1) उत्तरप्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राइमरी स्कूल्स में
सरकार शिक्षको की कमी से जूझ रही थी और उनके द्वारा बहुत मुश्किल हो रहा
था आर्टिकल 45 का पालन करना।
आर्टिकल 45 जिसके अंतर्गत 14 वर्ष से नीचे के बच्चों को फ्री और कंपल्सरी एडुकेशन देनी थी।
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2) उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा जिले में DIET चलाये जा रहे थे जहां BTC की
ट्रेनिंग कराई जाती थी। हर डाइट में 100 सीट्स थी और इस तरह लगभग 7000
व्यक्तियों को बीटीसी कराई जा सकती थी और इससे हर वर्ष लगभग 6000 बीटीसी
उत्तीर्ण लोग राज्य को मिलते थे जबकि लगभग 50,000 शिक्षकों की आवश्यकता
तुरन्त थी।
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3) इससे निपटने के लिए सरकार ने एक प्रस्ताव गवर्नर के पास भेजा। उस
प्रस्ताव में इस कमी से उबरने के लिए सरकार ने एक बीच का रास्ता निकाला और
उन्होंने बीटीसी की तर्ज पर बीएड या एलटी पास लोगो के लिए 2 माह का एक
ब्रिज कोर्स शुरू किया। नाम दिया स्पेशल बीटीसी। गवर्नर ने स्वीकृति दे दी।
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4) 03 अगस्त 2001 को एक GO जारी किया गया जिसमें कहा गया कि गवर्नर महोदय
ने 20,000 बीएड/एलटी पास को 2 माह की स्पेशल ट्रेनिंग और उसके बाद एक
एग्जाम पास करने के बाद बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक विद्यालयों में
रिक्त पदों पर सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्ति देने की स्वीकृति दे दी
है।
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5) इस शासनादेश में पूरा प्रोसीजर भी दिया गया जिसमें vacancies को
districtwise निर्धारित किया गया और अभ्यर्थियों को आवेदन भी बस अपने होम
district में करने का प्रावधान किया गया। साथ मे यह भी स्पष्ट किया गया कि
किसी ने दो जिलों में आवेदन किया तो उसके दोनों आवेदन निरस्त कर दिए
जाएंगे। साथ ही न कोई एग्जाम होना था न कुछ बस अकादमिक रिकार्ड्स के आधार
पर गुणांक निकालकर मेरिट लिस्ट बनाने की बात कही गयी।
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6) GO में ये भी कहा गया कि मेरिट जिला स्तर पर इसी गुणांक से बनाई जाएगी।
रिक्तियों को ओबीसी और एससी आरक्षण के अनुसार भरा जाएगा यह भी स्पष्ट किया
गया और age लिमिट रखी गयी 18 से 35 वर्ष।
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7) इसी शासनादेश के अनुपालन में 14 अगस्त 2001 को भर्ती का SCERT निशातगंज
लखनऊ द्वारा नोटिफिकेशन निकाला गया और आवेदन की लास्ट डेट 15 SEPTEMBER रखी
गयी।
प्रदेश में संचालित विश्वविद्यालयों, मान्यता प्राप्त महाविद्यालयों तथा
राज्य सरकार द्वारा संचालित महाविद्यालयों/प्रशिक्षण महाविद्यालयों से
संस्थागत प्रशिक्षित बीएड/एलटी अभ्यर्थियों से उत्तरप्रदेश बेसिक शिक्षा
परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के पदों पर
नियुक्ति के लिए विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण हेतु अभ्यर्थियों से आवेदन पत्र
आमंत्रित किये जाते हैं।
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8) इस नोटिफिकेशन के मात्र 6 दिवस बाद, 20 अगस्त 2001 को एक GO फिर जारी
किया गया। अब की बार बीएड/एलटी के साथ साथ भर्ती में बीपीएड, सीपीएड और
डीपीएड को भी आवेदन करने का अवसर दिया गया और AGE लिमिट 18 से 40 वर्ष कर
दी गयी। (केवल वोट बैंक स्टेप) साथ ही आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाकर 29 सिंतबर
2001 कर दी गयी।
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9) इसके बाद एक कारनामा और किया गया अब लास्ट डेट निकट थी लेकिन उससे लगभग
15 दिन पहले 14 सिंतबर 2001 को शासनादेश जारी किया गया जिसमें मेरिट को
स्टेट लेवल पर बनाने का निर्णय लिया गया। इस GO के अनुपालन में एक
CORRIGENDUM 22 सिंतबर 2001 को समाचारपत्रों में प्रकाशित करवाया गया।
