पीसीएस-2011 समेत कई परीक्षाओं पर हैं सवालिया निशान
गोपनीयता बनाने की कार्यशैली से भी गहराए संदेह के बादल
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : पीसीएस-2015 की प्रारंभिक परीक्षा को लेकर राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत भले ही मिल गई है, लेकिन अन्य भर्तियों में लगे दाग से उसका दामन अब तक नहीं छूटा है। सरकार के ही एक बड़े अधिकारी ने खुलकर इन भर्तियों में व्यापम जैसे घोटाले के संकेत देकर भ्रष्टाचार के आरोपों को और पुख्ता कर दिया है।
गोपनीयता के नाम पर तथ्यों को छिपाने की आयोग की कार्यशैली भी इन आरोपों को बल देने लगी है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है।
साक्षात्कार में अंकों का घालमेल : यह महज संयोग नहीं कि सपा सरकार में आयोग की लगभग सभी भर्तियां विवादों में रही हैं। पीसीएस-2011 में ओबीसी की के 86 पदों में 54 यादवों के चयन की बात सामने आई है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के पदाधिकारी अवनीश पांडेय बताते हैं कि साक्षात्कार में एक ही जाति को वरीयता दी गई।
पीसीएस-2011 में यादवों को साक्षात्कार के दो सौ नबरों में 135 और 141 नंबर तक दिए गए जबकि अन्य का औसत सौ से 115 के बीच रहा। इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल है। ध्यान रहे, 389 पदों के लिए हुई इसी परीक्षा में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू हुआ था और उसके बाद कोर्ट के आदेश पर मुख्य परीक्षा का परिणाम बदलना पड़ा था।
जला दी गईं उत्तर पुस्तिकाएं : आयोग के कई फैसलों ने भी संदेहों को बढ़ावा दिया है। हाईकोर्ट में तमाम याचिकाएं विचाराधीन होने के बावजूद आयोग ने पीसीएस-2011 की उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट कर दीं। इसका खुलासा आरटीआइ के तहत मांगी गई एक जानकारी से हुआ। आयोग ने संदेह को बढ़ावा देने वाले और भी फैसले किए। मसलन, प्रतियोगी अभ्यर्थी की जाति न जान सकें, इसके लिए परिणाम में अभ्यर्थियों का उपनाम न प्रकाशित करने का फैसला किया गया। कुछ माह पहले ही आयोग ने यह फैसला भी किया कि अब सफल अभ्यर्थियों का नाम भी नहीं प्रकाशित किया जाएगा। अंतिम परिणाम में सिर्फ रोल नंबर ही दर्ज रहेगा। यह व्यवस्था भी कर दी गई है कि प्रतियोगी सिर्फ अपने ही नंबर देख सकें। पहले सभी सफल अभ्यर्थियों के अंक सार्वजनिक किए जाते थे।
सीबीआइ जांच हो तो व्यापम जैसा घोटाला : भर्तियों में भ्रष्टाचार पर खुलकर बोलने वाले प्रमुख सचिव सूर्य प्रताप सिंह दावा करते हैं कि यदि लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की सीबीआइ जांच करा ली जाए तो व्यापम जैसा घोटाला सामने आएगा। उनका आरोप है कि परीक्षाओं में गोपनीयता के नाम पर चुनिंदा लोगों को नियुक्तियां दी गईं और इसके पीछे होने वाले भ्रष्टाचार की अनदेखी नहीं की जा सकती। विशेष तौर पर सीधी भर्ती से होने वाली सभी नियुक्तियां आयोग ने मनमाने तौर पर की। कई में तो मानकों का पालन भी नहीं किया गया।
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गोपनीयता बनाने की कार्यशैली से भी गहराए संदेह के बादल
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : पीसीएस-2015 की प्रारंभिक परीक्षा को लेकर राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत भले ही मिल गई है, लेकिन अन्य भर्तियों में लगे दाग से उसका दामन अब तक नहीं छूटा है। सरकार के ही एक बड़े अधिकारी ने खुलकर इन भर्तियों में व्यापम जैसे घोटाले के संकेत देकर भ्रष्टाचार के आरोपों को और पुख्ता कर दिया है।
गोपनीयता के नाम पर तथ्यों को छिपाने की आयोग की कार्यशैली भी इन आरोपों को बल देने लगी है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है।
साक्षात्कार में अंकों का घालमेल : यह महज संयोग नहीं कि सपा सरकार में आयोग की लगभग सभी भर्तियां विवादों में रही हैं। पीसीएस-2011 में ओबीसी की के 86 पदों में 54 यादवों के चयन की बात सामने आई है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के पदाधिकारी अवनीश पांडेय बताते हैं कि साक्षात्कार में एक ही जाति को वरीयता दी गई।
पीसीएस-2011 में यादवों को साक्षात्कार के दो सौ नबरों में 135 और 141 नंबर तक दिए गए जबकि अन्य का औसत सौ से 115 के बीच रहा। इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल है। ध्यान रहे, 389 पदों के लिए हुई इसी परीक्षा में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू हुआ था और उसके बाद कोर्ट के आदेश पर मुख्य परीक्षा का परिणाम बदलना पड़ा था।
जला दी गईं उत्तर पुस्तिकाएं : आयोग के कई फैसलों ने भी संदेहों को बढ़ावा दिया है। हाईकोर्ट में तमाम याचिकाएं विचाराधीन होने के बावजूद आयोग ने पीसीएस-2011 की उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट कर दीं। इसका खुलासा आरटीआइ के तहत मांगी गई एक जानकारी से हुआ। आयोग ने संदेह को बढ़ावा देने वाले और भी फैसले किए। मसलन, प्रतियोगी अभ्यर्थी की जाति न जान सकें, इसके लिए परिणाम में अभ्यर्थियों का उपनाम न प्रकाशित करने का फैसला किया गया। कुछ माह पहले ही आयोग ने यह फैसला भी किया कि अब सफल अभ्यर्थियों का नाम भी नहीं प्रकाशित किया जाएगा। अंतिम परिणाम में सिर्फ रोल नंबर ही दर्ज रहेगा। यह व्यवस्था भी कर दी गई है कि प्रतियोगी सिर्फ अपने ही नंबर देख सकें। पहले सभी सफल अभ्यर्थियों के अंक सार्वजनिक किए जाते थे।
सीबीआइ जांच हो तो व्यापम जैसा घोटाला : भर्तियों में भ्रष्टाचार पर खुलकर बोलने वाले प्रमुख सचिव सूर्य प्रताप सिंह दावा करते हैं कि यदि लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की सीबीआइ जांच करा ली जाए तो व्यापम जैसा घोटाला सामने आएगा। उनका आरोप है कि परीक्षाओं में गोपनीयता के नाम पर चुनिंदा लोगों को नियुक्तियां दी गईं और इसके पीछे होने वाले भ्रष्टाचार की अनदेखी नहीं की जा सकती। विशेष तौर पर सीधी भर्ती से होने वाली सभी नियुक्तियां आयोग ने मनमाने तौर पर की। कई में तो मानकों का पालन भी नहीं किया गया।
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