नई दिल्ली. केंद्र सरकार की योजना भले ही गरीब परिवारों के बच्चों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाने की हो। लेकिन इसमें शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी बाधा बनकर उभर रही है। आंकड़ों के हिसाब से देश के माध्यमिक और उच्च-माध्यमिक सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के कुल स्वीकृति पदों की संख्या 58 लाख 26 हजार 617 है।
इसमें रिक्त पदों की संख्या 10 लाख 10 हजार 160 है। इसमें राजधानी दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और मध्य-प्रदेश में शिक्षकों के खाली पड़े हुए पदों की संख्यां एक लाख 47 हजार 804 पर पहुंच गई है।
राजधानी भी बदहाल
बाकी राज्यों की स्थिति
छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों में कुल 50 हजार 116 शिक्षकों की कमी है। इसमें माध्यमिक स्तर पर 43 हजार 100 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 7 हजार 16 शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं। हरियाणा में शिक्षकों की रिक्त पड़े हुए पदों की कुल संख्या 12 हजार 778 है। इसमें माध्यमिक स्तर पर 11 हजार 931 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 847 शिक्षकों का टोटा बना हुआ है। मध्य-प्रदेश में शिक्षकों के खाली पड़े हुए कुल पदों की संख्या 69 हजार 440 है। इसमें माध्यमिक स्तर पर 63 हजार 851 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 5 हजार 589 शिक्षकों की कमी बनी हुई है।
दमन-द्वीव,लक्षद्वीप सबसे नीचे
शिक्षकों की कमी के मामले में केंद्र शासित प्रदेश दमन-द्वीप समूह में उच्च-माध्यमिक स्तर पर सबसे कम पांच शिक्षकों की कमी बनी हुई है। माध्यमिक स्तर पर यह आंकड़ा राज्य में बढ़कर 59 हो गया है। लक्षद्वीप में माध्यमिक स्तर पर 58 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 42 शिक्षकों की कमी दर्शाता है। सबसे ज्यादा शिक्षकों की कमी बिहार में देखने को मिल रही है। यहां माध्यमिक स्तर पर दो लाख तीन हजार 650 शिक्षकों की कमी है। उच्च-माध्यमिक स्तर पर यह आंकड़ा 17 हजार 185 शिक्षकों का है। इसके अलावा उत्तर-प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर एक लाख 74 हजार 666 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर सात हजार 94 शिक्षकों की कमी बनी हुई है।
आंकड़े के हिसाब से देश में माध्यमिक स्तर पर 17.51 फीसदी शिक्षकों की कमी है और माध्यमिक स्तर पर 15.91 फीसदी शिक्षक नहीं हैं। शिक्षकों की नियुक्ति और सर्विस के माहौल को देखना राज्य सरकारों और केंद्र-शासित प्रशासन की जिम्मेदारी है। केंद्र की ओर से माध्यमिक स्तर पर सर्व-शिक्षा अभियान (एसएसए) और माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के जरिए राज्यों को शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सहायता दी जाती है। केंद्र की ओर से नियमित रूप से रिक्त पदों को भरने का मुद्दा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समक्ष उठाया जाता है।
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इसमें रिक्त पदों की संख्या 10 लाख 10 हजार 160 है। इसमें राजधानी दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और मध्य-प्रदेश में शिक्षकों के खाली पड़े हुए पदों की संख्यां एक लाख 47 हजार 804 पर पहुंच गई है।
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बाकी राज्यों की स्थिति
छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों में कुल 50 हजार 116 शिक्षकों की कमी है। इसमें माध्यमिक स्तर पर 43 हजार 100 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 7 हजार 16 शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं। हरियाणा में शिक्षकों की रिक्त पड़े हुए पदों की कुल संख्या 12 हजार 778 है। इसमें माध्यमिक स्तर पर 11 हजार 931 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 847 शिक्षकों का टोटा बना हुआ है। मध्य-प्रदेश में शिक्षकों के खाली पड़े हुए कुल पदों की संख्या 69 हजार 440 है। इसमें माध्यमिक स्तर पर 63 हजार 851 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 5 हजार 589 शिक्षकों की कमी बनी हुई है।
दमन-द्वीव,लक्षद्वीप सबसे नीचे
शिक्षकों की कमी के मामले में केंद्र शासित प्रदेश दमन-द्वीप समूह में उच्च-माध्यमिक स्तर पर सबसे कम पांच शिक्षकों की कमी बनी हुई है। माध्यमिक स्तर पर यह आंकड़ा राज्य में बढ़कर 59 हो गया है। लक्षद्वीप में माध्यमिक स्तर पर 58 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर 42 शिक्षकों की कमी दर्शाता है। सबसे ज्यादा शिक्षकों की कमी बिहार में देखने को मिल रही है। यहां माध्यमिक स्तर पर दो लाख तीन हजार 650 शिक्षकों की कमी है। उच्च-माध्यमिक स्तर पर यह आंकड़ा 17 हजार 185 शिक्षकों का है। इसके अलावा उत्तर-प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर एक लाख 74 हजार 666 और उच्च-माध्यमिक स्तर पर सात हजार 94 शिक्षकों की कमी बनी हुई है।
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आंकड़े के हिसाब से देश में माध्यमिक स्तर पर 17.51 फीसदी शिक्षकों की कमी है और माध्यमिक स्तर पर 15.91 फीसदी शिक्षक नहीं हैं। शिक्षकों की नियुक्ति और सर्विस के माहौल को देखना राज्य सरकारों और केंद्र-शासित प्रशासन की जिम्मेदारी है। केंद्र की ओर से माध्यमिक स्तर पर सर्व-शिक्षा अभियान (एसएसए) और माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के जरिए राज्यों को शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सहायता दी जाती है। केंद्र की ओर से नियमित रूप से रिक्त पदों को भरने का मुद्दा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समक्ष उठाया जाता है।
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