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यूपी में शिक्षकों के तीन लाख पद खाली : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

आरटीई फोरम की राष्ट्रीय बैठक में खुली शिक्षा के अधिकार की पोल
यूपी में शिक्षकों के तीन लाख पद खाली

लखनऊ। देशभर में करीब 12 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें से अकेले उत्तर प्रदेश में 3 लाख पद खाली हैं। देश में करीब 63 लाख बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर हैं, वहीं 8.32 फीसदी स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे हैं। शिक्षा का अधिकार फोरम की ओर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय परिषद की बैठक के अंतिम दिन बुधवार को वक्ताओं ने ये बातें कहीं। फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीश राय ने बताया कि शिक्षा का अधिकार एक्ट के प्रावधानों को लागू करने की अंतिम तिथि 31 मार्च, 2013 थी और जरूरी शिक्षकों की नियुक्ति, उनके विनियमितीकरण व गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की 31 मार्च, 2015।

इसके बावजूद आज भी देश में महज 10 फीसदी स्कूल ही आरटीई कानून के मानकों पर खरे उतरते हैं। बैठक में तय किया गया कि फोरम शिक्षा का अधिकार का पूरी तरह पालन कराने और नई शिक्षा नीति में सुधार के लिए जनांदोलन चलाएगा।
यूपी में परिभाषित नहीं ड्रॉप आउट ः
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार यूपी मेंकरीब 17 लाख स्टूडेंट्स ड्रॉप आउट होते हैं, जबकि प्रदेश सरकार के अनुसार यह संख्या मात्र 40 हजार ही है।
इसका बड़ा कारण है प्रदेश में ड्रॉप आउट की परिभाषा तय न होना। असल में केंद्र के अनुसार उन बच्चों को ड्रॉप आउट में शामिल किया जाता है जो लगातार 45 दिन स्कूल न जाएं, जबकि यूपी में ऐसा कुछ तय ही नहीं है।
जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा पर हो खर्च
बैठक में सभी ने 1968 में गठित कोठारी कमीशन के शिक्षा पर जीडीपी का 6 फीसदी खर्च करने केसुझाव पर अमल की पुरजोर वकालत की।
यूपीए सरकार में केवल 3.9 फीसदी खर्च का प्रावधान रखा गया और वर्तमान केंद्र सरकार में यह और भी कम है। वहीं पिछले वर्षों में देश भर में करीब एक लाख सरकारी स्कूल बंद किए जाने की सूचना आई। इस अवसर पर ‘ट्रॉन्सफॉर्मिंग स्कूल एजूकेशन: रोल ऑफ टीचर्स’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया। बैठक में बंगलूरू से डॉ.निरंजनाराध्या, बिनोद सिन्हा सहित करीब 18 राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
देश में 8.32 फीसदी स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसेकरीब 63 लाख बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर
राजधानी के एक होटल में आरटीई फोरम की बैठक में मौजूद विशेषज्ञ।
प्राइवेट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट पर लगे लगामवक्ताओं ने कहा कि प्राइवेट टीचर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स खुलेआम रेट तय कर प्रशिक्षण के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। इनकी संख्याकरीब 92 फीसदी है। ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की कल्पना संभव नहीं। उन्होंने कहा कि इन इंस्टीट्यूट्स को बंद कर सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों को बढ़ावा मिलना चाहिए।
डायट पर प्रशिक्षण कार्यक्रम कराए जाने चाहिए।

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