मान्यता को लेकर सरकार से मांगा जवाब
विधि संवाददाता लखनऊ : उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उच्च प्राथमिक विद्यालयों को मान्यता दिए जाने सम्बन्धी शासनादेश को चुनौती दिए जाने के मामले में राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। पीठ ने जानना चाहा है कि कक्षा छह से आठ तक के विद्यालय को मान्यता दिए जाने का प्रावधान इण्टरमीडिएट शिक्षा अधिनियम के तहत क्यों किया गया।
न्यायमूर्ति श्रीनरायण शुक्ला व न्यायमूर्ति राजन राव की खण्डपीठ ने यह आदेश उत्तर प्रदेश माध्यम के शिक्षक संघ की ओर से दायर याचिका पर दिया है। याचिका प्रस्तुत कर दो जून 2011 को जारी शासनादेश को चुनौती दी गई है। पिछली बसपा सरकार में जारी इस शासनादेश में कक्षा छह से आठ तक के विद्यालय को मान्यता दिए जाने का प्रावधान इण्टरमीडिएट शिक्षा अधिनियम से किया गया है। याची की ओर तर्क दिया गया कि इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम कक्षा नौ से 12 तक के विद्यालय के लिए है। कक्षा छह से आठ तक के विद्यालय को मान्यता दिए जाने का प्रावधान बेसिक शिक्षा अधिनियम के तहत होना चाहिए।
याची की ओर से कहा गया कि जारी शासनादेश संविधान के अनुसार नहीं है और यह गैर कानूनी व मनमाना है। याचना की गई है कि शासनादेश निरस्त किया जाए। मामले की सुनवाई के समय सरकारी वकील ने अदालत से चार सप्ताह का समय मांगा।
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न्यायमूर्ति श्रीनरायण शुक्ला व न्यायमूर्ति राजन राव की खण्डपीठ ने यह आदेश उत्तर प्रदेश माध्यम के शिक्षक संघ की ओर से दायर याचिका पर दिया है। याचिका प्रस्तुत कर दो जून 2011 को जारी शासनादेश को चुनौती दी गई है। पिछली बसपा सरकार में जारी इस शासनादेश में कक्षा छह से आठ तक के विद्यालय को मान्यता दिए जाने का प्रावधान इण्टरमीडिएट शिक्षा अधिनियम से किया गया है। याची की ओर तर्क दिया गया कि इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम कक्षा नौ से 12 तक के विद्यालय के लिए है। कक्षा छह से आठ तक के विद्यालय को मान्यता दिए जाने का प्रावधान बेसिक शिक्षा अधिनियम के तहत होना चाहिए।
याची की ओर से कहा गया कि जारी शासनादेश संविधान के अनुसार नहीं है और यह गैर कानूनी व मनमाना है। याचना की गई है कि शासनादेश निरस्त किया जाए। मामले की सुनवाई के समय सरकारी वकील ने अदालत से चार सप्ताह का समय मांगा।
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