इलाहाबाद : अशासकीय महाविद्यालयों में 1652 पदों पर असिस्टेंट प्रोफेसर
भर्ती में करीब दो सौ ओएमआर किसकी थी, जिनके सवालों के जवाब आधे-अधूरे दिए
गए? वो साठ ओएमआर किन अभ्यर्थियों की थी, जिन्होंने एक प्रश्न भी हल नहीं
किया?
ये अभ्यर्थी आखिर किसके कहने पर सिर्फ परीक्षा में शामिल हुए लेकिन,
इम्तिहान नहीं दिया? ऐसे ही कई सवाल अब भी फिजां में तैर रहे हैं। उनमें से
किसी सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है, बल्कि असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती की
अधूरी प्रक्रिया को पूरा करने के प्रयास जारी हैं।
उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने करीब छह वर्षो तक कोई भर्ती नहीं कराई।
किसी तरह से 1652 पदों के लिए 46 विषयों की परीक्षा चार चरणों में हुई। खास
बात यह है कि आयोग ने पहली बार लिखित परीक्षा कराई थी। उसकी शुरुआत खराब
रही, कई विषयों में प्रश्नों के गलत उत्तर देने का मामला सामने आया। आयोग
को बड़ी संख्या में आपत्तियां मिलीं। संशोधित उत्तर कुंजी भी जारी हुईं
लेकिन, सभी आपत्तियों का संज्ञान तक नहीं लिया गया। अफसर लगातार प्रक्रिया
को आगे बढ़ाते रहे। उस समय आयोग में कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. रामवीर सिंह
यादव तैनात थे। हाईकोर्ट ने उनका चयन निरस्त कर दिया, तभी सपा सरकार ने
पूर्व आइएएस लाल बिहारी पांडेय को तैनात किया। उन्हें भी बड़ी संख्या में
शिकायतें मिलीं, कहा गया कि कुछ सदस्य व अफसरों के रिश्तेदारों को नियुक्ति
दिलाने के लिए ‘खेल’ हुआ। 1पांडेय ने इसी को आधार बना ओएमआर स्कैन कराया
तो राजफाश हो गया। आयोग सूत्रों के अनुसार यह ओएमआर पांडेय ने अपने पास
सुरक्षित करा लीं। वह आगे कदम बढ़ा पाते कि उनका चयन भी हाईकोर्ट से अवैध
हो गया है और तीन अन्य सदस्यों को भी गलत चयन से हटना पड़ा। सपा सरकार ने
आयोग में अध्यक्ष के रूप में प्रभात मित्तल की तैनाती की। उन्होंने
भ्रष्टाचार का संज्ञान न लेकर प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। उस समय भी
साक्षात्कार एक ही सदस्य के लेने पर सवाल उठे। हालांकि बाद में आयोग का
विलय होने की चर्चा जोर पकड़ने पर मित्तल ने इस्तीफा दे दिया। प्रदेश की
योगी सरकार नए अध्यक्ष व कई सदस्यों की तैनाती कर चुकी है, अभ्यर्थियों को
उम्मीद थी कि नया बोर्ड भर्तियों के भ्रष्टाचार को उजागर करेगा लेकिन, वह
भी प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है।
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