ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर वे सच में फेल थे तो उन्हें किसने 'पास' करवा कर नियुक्ति की राह खोल दी।
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बेसिक शिक्षा परिषद ने 14 जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों को 23 अभ्यर्थियों की सूची भेजकर उनकी नियुक्ति रोकने के निर्देश दिए थे। हालांकि, इनको बेसिक शिक्षा परिषद ने ही काउसंलिंग के लिए जिले आवंटित किए थे। पत्र में नियुक्ति रोके जाने के कारण अपरिहार्य बताए गए थे, लेकिन सूची में अभ्यर्थियों के नाम के आगे जो अंक लिखे थे, उससे साफ था कि वे फेल हैं।
वहीं, परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने जो रिजल्ट 13 अगस्त को जारी किया था, उनमें ये अभ्यर्थी पास दिखाए गए थे। मसलन रोकी जाने वाली सूची में शामिल मनोज कुमार के 34 अंक हैं जबकि मूल रिजल्ट में उनके 79 नंबर दिख रहे हैं। दीपलता के नंबर 19 से बढ़ाकर 74 किए गए थे। आकाश को रोकी गई सूची के हिसाब से 66 नंबर मिले हैं जबकि मूल रिजल्ट में नंबर 101 थे। दूसरे कुछ अभ्यर्थियों के साथ भी ऐसा ही हुआ है।
ऐसे में अहम सवाल यह है कि केवल तकनीक गड़बड़ी के चलते ही फेल पास दिखा दिए गए या इसके पीछे कोई रैकेट काम कर रहा था, जो फेल अभ्यर्थियों को पास दिखाकर नियुक्ति करवाने के फेर में था। फिलहाल अब सारी निगाहें शासन की जांच कमिटी पर टिकी हैं। अभ्यर्थियों का कहना है कि अगर स्थिति साफ नहीं हुई तो वे सीबीआई जांच के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। लिखित परीक्षा में आई तमाम गड़बड़ियों और अनियमितताओं को देखते हुए सीएम ने सख्त रवैया अपनाया है।
सीएम योगी ने शुक्रवार की सुबह आला अधिकारियों को बुलाकर उनके पेंच भी कसे। इसके आधार पर सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी सुत्ता सिंह पर कार्रवाई की तैयारी है। बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनुपमा जायसवाल का कहना है कि किसी न किसी स्तर पर जरूर लापरवाही हुई है। पूरे प्रक्रिया की गहनता से जांच कराई जा रही है। सर्व शिक्षा अभियान के निदेशक डॉ़ वेदपति शर्मा की अगुवाई में कमिटी बनाई गई है। जो जिम्मेदार होगा उस पर जरूर एक्शन होगा। योग्य अभ्यर्थियों के साथ कोई अन्याय नहीं होने पाएगा।
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