालय को सुनने का अधिकार नहीं हैं क्योंकि प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट केवल सात साल तक की सजा के मामले की ही सुनवाई कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 307 में सात साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान है और सत्र न्यायालय को ही इसकी सुनवाई का अधिकार है।
इन कानूनी पेचीदगियों के चलते यह आसार नजर नहीं आ रहे कि शिक्षामित्रों को 21 को राहत मिलेगी। इस मामले में 600 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज है। पुलिस के पास यह विकल्प खुला है कि वह शिक्षामित्रों की गिरफ्तारी एफआइआर के आधार पर कर सकती है, लेकिन यह अलग बात है कि शांति व्यवस्था को देखते हुए वह फिलहाल इस पचड़े में न पड़ें। हालांकि अब तक की स्थिति यह है कि न तो शिक्षामित्र ही अपने कदम पीछे हटाने को तैयार हैं न ही पुलिस प्रशासन। शिक्षामित्रों की ओर से यह मांग की जा रही है कि उन पर दर्ज संगीन धाराएं हटाई जाएं। इस मांग पर विचार करने का पुलिस ने आश्वासन भी दे दिया है, लेकिन अभी तक 13 में से कोई भी धारा हटी नहीं है।
दूसरी तरफ शिक्षामित्र गिरफ्तारी का स्टे लेने का प्रयास भी हाईकोर्ट से कर रहे हैं, मगर फिलहाल सफलता नहीं मिली है। उन्होंने 18 सितंबर को प्रदर्शन की योजना बनाई थी, जिसे बुधवार को सपा विधान परिषद सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल और पुलिस के बीच हुई बातचीत के बाद स्थगित कर दिया गया। शिक्षामित्रों की निगाहें अब 21 सितंबर पर टिकी हैं।
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