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10) फिर से सरकार को लपलपाहट हुई और चयन सूची जारी करने से 2 दिन पहले
31अक्टूबर 2001 को फिर से स्टेट लेवल मेरिट को हटाकर जिला स्तर मेरिट बनाने
का GO जारी किया गया। यहां यह भी बता दें कि लगभग एक दर्जन जिलों में पद
शून्य थे वहीं कुछ जिलों में पद बहुत अधिक थे।(इलाहाबाद 1355, कौशाम्बी
448) और 03 नबम्बर को चयन सूची जारी कर दी गयी। यहां यह बात उल्लेखनीय है
कि चयन सूची में नाम आने से किसी को नियुक्ति का परमानेंट अधिकार नहीं मिल
जाता है। ये सुप्रीम कोर्ट ने भी L.J. Diwakar v. Government of Andhra
Pradesh, AIR 1982 SC 1555 और Shankarasan Dash v. Union of India, AIR
1991 SC 1612 में निर्णीत किया हुआ है।
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11) अब इस निर्णय से स्टेट मेरिट में आने वाले लोग बाहर हो गए। कुछ जिलों
में लो मेरिट वाले सिलेक्टेड वहीं कुछ जिलों में हाई मेरिट वाले भर्ती से
बाहर। इसी से व्यथित होकर बलिया से अनन्त कुमार तिवारी ने जिला वरीयता के
विरुद्ध संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 को आधार बनाकर अधिवक्ता
शैलेंद्र के थ्रू हाई कोर्ट में याचिका WRIT A 37124/2001 दाखिल की।
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12) सरकारी वकील का हर बार का वही ड्रामा। एडवोकेट जनरल बोले जी जज साहब,
जी ये पहले उन नियमों के साथ भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए, और अब जब बाहर
हो गए तो इनको मिर्ची लग रही है। जज साहब इनकी याचिकायें खारिज कीजिये। जी
जज साहब जो चयन सूची में है इन्होंने उनको पार्टी भी नही बनाया है जज साहब
इनकी याचिका कमजोर है खारिज कीजिये। जी जज साहब पालिसी बनाने का काम सरकार
का है उसने नियुक्ति की पालिसी बनाई अब ये इसे चैलेंज नहीं कर सकते इनका
लोकस ही नहीं।
साथ ही AG ने बोला
The State Government is well within its right to prepare merit list at
the district level for the special reasons that teaching in Basic
Primary Schools has to be made in the local dialect and the persons
belonging to that district alone are well versed in the local dialect.
आधिवक्ता आर एन सिंह ने भी AG के हां में हां मिलाई।
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13) पी. एस. बघेल जी ने जोड़ा कि under Article 350A of the Constitution of
India, State and every local authority within the State is under legal
obligation to provide adequate facility for instruction in the mother
tongue at the primary stage of education to the children belonging to
linguistic minority groups.
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14) एम डी सिंह शेखर जी ने भी AG की बात को आगे बढ़ाया और बोला कि जो चयन सूची में हैं उन्हें पार्टी बनाया जाना चाहिए था।
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15) जिला वरीयता बचाने के लिए अधिवक्ताओं की फौज वही जिला वरीयता के
विरुद्ध अकेले शैलेंद्र जी। शैलेन्द्र जी ने इन सब को कॉउंटर किया। Union
of India and Ors. v. O. Chakradhar, 2002 (2) AWC 1264 (SC) में सुप्रीम
कोर्ट ने आदेश किया हुआ है कि यदि रायता बड़े स्तर पर फैलाया गया है तो हर
एक को नोटिस इशू करना या पार्टी बनाना आवश्यक नहीं है।
एक एक बात लिखना इस आर्टिकल को अनावश्यक लम्बा कर देगा इसलिए केवल मेन
पोइटन्स लिखेंगे। जिला वरीयता को लेकर शैलेंद्र जी ने बोला कि ये अनुच्छेद
15 और 16 का सीधा सीधा उल्लंघन है।
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16) जज साहब से पूरे मुद्दे पर 7 प्रश्न तैयार किये जिसमें से 5 वां प्रश्न
था Whether the State Government can prepare merit list at the district
level instead of State level and the same is violative of Articles 15
and 16 of the Constitution of India?
