परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 68,500 शिक्षकों की भर्ती में अनियमितताएं सामने आई हैं। सरकार ने परीक्षा नियामक सचिव को निलंबित करने व अन्य पर कार्रवाई की है।
मामले की जांच के लिए समिति का भी गठन कर दिया गया है जो एक हफ्ते में रिपोर्ट देगी। अब सारी तैयारी नए सिरे से करनी होगी। हो सकता है कि इस भर्ती की अगली परीक्षा के लिए नए सिरे से आवेदन न मंगाए जाएं लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में जो सरकारी धन खर्च हुआ है, उसकी भरपायी कौन करेगा यह एक बड़ा सवाल है। अनियमितता उजागर हुई है तो कुछ ऐसे लोग जरूर होंगे जिन्हें इसका लाभ अवश्य मिला होगा, क्या उनसे यह क्षतिपूर्ति होगी या फिर कड़ी सजा देने के एलान के नाम पर महज कागजी खानापूरी से ही काम चल जाएगा। यह केवल एक अनियमितता का मामला नहीं है। क्योंकि किसी भी भर्ती में सेंध लगाने का प्रयास जरूर होता है। पकड़ में आ जाए तो कार्रवाई अन्यथा सबकुछ ठीक ठाक रहता है। सवाल तो यही है कि आखिर फूलप्रूफ तैयारी के नाम पर क्या किया गया या परीक्षा नियामक अभी तक तकनीकी तौर पर इतने सक्षम क्यों नहीं हो सके हैं कि किसी को गड़बड़ी करने का मौका ही न मिले। पूरी व्यवस्था में ढिलाई बरतने का लाभ आखिर किसे मिलता है। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर तलाशना ही होगा। यह इसलिए भी जरूरी है कि यह युवाओं की भविष्य से जुड़ा मामला है। तय है कि योगी सरकार ऐसा कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहेगी, जिससे उसकी साख पर बट्टा लगे। अब देखना यही है कि कितनी जल्दी सरकार इस परीक्षा में गड़बड़ी के दोषियों को सजा दिला पाती है या जल्द से जल्द परीक्षा संचालित करवा कर युवाओं के आक्रोश पर काबू पाएगी। जो भी, पर सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे, ताकि अगली अन्य भर्तियों में गड़बड़ी करने का मंसूबा पाले बैठे लोगों का न केवल हौसला पस्त हो, बल्कि भर्तियां भी पारदर्शी और त्वरित गति से हो। सरकार तभी वास्तविक रूप से डैमेज कंट्रोल कर सकेगी।