अपनी पहले से घोषित मंशा के अनुरूप जाते हुए मोदी सरकार ने जिस तरह से डाकघर की लोकप्रिय छोई बचत योजनाओं की बयाज दरों में ०.६ से १.३ % तक की बड़ी कटौती की है उससे यही लगता है कि देश के छोटे बचतकर्ताओं को ध्यान में रखकर बनायीं गयी इन योजनाओं को भी समाप्त
करने के लिए उसकी तरफ से गंभीर प्रयास शुरू कर दिए गए हैं. देश के अधिकांश क्षेत्रों में आज भी जिस तरह से छोटी बचत करने के इच्छुक लोगों के लिए डाकघर की ये बचत योजनएँ एक वरदान से कम नहीं हुआ करती हैं उस परिस्थिति में अब सरकार के ये प्रयास किसी भी तरह से आमलोगों के हितों में नहीं कहे जा सकते हैं. इन छोटी योजनाओं का माध्यम से भी सरकार के पास लम्बी अवधि में उपयोग करने के लिए बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा हो जाया करता था जिसका उपयोग वह उच्च ब्याज दरों पर अन्य क्षेत्रों में लगाकर लाभ कमाने के लिए भी किया करती थी पर जब ये योजनाएं इस तरह से अपना आकर्षण ही खो देंगीं तो आने वाले समय में बैलेंस शीट पर इसका प्रभाव दिखाई देना अवश्यम्भावी भी है.
करने के लिए उसकी तरफ से गंभीर प्रयास शुरू कर दिए गए हैं. देश के अधिकांश क्षेत्रों में आज भी जिस तरह से छोटी बचत करने के इच्छुक लोगों के लिए डाकघर की ये बचत योजनएँ एक वरदान से कम नहीं हुआ करती हैं उस परिस्थिति में अब सरकार के ये प्रयास किसी भी तरह से आमलोगों के हितों में नहीं कहे जा सकते हैं. इन छोटी योजनाओं का माध्यम से भी सरकार के पास लम्बी अवधि में उपयोग करने के लिए बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा हो जाया करता था जिसका उपयोग वह उच्च ब्याज दरों पर अन्य क्षेत्रों में लगाकर लाभ कमाने के लिए भी किया करती थी पर जब ये योजनाएं इस तरह से अपना आकर्षण ही खो देंगीं तो आने वाले समय में बैलेंस शीट पर इसका प्रभाव दिखाई देना अवश्यम्भावी भी है.
मौजूदा दरें वित्त वर्ष २०१६-१७ के पहले दिन यानी १ अप्रैल से लागू होंगीं इन नई दरों के मुताबिक अगर किसी ने पीपीएफ में एक तिमाही के लिए १ लाख रुपये जमा किया है तो उसका सालना ब्याज ८१०० रुपये होगा जबकि पुरानी दरों से उसे ८७०० रुपये मिलता, यानी उसे सीधे-सीधे ६०० रुपये का घाटा होगा। इसी तरह किसान विकास पत्र में जमा किए गए १ लाख रुपये का ब्याज ८७०० रुपये से घट कर ७८०० रुपये रह जाएगा। सुकन्या समृद्धि योजना में जमा किया जाने वाला 1 लाख रुपये का ब्याज ९२०० रुपये से घट कर ८६०० रुपये रह जाएगा। बुजुर्गों ने अगर डाकघर स्कीम में १ लाख रुपये लगाया हो तो उन्हें ९३०० रुपये के ब्याज की जगह ८६०० रुपये मिलेंगे। देखने में यह धनराशि भले ही ६०० से लगाकर १३०० रूपये प्रतिवर्ष प्रति लाख की हो पर इससे उन लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ने वाला है जो इन योजनाओं के माध्यम से किसी भी तरह से बचत करने की कोशिशें किया करते थे पर अब उनके पास विकल्प सीमित ही रहने वाले हैं जिसका सामाजिक असर भी अवश्य ही दिखाई देने वाला है.