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17) Advocate General ने कहा कि सहायक अध्यापक का कैडर 1981 नियमावली के
हिसाब से लोकल कैडर है। DIET की स्थापना इसलिए ही कि गयी कि उस जिले के
बच्चों को स्थानीय अध्यापक मिल सकें। इसका मुख्य उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा
को स्थानीय बनाना है और क्षेत्र भी स्थानीयकृत है।
प्रशिक्षण के बाद, यदि कोई भी उम्मीदवार किसी भी विद्यालय में नियुक्ति के
लिए आवेदन करता है, तो आवेदन जिले के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को
स्थानांतरित किया जाता है और चयन समिति में जिला स्तर के शिक्षा अधिकारी भी
शामिल होते हैं। वर्तमान विशेष प्रशिक्षण का उद्देश्य जिले के दूर-दराज के
क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने के लिए जिले के प्राथमिक
शिक्षक को उपलब्ध कराना है। इसके अलावा, सभी शैक्षिक विशेषज्ञों का मानना
है कि विद्यार्थियों को अपनी मातृभाषा के माध्यम से अपनी पढ़ाई शुरू करनी
चाहिए और ऐसा सोचने के पीछे एक बड़ा कारण है। बच्चों को उनकी मातृ भाषा मे न
सिखाया जाए तो सीखने की प्रक्रिया अप्राकृतिक हो जाती है और बच्चे तनाव के
साथ पढ़ते हैं, जो संपूर्ण प्रक्रिया को यांत्रिक बना देता है। बुनियादी
ज्ञान को मातृभाषा के माध्यम से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रत्येक राज्य का प्रयास उस क्षेत्र की भाषा को बढ़ावा देने के लिए किया
जाना चाहिए। एडवोकेट जनरल ने कहा कि इसी कारण जिला स्तर पर तैयार मेरिट
लिस्ट के आधार पर चयन करने का फैसला उचित है।
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18) अपनी बात को साबित करने के लिए AG ने SC के दो जज्मेन्ट का सहारा लिया।
English Medium Students Parents Association v. State of Karnataka and
Ors., 1994 (1) SCC 550 और Arun Tiwari v. Zila Mansavi Shikshak Sangh and
Ors., 1998 (2) SCC 332.
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19) जिला वरीयता आर्टिकल 15(1) और 16(2) का उल्लंघन करती है। Govind A.
Mane and Ors. v. State of Maharashtra and Ors., 2000 (2) AWC 2.18 (SC)
(NOC) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि district-wise distribution of seats
in the absence of nexus between such distribution and the objects
sought to be achieved would be violative of Article 14 of the
Constitution of India.
■ संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार no citizen shall, on grounds only
of religion, race, caste, sex, descent, place of birth, residence or
any of them, be ineligible for, or discriminated against in respect of,
any employment or office under the State. Therefore, there can be no
discrimination against a citizen on ground of his place of birth or
residence.
■ क्या कहता है आर्टिकल 16(3)?
Nothing in this article shall prevent Parliament from making any law
prescribing, in regard to a class or classes of employment or
appointment to an office under the Government of, or any local or other
authority within, a State or Union territory, any requirement as to
residence within that State or Union territory prior to such employment
or appointment.
मतलब 16(3) में बस संसद को यह अधिकार है राज्य सरकार को नहीं और संसद को भी
एक सीमा में यह अधिकार है लेकिन इस भर्ती में राज्य सरकार ने वो किया
जिसका अधिकार उसको नही था।
Even Parliament does not have power under the Constitution of India to
prescribe a residence of a village, Tahseel of a District in the given
situation.
■ संसद और राज्य सरकार के अधिकार को लेकर यह आदेश नरसिम्हा राव बनाम आंध्रप्रदेश सरकार में भी पारित हो चुका है।
■ उड़ीसा ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट ने भी सुधीर कुमार बिस्वाल के केस में इस तरह की जिला बाध्यता को रद्द किया है।
the rule framed by the State Government asking applications for public
employment from on the residence of that district is in violation of
Article 16(2) of the Constitution of India.
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20) बीएड बेरोजगार संघ सोनभद्र v. State of UP 1997 (Suppl.) AWC 45 : 1997
(3) UPLBEC 1774 में भी कोर्ट ने कहा है कि there is no justification for
consideration of district-wise in respect of appointments of teachers
in Junior Basic Schools in the State.
