इलाहाबाद : राज्य में पुलिस भर्ती सपा शासन से पहले लिखित परीक्षा के
आधार पर ही कराने का नियम था। 2008 में तत्कालीन बसपा शासन में बने इस नियम
को अखिलेश यादव की सरकार ने 2015 में पलटते हुए मेरिट के आधार पर कराने का
फैसला किया।
प्रदेश में पुलिस भर्ती के लिए 2008 में नियम था कि पहले प्रारंभिक फिर
मुख्य लिखित परीक्षा कराई जाए। 2015 में पुलिस व पीएसी में सिपाहियों के
35000 पदों पर भर्ती के लिए सपा शासन ने 2008 के नियम में बदलाव करते हुए
लिखित परीक्षा का प्रावधान समाप्त कर मेरिट से चयन का निर्णय लिया गया। तय
हुआ था कि 10वीं और 12वीं की परीक्षा में मिले अंकों के गुणांक की मेरिट के
आधार पर चयन होगा और फिर शारीरिक दक्षता परीक्षा कराई जाएगी। इसी नियम के
तहत 28,916 पुरुष और 5800 महिला सिपाहियों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई।
इसके खिलाफ कुछ लोग हाईकोर्ट चले गए जिसमें मेरिट के आधार पर चयन न कराकर
लिखित परीक्षा के आधार पर ही पुलिस में सिपाहियों की भर्ती कराने की मांग
की। याचिकाओं पर तत्कालीन राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि सूबे में
पुलिस कांस्टेबलों की कमी है। लगभग डेढ़ लाख पुलिस कांस्टेबलों की जरूरत
है। लिखित परीक्षा की प्रक्रिया लंबी होती है। इसके माध्यम से चयन में काफी
समय लगता है। पूर्व में जो भर्तियां होती रही हैं उनमें पहले अभ्यर्थियों
का मेडिकल परीक्षण फिर लिखित परीक्षा व उसके बाद शारीरिक दक्षता परीक्षा के
माध्यम से चयन होता था। इसमें कई वर्ष लग जाते थे।
कांस्टेबिल (जीडी) 2013 परीक्षा में पदों पर उहापोह : कर्मचारी चयन आयोग
यानी एसएससी से 2013 में विज्ञापित कांस्टेबिल (जीडी) की परीक्षा में
रिक्तियों को लेकर उहापोह की स्थिति है। एक तरफ जहां याचियों की तरफ से
करीब 24 हजार पदों पर भर्ती की बात कही जा रही है, वहीं भर्ती के विज्ञापन
में 41610 पदों पर भर्तियों की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
योगी सरकार ने लागू किए पुराने नियम
पुलिस भर्ती में जिस तरह से अखिलेश सरकार ने मायावती सरकार में 2008 में
बनाए गए नियम को पलटा था, ठीक उसी तर्ज पर प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार
ने सपा शासन में 2015 में बदले गए नियम को पलट दिया है। योगी ने सरकार ने
आगामी भर्ती मेरिट के आधार पर न कराकर लिखित परीक्षा के आधार पर ही कराने
का निर्णय लिया है। लिखित परीक्षा का प्रावधान कमोवेश वैसा ही रखा है जैसे
2008 में लागू था।
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