एक तरफ सरकार आम जनता से बचत योजनाओं में निवेश करने के लिए कहती हुई नज़र आती है पर साथ ही वह इन सरकारी योजनाओं पर इस तरह से कैंची भी चलाना चाहती है जिसका सीधे तौर पर निजी क्षेत्र के बैकों को ही लाभ मिलने वाला है क्योंकि रिज़र्व बैंक द्वारा सामान्य बचत खाते पर न्यूनतम ब्याज को ४% रखा गया है पर बैंकों को इसे अपने अनुसार बढाकर देने की छूट भी दे रखी है उससे आज सरकारी बैंकों में जहाँ औसतन ४% का ब्याज मिल रहा है वहीं निजी क्षेत्र के कुछ बैंक ६% तक ब्याज दे रहे हैं. सरकारी बैंकों के लिए ब्याज का निर्धारण सरकार के हाथों में है और निजी क्षेत्र का प्रबंधन यह निर्णय अपने स्तर पर ही ले सकता है जिससे भी पहले से ही अपने बड़े एनपीए से जूझ रहे सरकारी बैंकों पर और भी अधिक मार ही पड़ने वाली है. क्या मोदी सरकार सदियों पुराने कुछ भारतीय बैंकों को अब निजी क्षेत्र के बैंकों से मुक़ाबला करने लायक भी नहीं छोड़ना चाहती है क्योंकि जब दोनों क्षेत्रों के लिए काम करने के समान अवसर ही नहीं बचेंगें तो सरकारी बैंक कब तक शहरों में निजी बैंकों के सामने टिक पायेंगें यह भी कोई नहीं जानता है पर अपने एजेंडे को लागू करने के लिए अब डाकघर के साथ सरकारी बैंकों के लिए भी कड़ी चुनौती पेश करने वाली मोदी सरकार इनके भविष्य को समस्याग्रस्त करने में लगी हुई है.
एक तरफ सरकार आम जनता से बचत योजनाओं में निवेश करने के लिए कहती हुई नज़र आती है पर साथ ही वह इन सरकारी योजनाओं पर इस तरह से कैंची भी चलाना चाहती है जिसका सीधे तौर पर निजी क्षेत्र के बैकों को ही लाभ मिलने वाला है क्योंकि रिज़र्व बैंक द्वारा सामान्य बचत खाते पर न्यूनतम ब्याज को ४% रखा गया है पर बैंकों को इसे अपने अनुसार बढाकर देने की छूट भी दे रखी है उससे आज सरकारी बैंकों में जहाँ औसतन ४% का ब्याज मिल रहा है वहीं निजी क्षेत्र के कुछ बैंक ६% तक ब्याज दे रहे हैं. सरकारी बैंकों के लिए ब्याज का निर्धारण सरकार के हाथों में है और निजी क्षेत्र का प्रबंधन यह निर्णय अपने स्तर पर ही ले सकता है जिससे भी पहले से ही अपने बड़े एनपीए से जूझ रहे सरकारी बैंकों पर और भी अधिक मार ही पड़ने वाली है. क्या मोदी सरकार सदियों पुराने कुछ भारतीय बैंकों को अब निजी क्षेत्र के बैंकों से मुक़ाबला करने लायक भी नहीं छोड़ना चाहती है क्योंकि जब दोनों क्षेत्रों के लिए काम करने के समान अवसर ही नहीं बचेंगें तो सरकारी बैंक कब तक शहरों में निजी बैंकों के सामने टिक पायेंगें यह भी कोई नहीं जानता है पर अपने एजेंडे को लागू करने के लिए अब डाकघर के साथ सरकारी बैंकों के लिए भी कड़ी चुनौती पेश करने वाली मोदी सरकार इनके भविष्य को समस्याग्रस्त करने में लगी हुई है.