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21) उत्तरप्रदेश बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली 1981 का नियम 4
प्रत्येक स्थानीय क्षेत्र के लिए सेवा के अलग कैडर प्रदान करता है। नियम 5
के तहत सहायक शिक्षकों की भर्ती केवल उस स्थानीय क्षेत्र के निवास तक ही
सीमित नहीं है दरअसल, नियमावली के नियम 7 के तहत, भारत का कोई भी नागरिक इन
पदों के लिए उम्मीदवार हो सकता है यदि वो न्यूनतम शैक्षणिक अहर्ता रखता
हो।
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22) AG ने जिस केस English Medium Students Parents Association का
रिफरेन्स लिया उस केस में कोर्ट ने कन्नड़ भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने
को सही ठहराया था। और कहा था कि राज्य बेहतर जानती है कि उसे अपनी स्थानीय
भाषा को कैसे संरक्षित रखना है और इस पालिसी में हम interfere नहीं
करेंगे, वो केस जिला वरीयता के बचाव के लिए उचित ही नहीं बैठता। क्योंकि
किसी भाषा को सिलेबस में नहीं डाला जा रहा था। पूरे प्रदेश में एक ही
सिलेबस है, एक ही माध्यम, एक ही किताबे हैं, एक ही मातृभाषा है। इसी तरह
अरुण तिवारी के केस का रेफेरेंस भी निराधार था।
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23) Kailash Chand Sharma v. State of Rajasthan and Ors., JT 2002 (5) SC
591 में भी सुप्रीम कोर्ट जिला वरीयता के विरुद्ध निर्णय दे चुकी है।
We would like to reiterate that residence by itself-be it be within a
State, region, district or less area within a district cannot be a
ground to accord preferential treatment or reservation, say as provided
in Article 16(3). It is not possible to compartmentalize the State into
district with a view to offer employment to the residents of that
district on a preferential basis.
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24) यहां तक कि S.L.P. (C) No. 10780 of 2001 में आज के नामी वकील राजीव
धवन ने भी लोकल डायलेक्ट का सहारा लेकर जिला वरीयता का बचाव करना चाहा था।
उन्होंने यह निवेदन किया कि स्थानीय उम्मीदवार स्थानीय वातावरण में बेहतर
रूप से आत्मसात हो सकते हैं और प्राथमिक स्तर के छात्रों के साथ बातचीत
करने के लिए भी वे बेहतर स्थिति में होंगे। इस तथ्य पर उन्होंने बल दिया कि
भाषा / मातृभाषा एक समान है, हालांकि अलग अलग जिलों और यहां तक कि उसी
जिले में भी बोली अलग अलग होजाती है।
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25) दरअसल जो ये डायलेक्ट थ्योरी बार बार रख देते हैं इसका कोई factual
बेसिस भी तो होना चाहिये। क्या राज्य के पास कोई डेटा है? क्या कभी सर्वे
कराया गया है या कोई अध्ययन किया गया है कि किस जिले में कौनसी बोली है?
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26) Harshendra Choubissa and Ors. v. State of Rajasthan and Ors., 2002
(4) AWC 3286(SC) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि किसी
राज्य के जिले का व्यक्ति क्या उसी राज्य के अन्य जिले के लिए एलियन है?
हाहाहा। केवल बोली के नाम और आप यह कह दें कि वो वहां के बच्चों और लोगों
से कम्यूनिकेट नहीं कर पायेगा क्या इसके लिए आपने कोई स्टडी की है, क्या
आपके पास कोई डेटा है?
There is no factual nor rational basis to treat each district as a
separate unit for the purpose of offering public employment. The
criteria of merit cannot be allowed to be diluted by taking resort to
such artificial differentiation and irrelevant assumptions.
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27) अब बात करते हैं जिला वरीयता समर्थकों के अगले तर्क की। संविधान का
अनुच्छेद 350A कहता है कि It shall be the endeavour of every State and of
every local authority within the State to provide adequate facilities
for instruction in the mother tongue at the primary stage of education
to children belonging to linguistic minority groups and the President
may issue such directions to any State as he considers necessary or
proper for securing the provision of such facilities.
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28) यहां पर लिंगविस्टिक माइनॉरिटी ग्रुप्स की बात की गई है जबकि ऐसे
ग्रुप्स अब है ही नहीं, सबकी मातृभाषा हिंदी है। माइनॉरिटी ग्रुप्स में
मुस्लिम्स के लिए उर्दू हो सकता था, ईसाइयों के लिए अंग्रेजी और सिखों के
लिए गुरुमुखी, हैं क्या ऐसे आइसोलेटेड ग्रुप्स अब?
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29) इन्हीं सब आधार पर जिला वरीयता को इलाहबाद हाई कोर्ट के जज अंजनी कुमार
ने 21 मार्च 2002 को रद्द कर दिया। इसके विरुद्ध सरकार ने डिवीज़न बेंच में
अपील 404/2002 की जिसको आर के अग्रवाल और एस सेन की बेंच ने 23 नबम्बर
2002 को खारिज कर दिया यानी जिला वरीयता खण्ड पीठ से भी रद्द।
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30) इसके बाद जिला वरीयता समर्थक सुप्रीम कोर्ट में अपील करने गए। राजेश
कुमार गुप्ता की लीडिंग सिविल अपील CA 3048-3064/2005 को भी 4 मई 2005 को
के जी बालाकृष्णन और बी एन श्रीकृष्ण की बेंच ने खारिज कर दिया। इस तरह
जिला वरीयता हर कोर्ट से रद्द है।
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31) अब बात करते हैं आज के परिपेक्ष्य की। 15000 भर्ती में कुछ जिलों के
होनहार भर्ती से बाहर होगये। 16448 में 3 जिलों में शून्य पद थे और
12460(12001) में 24 जिलों में शून्य पद थे। जिला वरीयता से व्यथित होकर
याचिकाएं पेंडिंग हैं जिनका निस्तारण 2018 में हाई कोर्ट से तो हो ही
जाएगा।
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32) 2010 से लेके 2013 बैच तक जो अब तक अचयनित हैं उन्हें रिश्तेदारों और
पड़ोसियों ने इतना टार्चर किया कि उन्हें अब किसी के तानों से कोई फर्क नहीं
पड़ता आदत हो चुकी है और बस एक नौकरी की आस है। उन्हें 15000, 16448 में
कोई इंटरेस्ट नहीं है और केवल 68500 में जिला वरीयता न हो और उनका इस बार
हो जाये बस यही प्रयास है।
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33) जब तक भर्ती का नोटिफिकेशन नहीं आता तब तक 68500 में चैलेंज करने का
लोकस भी कम है। इसलिए पुराने केस ही लड़ने पड़ रहे है। इसलिए 15000 और 16448
में नियुक्त भाई बन्धुओ से निवेदन है कि अपने आप को इस केस से दूर रखें
हमारी इच्छा आपकी नौकरी खाने की कतई नहीं है बस हम 68500 में स्टेट मेरिट
चाहते हैं और अब भी हम बस रूल उल्ट्रवायर्स की मांग करेंगे न कि 15000 और
16448 चयन सूची quash की।
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34) लेकिन आप नहीं माने तो ये जान लीजियेगा की जिला वरीयता तो कहीं से कहीं
तक बचा नहीं पाएंगे और 15000 16448 और 12460 के नियुक्ति पत्र कोर्ट के
अधीन हैं, ज्यादा तीन पांच करोगे तो हमे भी वो करना पड़ेगा जो हम करना नहीं
चाहते। और वैसे भी जिला वरीयता से प्रभावित लोग जो किसी तरह से पिछली भर्ती
में चयन पा गए वो जिला वरीयता जाने पर अपने घर के आसपास वाले जिले में
आराम से सेलेक्ट हो जाएंगे प्रथम काउंसलिंग में यानी उन्हें 5 वर्ष का wait
नहीं करना पड़ेगा ट्रांसफर के लिए। इसलिए आपका आने वाला रूख तय करेगा कि
15000, 16448 बचानी है या गंवानी है। हम फिर कहते हैं हमारी इच्छा बस 68500
है उससे ज्यादा कुछ नहीं।
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35) यदि जिला वरीयता 68500 की विज्ञपति जारी होने से पहले नहीं जाती है तो
जो लोग याची नहीं हैं वो लोग 68500 का नोटिफिकेशन आने पर याची बन जाएं। 14
जिलों का जुरिसिडिक्शन लखनऊ पड़ता है और बाकी 61 का इलाहबाद। इस बात का
ध्यान रखें की आप लखनऊ के न्यायिक क्षेत्र में आएंगे या इलाहबाद में याची
जरूर बनें.
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